Loading election data...

Election Results 2023: तेलंगाना में सत्ता परिवर्तन, पढ़ें खास रिपोर्ट

हालांकि, केसीआर सरकार ने जन कल्याण की कई सफल योजनाओं को चलाया. राज्य में सिंचाई व्यवस्था भी बहुत बेहतर हुई है. फिर भी मतदाताओं के एक हिस्से में नाराजगी थी. इसकी सबसे बड़ी वजह थी कि उन्होंने एक राजा की तरह पूरे घमंड के साथ शासन चलाया.

By मोहन गुरुस्वामी | December 4, 2023 8:43 AM
an image

साल 2014 में तेलंगाना के गठन के बाद से केसीआर के नेतृत्व में सरकार चल रही थी. अब कांग्रेस की सरकार बनना तय हो चुका है. हालांकि केसीआर सरकार ने जन कल्याण की कई सफल योजनाओं को चलाया. राज्य में सिंचाई व्यवस्था भी बहुत बेहतर हुई है. फिर भी मतदाताओं के एक हिस्से में नाराजगी थी. इसकी सबसे बड़ी वजह थी कि उन्होंने एक राजा की तरह पूरे घमंड के साथ शासन चलाया. इससे जनता से उनकी एक दूरी बनी. उन्होंने अपनी पार्टी से ऐसे लोगों को विधायक बनाया, जो धनवान थे. लोगों की नाराजगी ज्यादातर विधायकों से ही थी. हार की एक खास वजह यह भी रही है. जहां तक कांग्रेस की जीत की बात है, तो पहली चीज यह ध्यान में रखी जानी चाहिए कि कांग्रेस के अलावा कोई और पार्टी केसीआर को चुनौती देने की हालत में नहीं थी. भाजपा को लेकर राज्य में कोई उत्साह नहीं था. समूचे दक्षिण में ही भाजपा को खारिज करने का भाव है. मुस्लिम समुदाय का वोट ओवैसी की मजलिस की वजह से तेलंगाना राज्य समिति (जो बाद में भारत राष्ट्र समिति बन गया) को मिलता आया था. वह वोट इस बार बड़ी संख्या में कांग्रेस की ओर मुड़ा है. वह वोट भाजपा में तो जा नहीं सकता था.

उल्लेखनीय है कि तेलंगाना में भारत जोड़ो यात्रा को बड़ी कामयाबी मिली थी. राहुल गांधी की उस यात्रा ने पार्टी के नेताओं, कार्यकर्ताओं और समर्थकों में नये उत्साह का संचार तो किया है, जनता में भी उसका असर हुआ. मैंने खुद देखा कि जो कांग्रेसी सुस्त पड़े हुए थे, वे बाहर निकले और उन्होंने खूब मेहनत की. प्रधानमंत्री मोदी की वजह से आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा को एक-दो सीटें मिल सकती हैं, लेकिन राज्य में मुख्य मुकाबला कांग्रेस और केसीआर की भारतीय राष्ट्र समिति के बीच में ही होगा. अगर केसीआर भाजपा के साथ किसी तरह का गठबंधन बनायेंगे, तो उनका बचा-खुचा मुस्लिम वोट भी कांग्रेस के पाले में चला जायेगा और ओवैसी को भी उनका साथ छोड़ना पड़ेगा. इस चुनाव में ओवैसी को भी कुछ झटका लगा है क्योंकि कांग्रेस ने यह प्रचार किया कि केसीआर और भाजपा मिले हुए हैं तथा ओवैसी भी केसीआर के जरिये भाजपा से जुड़े हुए हैं. कांग्रेस ने कहा कि इन दोनों को वोट देना असल में भाजपा को ही वोट देना है. इस प्रचार का लाभ भी कांग्रेस को मिला है.

भाजपा के लिए दक्षिण भारत में आधार बढ़ाना अभी मुश्किल लग रहा है. भाजपा अगर हिंदी को लेकर आक्रामक होती है, तो उसका विरोध बढ़ता ही जायेगा. लोकसभा की सीटों की संख्या बढ़ाने के मामले को लेकर भी दक्षिण में आशंका है. अगर उत्तर और दक्षिण भारत के बीच दुर्भाग्य से खाई बढ़ती है, तो इसका सीधा असर देश की विकास यात्रा पर होगा. उम्मीद की जानी चाहिए कि भाजपा वैसे संवेदनशील मुद्दों को आगे लाने की कोशिश नहीं करेगी, जिससे दक्षिण में भावनाएं भड़कें. भाजपा अपनी बढ़त के एक नये चरण में है. उसके लिए 2024 जीतना कोई बहुत मुश्किल नहीं होना चाहिए क्योंकि उत्तर भारत में उसकी स्थिति सुदृढ़ है. ