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Ratnagiri Tour: समुद्र करते हैं अठखेलियां जहां

Ratnagiri Tour: अंग्रेजों ने कोनबांग राजवंश के अंतिम बर्मी राजा थिबा को युद्ध में हराकर यहां कैद करके रखा था. इसकी वास्तुकला देखते ही बनती है. यह तीन मंजिला संरचना है, जो लेटराइट और लावा चट्टान से निर्मित है. इसमें बर्मी सागौन से बनी अर्धवृत्ताकार लकड़ी की खिड़कियां हैं.

टिप्पणीकार

सुमन बाजपेयी

दुर्ग से कुछ ही दूरी पर स्थित है थिबा पैलेस, जो कभी बर्मा के राजा का महल हुआ करता था, लेकिन अब एक म्यूजियम है, जिसमें उनसे जुड़ी चीजें संग्रहित हैं. अंग्रेजों ने कोनबांग राजवंश के अंतिम बर्मी राजा थिबा को युद्ध में हराकर यहां कैद करके रखा था. इसकी वास्तुकला देखते ही बनती है. यह तीन मंजिला संरचना है, जो लेटराइट और लावा चट्टान से निर्मित है. इसमें बर्मी सागौन से बनी अर्धवृत्ताकार लकड़ी की खिड़कियां हैं.

‘रत्नों की नगरी’ रत्नागिरी अल्फांसो आम और मछली के उत्पादन व बिक्री के लिए प्रसिद्ध है

इस बार यात्रा पर निकलने का मेरा उद्देश्य था तो पुणे में चल रहे अंतरराष्ट्रीय गणेश फेस्टिवल में शामिल होने का, परंतु वहां आकर भी रत्नागिरी नहीं जा रहीं, तो प्राकृतिक सुंदरता से वंचित रह जायेंगी, टुअर मैनेजर ने मुझसे कहा. फिर शुरू हो गया बस का सफर, जो करीब सात घंटे का था. मुंबई से 350 किमी दूर रत्नागिरी जिला एक तटरेखा है, जो 720 किलोमीटर का बीच वाला हिस्सा है. यह महाराष्ट्र के कोंकण डिवीजन का हिस्सा है. सह्याद्री पर्वत की सुंदर पहाड़ियों से घिरा, ‘रत्नों की नगरी’ रत्नागिरी अल्फांसो आम और मछली के उत्पादन व बिक्री के लिए प्रसिद्ध है. हरियाली यहां जैसे कण-कण में बिखरी है. अचानक बरसने वाली फुहारें, बायोडायवर्सिटी, अरब सागर और बहती ठंडी हवा, यही तो इसे खास पर्यटन स्थल बनाते हैं.

व्यवसायीकरण न होने के कारण तट अभी भी साफ हैं और पानी स्वच्छ

गणपतिपुले मंदिर की ओर जाने वाले रास्ते के एक तरफ पहाड़ियां हैं, जो किसी प्रहरी की तरह खड़ी प्रतीत होती हैं. दूसरी ओर है आरे-वारे बीच. ये जुड़वां समुद्र तट हैं. एक तरफ आरे है जिसका अर्थ है आइए आपका स्वागत है, बीच में पुल और दूसरी तरफ वारे, जिसका अर्थ है हम आप पर वारी जाएं. व्यवसायीकरण न होने के कारण तट अभी भी साफ हैं और पानी स्वच्छ. ऐसा लगा जैसे मैंने किसी दूसरी दुनिया में कदम रखा है. गणपतिपुले मंदिर, जो भगवान गणेश का स्वयंभू मंदिर है, जाने पर लगा जैसे संस्कृति के अन्य पहलू के दर्शन कर रहे हैं. वहां की शांति सुकूनदायक है.

