Jharkhand News : 80 व 90 दशक में सिंहभूम ताम्र पट्टी की जिंदगी आसान व चहल-पहल वाली थी. चारों ओर चकाचक बिजली, अस्पताल, स्कूल और गुलजार ताम्र खदानें थीं. इन खदानों में हजारों कर्मचारी थे. वहीं खदानों के कारण 20 हजार से अधिक लोगों को रोजगार मिलता था. वर्ष 1991 की उदार नीति ताम्र खदानों के लिए कब्रगाह साबित हुई. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तांबे की कीमत घटने से सिंहभूम ताम्र पट्टी की खदानें एक-एक कर बंद होती गयीं. एक ही पल में लाखों लोगों की जिंदगी ठप पड़ गयी. लोगों के पलायन के कारण ताम्र पट्टी वीरान होती गयी. मुसाबनी (ताम्र पट्टी) की स्थिति बदहाल अर्थव्यवस्था व बेरोजगार क्षेत्र के रूप में हो गयी है. खदानों की बंदी के बाद संगठित क्षेत्र में कार्य करने वाले करीब 10 हजार मजदूरों की वीआरएस के नाम पर नौकरी चली गयी. बड़ी संख्या में लोग पलायन कर गये. ताम्र पट्टी की स्थिति पर पढ़िए ये स्पेशल रिपोर्ट.
1991 की उदार नीति से तांबा पर एचसीएल का एकाधिकार खत्म हुआ
जानकारी के अनुसार, वर्ष 1991 में देश में नयी आर्थिक नीति लायी गयी. इसके बाद सार्वजनिक क्षेत्र की एकमात्र तांबा उत्पादक कंपनी एचसीएल का तांबा उत्पादन से एकाधिकार समाप्त हो गया. विदेशों से आयातित तांबा पर एक्साइज ड्यूटी घटा दिया गया. इसके कारण भारत में विदेशी तांबा सस्ता हो गया. एचसीएल को निजी तांबा उत्पादक कंपनियों के साथ विदेशी कंपनियों से चुनौती मिलने लगी. वर्ष 1991 के पूर्व संरक्षण नीति से एचसीएल तांबा का मूल्य खुद निर्धारित करती थी. विदेशी तांबा के आयात पर भारी टैक्स लगा था. 1991 के बाद तांबा का मूल्य लंदन मेटल एक्सचेंज (एलएमइ) से निर्धारित होने लगा.
1998 से शुरू हुई ताम्र खदानों की बंदी
उदार नीति के कारण वर्ष 1996 तक एचसीएल कंपनी विदेशी व निजी तांबा उत्पादक कंपनियों से प्रतिस्पर्धा में पिछड़ गयी. एचसीएल ने अपनी खदानों को आधुनिक बना उत्पादन लागत कम करने में दिलचस्पी नहीं दिखायी. इस कारण 1998 से खदानें एक-एक कर बंद होती गयीं.
मजदूरों को जबरन वीआरएस दिलाया गया
वर्ष 1998 में एशिया की दूसरी सबसे गहरी खदान बानालोपा व बादिया को श्रम मंत्रालय से क्लोजर लेने के बाद बंद कर दिया गया. इन खदानों में कार्यरत अधिकांश मजदूर को जबरन वीआरएस लेना पड़ा. जनवरी, 2000 में केंदाडीह व पाथरगोड़ा खदान को बंद कर मजदूरों को बेरोजगार कर दिया गया. इससे पहले 1998 में ही किशनीगढ़िया खदान को उत्पादन प्रारंभ कर अचानक बंद कर दिया गया.
बिना अनुमति राखा माइंस बंदी का हुआ जोरदार विरोध
7 जुलाई, 2001 में राखा कॉपर खदान को एचसीएल ने बंद कर दिया, जबकि श्रम मंत्रालय से क्लोजर की अनुमति नहीं ली गयी. इसके विरोध में घाटशिला स्टेशन में ऐतिहासिक रेल चक्का जाम किया गया. उसके बाद सभी 700 मजदूरों ने वीआरएस लिया.
पांच साल में 10 हजार मजदूर हो गये बेरोजगार
मुसाबनी खान समूह की अंतिम सुरदा खदान 16 जून, 2003 को बंद कर दी गयी. सुरदा खदान बंदी के साथ सिंहभूम ताम्र पट्टी की सभी खदानें एक-एक कर बंद होती गयीं. पांच वर्ष (1998 से 2003) में खदानों की बंदी से करीब 10 हजार मजदूर असमय बेरोजगार हो गये.
अर्थव्यवस्था हुई चौपट, स्कूल व दुकानें हुई बंद
मुसाबनी में खदानों की बंदी के बाद लोगों के समक्ष संकट आ गया. रोजगार जाने से बड़ी संख्या में लोगों ने पलायन किया. क्षेत्र का विकास ठप हो गया. क्षेत्र में शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार, प्रशिक्षण, स्वच्छता समेत सभी सुविधाएं प्रभावित हो गयीं. वर्ष 1932 में खुला माइंस मिडिल स्कूल, माइंस हाई स्कूल, सुरदा माइंस मिडिल एवं हाई स्कूल को एचसीएल ने बंद कर दिया. मुसाबनी माइंस मिडिल स्कूल में तेलगु, तमिल, ओडिया, बांग्ला, उर्दू, हिंदी, अग्रेजी समेत करीब आधा दर्जन से अधिक भाषाओं की पढ़ाई होती थी. जिन स्कूलों में पहले बच्चे शिक्षा ग्रहण करते थे. आज वहां सीआरपीएफ का जोनल ट्रेनिंग सेंटर संचालित हो रहा है. वहीं सुरदा माइंस स्कूल खंडहर में तब्दील हो गया है.
350 बेड का माइंस अस्पताल हो गया बंद
एचसीएल ने 1986 में ताम्र श्रमिकों व क्षेत्र के लोगों को आधुनिक स्वास्थ्य सेवा देने के लिए 350 बेड का अस्पताल शुरू किया था. खदानों की बंदी के बाद अस्पताल को वर्ष 2002 में बंद कर दिया गया. आज अस्पताल भवन खंडहर के रूप में खड़ा है. खदानों की बंदी का असर सुरदा स्थित प्रशिक्षण केंद्र पर पड़ा. एचसीएल ने इसे बंद कर दिया. खदानों की बंदी से मुसाबनी टाउनशीप की साफ-सफाई व्यवस्था चरमरा गयी है. एचसीएल ने सिवरेज ट्रीटमेंट प्लांट के संचालन से हाथ खींच लिया. असमाजिक तत्वों ने सिवरेज ट्रीटमेंट प्लांट के मोटर व मशीनरी के साथ चहारदीवारी के ईंटों तक चोरी कर ली. खदान बंदी का असर वाटर ट्रीटमेंट प्लांट पर पड़ा. करीब 25 हेक्टेयर में फैला कंपनी तालाब तथा वाटर ट्रीटमेंट प्लांट बदहाल हो गया. टाउनशिप में लोगों को गंदा पानी की आपूर्ति करनी पड़ी.
क्षेत्र के मंदिर और महापुरुषों की मूर्तियां भी प्रभावित
खदानों की बंदी का असर मुसाबनी के मंदिरों पर पड़ा. 1936 में दक्षिण भारतीय कामगारों की ओर से स्थापित शीतला मंदिर, 1954 में स्थापित राम मंदिर, गणेश मंदिर समेत दक्षिण भारतीय व नेपाल के कामगार से स्थापित मंदिरों के संचालन पर असर पड़ा. वहीं महापुरुषों (बिरसा मुंडा, सिदो-कान्हु, वीर कुंवर सिंह, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, रविंद्र नाथ टैगोर, महात्मा गांधी, मजदूर नेता माइकल जॉन, प्रो अब्दुल बारी आदि) की मूर्तियां बदहाल हो गयीं. मुसाबनी में ब्रिटिश उद्योग पतियों की ओर से बनाये गये बंगले व भवन खंडहर में तब्दील हो गये. एचसीएल-आइसीसी की खदानों की बंदी से देश तांबा के उत्पादन से वंचित हो गया. वहीं आण्विक ऊर्जा के लिए बहुमूल्य यूरेनियम के साथ सोना, चांदी, टेलेनियम समेत कई बहुमूल्य धातुओं की प्राप्ति से वंचित हो गया. मुसाबनी की ताम्र खदानों में ताम्र अयस्क के साथ यूरेनियम, सोना, चांदी समेत अन्य धातु पाया जाता है. यूसिल ने मुसाबनी क्रशर प्लांट, टीपीएसबी प्लांट बेनाशोल व राखा क्रशर प्लांट के सभी टेलिंग से यूरेनियम प्राप्त करने को रिकवरी प्लांट लगाया था. खदानों की बंदी के साथ तीनों क्रशर प्लांट व रिकवरी प्लांट बंद हो गये.
अब तांबे का मूल्य बढ़ा, लेकिन मुसाबनी लाभ से वंचित
पिछले कुछ वर्षों में स्थिति बदली है. अब एलएमइ में तांबे के मूल्यों में भारी उछाल आया है. हालांकि इसका लाभ सिंहभूम ताम्र पट्टी उठा नहीं पा रही है. यहां तांबे का अकूत भंडार मौजूद है. तांबे के मूल्यों में जबरदस्त तेजी है. वहीं अधिकांश ताम्र खदानें बंद है. क्षेत्र में बेरोजगारी चरम पर है. क्षेत्र के युवा पलायन को विवश हैं. भारत के साथ पूरा विश्व ग्रीन एनर्जी, क्लीन एनर्जी के लिए पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों का विकल्प तलाश रहा है. कोयला व पेट्रोलियम से निर्मित ताप विद्युत के स्थान पर सोलर ऊर्जा, पवन ऊर्जा व परमाणु ऊर्जा पर निर्भरता बढ़ रही है. इलेक्ट्रिकल वाहनों का प्रचलन बढ़ रहा है. इलेक्ट्रॉनिक वाहनों में तांबा का उपयोग चार गुना अधिक होता है. ऐसे में तांबे की मांग आने वाले दिनों में बढ़ेगी. ऐसे में सिंहभूम ताम्र पट्टी की खदानें फिर से खोलकर क्षेत्र में रोजगार के साथ देश में तांबा की मांग को पूरा कर सकता है.
रिपोर्ट : अशोक सतपति, मुसाबनी, पूर्वी सिंहभूम