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ईरान और पाकिस्तान के बीच टकराव

पाकिस्तान, ईरान और अफगानिस्तान हमारे पड़ोस में हैं. इसलिए भारत की आशा यही रहेगी कि दोनों देशों का टकराव आगे नहीं बढ़े और कोई बड़ा संकट पैदा न हो. इस संबंध में कूटनीतिक प्रयासों से तनावों का हल निकालने की कोशिश की जानी चाहिए.

By डॉ धनंजय | January 19, 2024 4:10 AM
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दुनिया के विभिन्न हिस्सों, खासकर पश्चिम एशिया, में बढ़ते भू-राजनीतिक संघर्षों और तनावों के बीच ईरान और पाकिस्तान के बीच टकराव एक चिंताजनक विषय है. बीते मंगलवार को ईरान ने ड्रोन एवं मिसाइलों से पाकिस्तानी सीमा में लगभग 50 किलोमीटर भीतर जैश-ए-अदल नामक एक आतंकी संगठन के दो ठिकानों पर हमले किये. इसे अपनी वायु सीमा का उल्लंघन बताते हुए पाकिस्तान ने ईरान के राजदूत, जो इन दिनों ईरान में हैं, को वापस आने से मना कर दिया है और अपने राजदूत को भी तेहरान से वापस बुला लिया है. ईरानी हमलों के जवाब में पाकिस्तान ने भी ईरान की एक सीमावर्ती बस्ती पर हमले किये हैं. पाकिस्तान में ठिकाने बनाकर जैश-ए-अदल लंबे समय से ईरान के सैनिकों और सुरक्षाकर्मियों को निशाना बनाता रहा है. हालांकि दोनों देश एक-दूसरे पर आतंकी गिरोहों को शरण देने का आरोप लगाते रहे हैं, लेकिन यह पहला मौका है, जब आधिकारिक तौर पर दोनों देशों ने एक-दूसरे के खिलाफ सैन्य कार्रवाई की है. दोनों देशों के बीच यह टकराव ऐसे समय में हुआ है, जब पश्चिम एशिया में इस्राइल-हमास संघर्ष और गाजा में इस्राइल के लगातार हमले से एक बड़े क्षेत्रीय युद्ध की आशंका गहराती जा रही है. लाल सागर में हूथी समूह की पाबंदी और अमेरिका की सैन्य प्रतिक्रिया के चलते वहां स्थिति अनियंत्रित होती जा रही है.

पाकिस्तान द्वारा आतंकी गिरोहों को संरक्षण और समर्थन देने तथा पड़ोसी देशों के विरुद्ध उनका इस्तेमाल करने के कारण उसके संबंध केवल भारत से ही नहीं, बल्कि अफगानिस्तान और अब ईरान से भी बिगड़ चुके हैं. ईरान और पाकिस्तान के संबंध उतने खराब नहीं थे, लेकिन इन हमलों से यह इंगित होता है कि ईरान में पाकिस्तान से संचालित गिरोहों को लेकर क्षोभ गहरा हुआ है और उसकी सहनशक्ति जवाब देने लगी है. ताजा प्रकरण पाकिस्तान के लिए भी चिंता की बात होनी चाहिए. लंबे समय से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आतंकवाद को प्रश्रय देने के ठोस आरोप पाकिस्तान पर लगते रहे हैं. आतंकी समूहों को वित्तीय सहायता देने और हथियार मुहैया कराने के लिए तो उसके विरुद्ध आधिकारिक कार्रवाई हो चुकी है. अनेक गिरोह और सरगना ऐसे हैं, जिन पर संयुक्त राष्ट्र की पाबंदियां हैं, लेकिन वे पाकिस्तान में खुलेआम सक्रिय रहते हैं. पाकिस्तान को आतंक को समर्थन देने की अपनी नीति को छोड़ देना चाहिए. हम देख रहे हैं कि वह भारी आर्थिक संकट में फंसा हुआ है और आम पाकिस्तानियों की जिंदगी बदतर होती जा रही है. मुल्क अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और कुछ देशों के अनुदान पर चल रहा है. साल 2020 में तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल कमर जावेद बाजवा ने कहा था कि देश को भू-आर्थिक नीतियों को अपनाना चाहिए. यही पाकिस्तान के हित में होगा और इससे दक्षिण और मध्य एशिया में शांति एवं स्थिरता को भी बल मिलेगा.

