फ़िल्म- सर्कस
निर्देशक – रोहित शेट्टी
कलाकार -रणवीर सिंह, पूजा हेगड़े, वरुण ,जैकलिन, संजय मिश्रा, जॉनी लीवर, ब्रजेश हिरजी, सिद्धार्थ जाधव और अन्य
प्लेटफार्म -सिनेमाघर
रेटिंग – डेढ़
इंडस्ट्री में ब्लॉकबस्टर शेट्टी के नाम से मशहूर निर्देशक रोहित शेट्टी,ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म गोलमाल का सुपरहिट रिमेक बोल बच्चन बना चुके हैं. इस बार वह गुलजार की यादगार कॉमेडी फिल्म अंगूर का रिमेक सर्कस लेकर आए हैं, लेकिन फिल्म को देखने के बाद आपको महसूस होता है कि रोहित शेट्टी अपनी गोलमाल फिल्मों की सीरीज से बाहर ही नहीं निकल पाए हैं. कहीं का ईंट कहीं का रोड़ा इन्होंने अपनी इस फिल्म में जोड़ा है. रोहित शेट्टी की फिल्मों में वैसे भी कभी लॉजिक नहीं होता था, लेकिन इस बार उनका मैजिक भी गायब हो गया है.जिस वजह से उनकी यह फैमिली फिल्म उनके करियर की सबसे कमजोर फिल्म बनकर सामने आयी है.
फिल्म की कहानी 50 से 70 के दशक में स्थापित की गयी है, लेकिन कहानी 80 के दशक की सुपरहिट फिल्म अंगूर से प्रेरित है. हालांकि सर्कस के मेकर्स ने अपनी फिल्म को अंगूर से प्रेरित ना बताकर शेक्सपीयर के प्रसिद्ध नाटक कॉमेडी ऑफ़ एरर पर आधारित बताते आए है. जिस पर अंगूर भी आधारित थी.चूंकि हम सभी ने क्लासिक अंगूर देखी है, तो हम इसकी तुलना से ही करते हैं.
अंगूर की तरह यहां भी फिल्म की कहानी दो जुड़वां बच्चों की है, जो जन्म से बिछड़ जाते हैं. रोहित शेट्टी की इस फिल्म में एक एक्सपेरिमेंट या कहे संदेश देने के लिए अलग कर दिए गए हैं. यह बात फिल्म की कॉमेडी से भी ज्यादा बचकानी लगी है. खैर कहानी पर आते हैं, रॉय (रणवीर )और जॉय (वरुण ) की एक जोड़ी सर्कस में काम करती है. दूसरी जोड़ी का अपना बिजनेस है क्या मालूम नहीं, लेकिन ये जोड़ी एक टी स्टेट को खरीदने के लिए ऊंटी पहुंच जाती है. जहां पहले से सर्कस में काम कर रही रॉय और जॉय की जोड़ी रहती है. फिल्म की कहानी में ये चारों एक जगह आ जाते हैं. इसकी वजह से उलझन पैदा होती है. अंगूर में यह उलझन आपको 40 साल बाद यानि आज भी हंसते -हंसाते आज भी लोटपोट कर देती है, लेकिन इस फिल्म में मुश्किल से हंसी आती है. रोहित शेट्टी ने अपनी सुपरहिट फिल्म गोलमाल के कई किरदारों और उनकी एक्टिंग की उसी स्टाइल को इसमें मिलाया है. कहीं का ईंट कहीं का रोड़ा रोहित शेट्टी ने जोड़ा है. यह बात फिल्म देखते हुए आपको शिद्दत से महसूस होगी. फिल्म की शीर्षक सर्कस है, लेकिन फिल्म में सर्कस की ज़िन्दगी को सही ढंग से दिखाया तक नहीं गया है. सर्कस का मतलब बस रॉय के किरदार का करंट वाले एक्ट तक सीमित रह जाना पूरी फिल्म में रह गया है. यह पहलू भी कहानी का अखरता है.
फिल्म की स्क्रिप्ट बेहद कमजोर है, फिल्म में कब क्या होगा, आपको पहले से पता है. फिल्म को और बोझिल इसके संवाद बना गए हैं. गिने -चुने कॉमेडी पंच आपको फिल्म में सुनने को मिलेंगे. शायद फिल्म के ट्रेलर में जितने पंच थे, वही पूरी फिल्म में है. फिल्म में करंट के इर्द गिर्द कॉमेडी को बुना गया है.
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तकनीकी पहलुओं की बात करें तो फिल्म की 90 प्रतिशत शूटिंग सेट्स पर हुई है. फिल्म के लुक में जिस कलर पैलेट का इस्तेमाल हुआ है. वह बहुत लाउड है. सबकुछ खोखला यानि नकली है. इसके बचाव में मेकर्स यह दलील दे सकते हैं कि कोविड के दौरान उन्होने फिल्म की शूटिंग की थी, लेकिन कोविड जाने के बाद वह इस पर काम तो कर सकते हैं. कम से कम कलर पैलेट पर तो ज़रूर. फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक और गीत-संगीत भी कहानी में ज्यादा प्रभाव नहीं ला पाया है. फिल्म में जमकर रेट्रो गीतों का इस्तेमाल हुआ है. ओरिजिनल गीत करंट लगा में दीपिका नजर आयी हैं.
अभिनय की बात करें तो फिल्म में एक्टर्स की लम्बी फेहरिस्त है, लेकिन फिल्म की कहानी से लेकर स्क्रीनप्ले और कॉमेडी सबकुछ इतना कमज़ोर था कि एक्टर्स को परफॉर्म करने के लिए कुछ नहीं था. जिस वजह से फिल्म में इतने बड़े -बड़े नाम होने के बावजूद यह फिल्म आपको बांध नहीं पायी है. सिद्धार्थ जाधव, संजय मिश्रा की मौजूदगी ज़रूर कुछ राहत बीच -बीच में देती है. कलाकारों की इतनी भीड़ है कि कई कलाकारों को ठीक से स्क्रीन स्पेस भी नहीं मिला है.
इस फिल्म को थिएटर में देखने से अच्छा संजीव कुमार और देवेन वर्मा की अंगूर को एक बार फिर से आप टीवी पर देख लें.