इंट्रोजब से मनुष्यों ने सभ्यता का रूप लिया है, तब से प्रकृति ने उन्हें काफी मोहित और आश्चर्यचकित किया है. विशेषकर कृषि की शुरुआत के साथ ही मनुष्य को अपने जीवनयापन, भोजन, स्वास्थ्य, रहन-सहन इत्यादि में सूर्य के महत्व का एहसास होने लगा. मानव सभ्यता का इतिहास साक्षी है कि दुनिया का कोई कोना नहीं है, जहां सूर्य को पूजा न गया हो. मित्तनी, हित्ती, मिस्र के राजाओं के लिए सूर्यपूजा का सामान्य स्रोत भारत ही था. ऋग्वेद की ऋचाओं में सूर्य के विषय में जो कुछ दर्ज है, दूसरी सभ्यताओं में भी कुछ वैसा ही है. अंतर है तो नाम का. सूर्य के लिए लैटिन में ‘ सो ‘, ग्रीस में ‘हेलियोस’, मिस्र में ‘रा’ और ‘होरुस’ कहा गया है. आइए, हम विदेश के कुछ सूर्य मंदिरों के बारें में जानते है.
चीन के बीजिंग में 1500 ई में मियांग राजवंश के जियाजिंग सम्राट के बनवाया हुआ सूर्य का मंदिर है. इस सूर्य मंदिर का प्रयोग इंपीरियल अदालत द्वारा पूजा के विस्तृत पद्धति के लिए किया जाता था, जिसमें उपवास, प्रार्थना, नृत्य और जानवरों की बलि भी होती थी. इस मंदिर की सबसे खास बात है कि इसमें लाल रंग का प्रयोग किया गया है, जिसे सूर्य के साथ जोड़ कर देखा जाता है. मंदिर अब एक सार्वजनिक पार्क का हिस्सा है.
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प्राचीन मिस्र में कई सूर्य मंदिर थे. इनमें से अबू सिंबेल में रामसेस के महान मंदिर, और पांचवें राजवंश द्वारा निर्मित परिसर शामिल थे. अब केवल दो ही शेष बचे हैं, यूजरकैफ और न्यसेर. पांचवें राजवंश के इन मंदिरों में आम तौर पर तीन खास चीजें होती थीं, जिसमें एक सबसे ऊंचे मुख्य मंदिर की इमारत जो एक छोटे से प्रवेश द्वार से जुड़ी होती थी. उसमें से होते हुए एक संकरे मार्ग से जाना होता था, जो मुख्य मंदिर में पहुंचाता था. काफी पहले लुप्त हो चुका यह मंदिर अब 2006 में, पुरातत्वविदों को काहिरा के एक बाजार के नीचे खंडहर के रूप में मिला था. अनुमान है कि शायद रामसेस द्वितीय द्वारा निर्मित सबसे बड़े मंदिर का यह हिस्सा हो सकता है.