चितालागी अमावस्या पर जगन्नाथ मंदिर में पूजा-अर्चना, फसलों की रक्षा के लिए किसान चितऊ पीठा करते हैं अर्पित
चितालागी अमावस्या के दिन प्रभु जगन्नाथ के माथे पर एक सुनहरा निशान लगाकर सजाया गया. इसे चिट्टा के रूप में जाना जाता है. यह प्रभु जगन्नाथ का एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है. किसान परिवार घरों में शुद्धिकरण के साथ चितऊ पीठा बनाकर खेतों में गाड़ते हुए अपनी फसलों की सुरक्षा के लिए पूजा-अर्चना करते हैं.
खरसावां, शचिंद्र कुमार दाश: सरायकेला खरसावां चतुर्भजो जगन्नाथ, कंठ शोभित कौस्तुभ…, जगन्नाथ लोकनाथ, नीलाद्रीश: परो हरि… मंत्रोच्चार के साथ चितालागी अमावस्या पर सरायकेला-खरसावां जिले के जगन्नाथ मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना की गई. स्थानीय भाषा में लोग इसे चितोऊ अमावस्या भी कहते हैं. पुरोहितों ने जगन्नाथ मंदिरों में सोमवार को देर शाम सभी धार्मिक रस्मों को निभाते हुए पूजा-अर्चना की. पूरे विधि-विधान के साथ प्रभु जगन्नाथ को चंदन का टीका लगाया गया. चितालागी अमावस्या पर किसानों ने खेतों में भी पूजा-अर्चना की. गंडेइसुनी (घोंघे) व कस्तुरी की पूजा की जाती है. यहां प्रसाद स्वरूप चितऊ पीठा का भोग लगाया जाता है. यह पूजा अच्छी खेती के लिए की जाती है. किसान परिवार अपने घरों में पूरी तरह से शुद्धिकरण के साथ चितऊ पीठा बना कर खेतों में गाड़ते हुए अपनी फसलों की सुरक्षा के लिए पूजा-अर्चना करते हैं. चितालागी अमावस्या पर हरिभंजा के जगन्नाथ मंदिर में ओडिया परंपरा के अनुसार चावल के पाउडर से विशेष रूप से तैयार किये गये चितऊ पीठा का भोग प्रभु जगन्नाथ, बलभद्र व देवी सुभद्रा को चढ़ाया जाता है.
प्रभु जगन्नाथ का एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान
चितालागी अमावस्या के दिन प्रभु जगन्नाथ के माथे पर एक सुनहरा निशान लगाकर सजाया गया, जिसे चिट्टा के रूप में जाना जाता है. यह प्रभु जगन्नाथ का एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है. धार्मिक मान्यता है कि स्नान पूर्णिमा के दिन 108 कलश पानी में स्नान के दौरान प्रभु जगन्नाथ, बलभद्र व देवी सुभद्रा का चिता खोल दिया जाता है. इस चिता को सावन माह में पड़ने वाली अमावास्या चितालागी अमावस्या (चितोऊ अमावस्या) पर लगाया जाता है. इसे देखने के लिये बड़ी संख्या में भक्त मंदिर पंहुचे थे.
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प्रभु जगन्नाथ को चावल से तैयार चितऊ पीठा का भोग लगाया गया
चितालागी अमावस्या पर हरिभंजा के जगन्नाथ मंदिर में ओडिया परंपरा के अनुसार चावल के पाउडर से विशेष रूप से तैयार किये गये चितऊ पीठा का भोग प्रभु जगन्नाथ, बलभद्र व देवी सुभद्रा को चढ़ाया गया. चितऊ पीठा का भोग साल में एक ही दिन चितालागी अमावस्या पर चढ़ाया जाता है. पूजा के बाद भक्तों में प्रसाद का भी वितरण किया गया.
खेतों में गंडेइसुनी (घोंघे) व कस्तुरी की पूजा की गयी
चितालागी अमावस्या पर किसानों ने खेतों में भी पूजा-अर्चना की. खेतों में भी गंडेइसुनी (घोंघे) व कस्तुरी की पूजा की जाती है. यहां प्रसाद स्वरूप चितऊ पीठा का भोग लगाया जाता है. यह पूजा अच्छी खेती के लिए की जाती है. किसान परिवार अपने घरों में पूरी तरह से शुद्धिकरण के साथ चितऊ पीठा बना कर खेतों में गाड़ते हुए अपनी फसलों की सुरक्षा के लिए पूजा-अर्चना करते हैं. इसमें चितऊ पीठा बनाकर जीव जंतुओं को खिलाकर संतुष्ट करने की प्रथा है, ताकि किसानों के फसल की रक्षा हो सके.
फसलों की रक्षा के लिए चढ़ाते हैं चितऊ पीठा
सामान्य रूप से किसान वर्षा ऋतु के समय में धान की फसल करते हैं. किसानों की फसलों को गंडेइसुनी (घोंघे) व अन्य जंतु फसल बर्बाद कर देते हैं. ऐसे में फसल बर्बाद ना हो, इसके लिए चितऊ पीठा को सारू के पत्र में गंडेइसुनी (घोंघे) के लिये अर्पित किया जाता है.
ये हैं खास बातें
चितालागी अमावस्या को चितोऊ अमावस्या भी कहा जाता है.
चितालागी अमावस्या के दिन प्रभु जगन्नाथ के माथे पर एक सुनहरा निशान लगाकर सजाया गया, जिसे चिट्टा के रूप में जाना जाता है.
जगन्नाथ मंदिरों में सभी धार्मिक रस्मों को निभाते हुए पूजा-अर्चना की गयी.
पूरे विधि-विधान से प्रभु जगन्नाथ को चंदन का टीका लगाया गया.
यह प्रभु जगन्नाथ का एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है.
प्रभु जगन्नाथ को चावल से तैयार चितऊ पीठा का भोग लगाया गया.
चितऊ पीठा का भोग चितालागी अमावस्या पर ही चढ़ाया जाता है.
पूजा के बाद भक्तों के बीच प्रसाद का वितरण किया गया.
किसान फसलों की सुरक्षा के लिए पूजा-अर्चना करते हैं.
फसल की रक्षा के लिए किसान चढ़ाते हैं चितऊ पीठा.
खेतों में गंडेइसुनी (घोंघे) व कस्तुरी की पूजा की गयी.
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