पाकिस्तानी सरकार और सेना की आतंकवाद समर्थक नीतियों से एक देश के रूप में पाकिस्तान तथा वहां की अवाम को भी बड़ा नुकसान हुआ है. वहां कई तरह के आतंकी समूह हैं, जो पाकिस्तानी सुरक्षाबलों और निर्दोष नागरिकों को भी निशाना बनाते हैं. पाकिस्तान से अलग होने की मांग करने वाले संगठन भी है. इन आतंकियों के संबंध तस्करों, अपराधियों और हवाला ऑपरेटरों से भी होते हैं. बीते दो सालों में वहां बड़ी संख्या में आतंकी हमले हुए हैं. अभी वहां चुनाव होने वाले हैं. आंतरिक राजनीतिक टकरावों के कारण अशांति का माहौल है. ईरानी हमलों के जवाब में उसने जो कार्रवाई की है, उसका खास मतलब नहीं है. यह केवल पाकिस्तानी जनता को दिखाने के लिए किया गया है. पाकिस्तान का दावा है कि इन हमलों में बड़ी संख्या में कथित आतंकी मारे गये हैं, लेकिन ईरान की ओर से कहा गया है कि कुछ लोगों की जान गयी है, जिनमें कोई भी ईरानी नागरिक नहीं था. मरने वाले पाकिस्तानी या अफगान शरणार्थी थे.

पाकिस्तान अगर यह समझ रहा है कि चीन के अलावा बाकी पड़ोसियों से संबंध बिगाड़ कर आगे बढ़ जायेगा या वैश्विक स्तर पर एक सम्मानजनक स्थान प्राप्त कर लेगा, तो यह उसकी भूल है. इतिहास में ऐसा कभी किसी देश के साथ नहीं हुआ है. ईरान से तनातनी का माहौल तो कुछ दिन रहेगा, लेकिन आशा है कि यह किसी बड़े संघर्ष में नहीं बदलेगा. वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की सालाना बैठक के सिलसिले में पाकिस्तान के कार्यकारी प्रधानमंत्री और ईरान के विदेश मंत्री दावोस में हैं. वहां इन दोनों की मुलाकात हुई है. ईरानी विदेश मंत्री ने पाकिस्तानी विदेश मंत्री से भी फोन पर बात की है. ऐसे में मुझे लगता है कि अब मामला इससे आगे नहीं बढ़ना चाहिए और कुछ समय के बाद दोनों देशों के राजदूत भी अपना काम संभाल लेंगे. भारतीय विदेश मंत्रालय ने इस टकराव पर संतुलित बयान जारी किया है. भारत का यह कहना उचित है कि यह दो देशों का आपसी मामला है, इसलिए इस पर कोई टिप्पणी नहीं की जा सकती है. यह कहने में एक संदेश छुपा है कि दोनों देश आपस में बातचीत से निर्णय करें. पर भारत ने यह भी कहा है कि आतंक को किसी भी तरह बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए. यह कह कर भारत ने पाक अधिकृत कश्मीर में की गयी अपनी सैन्य कार्रवाई की ओर एक संकेत दिया है.

पाकिस्तान, ईरान और अफगानिस्तान हमारे पड़ोस में हैं. इसलिए भारत की आशा यही रहेगी कि दोनों देशों का टकराव आगे नहीं बढ़े और कोई बड़ा संकट पैदा न हो. इस संबंध में कूटनीतिक प्रयासों से तनावों का हल निकालने की कोशिश की जानी चाहिए. पाकिस्तान को स्पष्ट संदेश अपने पड़ोसी देशों और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को देना चाहिए कि आतंक के लिए वह अपनी जमीन का इस्तेमाल नहीं होने देगा. ईरान को भी परिपक्व व्यवहार करना चाहिए. एक सप्ताह में उसने सीरिया, इराक और पाकिस्तान में मिसाइल और ड्रोन से हमले किये हैं. पाकिस्तान एक परमाणु शक्ति संपन्न देश है, तो ईरान भी एक बड़ी सैन्य ताकत है. अभी रूस-यूक्रेन युद्ध के थमने के आसार नहीं दिख रहे हैं. उस युद्ध के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था को झटका तो लगा ही है, अनेक भू-राजनीतिक तनाव भी गहरे हो गये हैं. उसके बाद पश्चिम एशिया में बड़े युद्ध की आशंका मंडरा रही है. गाजा में मरने वालों की संख्या 24 हजार से अधिक हो चुकी है. लाल सागर संकट के कारण तेल समेत विभिन्न चीजों के दाम बढ़ने लगे हैं. सैन्य टकराव का डर तो है ही. ऐसे में ईरान और पाकिस्तान की तनातनी दुनिया के लिए एक और बुरी खबर है.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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