यह मंदिर 400 वर्ष पुराना है. माना जाता है कि कोई 600 वर्ष पहले यहां के गांव के मुखिया को केवड़े के वन में एक शिला को खोदने पर गणेश की यह मूर्ति मिली थी. मंदिर इसलिए भी अनोखा है, क्योंकि यह पश्चिम द्वार मंदिर है. यह भारत के अष्ट गणपति मंदिरों में से एक है. पहाड़ी के आधार पर बने मंदिर की परिक्रमा अवश्य करनी चाहिए, ऐसी मान्यता है. शिला से बने गणपति की नाभि में दो दांत हैं और उन पर गेरुआ रंग लगाया जाता है. इस गांव के लोग गणेश चतुर्थी पर अपने घर गणपति नहीं लाते, क्योंकि वे इसी मूर्ति को अपना गणेश मानकर पूजते हैं.

पास में ही है प्राचीन कोंकण जो साढ़े तीन एकड़ में फैला है. यहां 500 वर्ष पुराने अतीत की तस्वीर बहुत ही कलात्मक ढंग से प्रस्तुत की गयी है. पांच सौ वर्ष पहले कोंकण के लोगों का जीवन, रहन-सहन और समाज कैसा था, यहां इसी को विभिन्न संरचनाओं के माध्यम से दर्शाया गया है. इसमें औषधीय पेड़ नक्षत्रों के अनुसार हैं, यानी किस नक्षत्र के लोगों को कौन-सी पेड़ की पूजा करनी चाहिए या उनके लिए कौन-सा पौधा लाभदायक है. जो दर्शाता है कि 500 वर्ष पहले भी कोंकण के जंगल इतने समृद्ध थे और पेड़ों की पूजा की जाती थी.

शिवाजी महाराज के इस दुर्ग में भगवती का मंदिर है

यहां 400 वर्ष पुराना पीपल का पेड़ भी है और इंद्र का बगीचा भी. रत्नागिरी की यात्रा रत्नदुर्ग देखे बिना अधूरी मानी जाती है. शिवाजी महाराज के इस दुर्ग में भगवती का मंदिर है जिस कारण इसे भगवती किला भी कहा जाता है. एक सौ बीस एकड़ से अधिक क्षेत्रफल में फैला यह किला बहमनी काल में बनाया गया था.

यहां से समुद्र और उस पर तैरती नावों को देखा जा सकता है

वर्ष 1670 में शिवाजी महाराज ने बीजापुर के आदिल शाह से इसे जीता. शिवाजी महाराज के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी ने किले पर कब्जा किया और 1947 तक इस पर शासन किया. अरब सागर और रत्नागिरी बंदरगाह पर यहां से नजर रखी जा सकती है. यह किला अब भग्नावस्था में है और केवल बाहरी दीवार ही देखी जा सकती है. किले के तीनों तरफ अरब सागर है और लाइटहाउस भी. यहां से समुद्र और उस पर तैरती नावों को देखा जा सकता है जो एक मनोरम दृश्य प्रस्तुत करता है.

थिबा पैलेस कभी बर्मा के राजा का महल हुआ करता था

दुर्ग से कुछ ही दूरी पर स्थित है थिबा पैलेस, जो कभी बर्मा के राजा का महल हुआ करता था, पर अब एक म्यूजियम है, जिसमें उनसे जुड़ी चीजें संग्रहित हैं. अंग्रेजों ने कोनबांग राजवंश के अंतिम बर्मी राजा थिबा को युद्ध में हराकर यहां कैद करके रखा था. इसकी वास्तुकला देखते ही बनती है. यह तीन मंजिला संरचना है, जो लेटराइट और लावा चट्टान से निर्मित है. इसमें बर्मी सागौन से बनी अर्धवृत्ताकार लकड़ी की खिड़कियां हैं. यह संग्रहालय रत्नागिरी में वार्षिक कला उत्सव के दौरान जगमगा उठता है.

कैसे पहुंचें

यहां हवाई, रेल व सड़क मार्ग से आसानी से पहुंचा जा सकता है. मुंबई का छत्रपति शिवाजी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा और गोवा का मोपा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा नजदीक है.

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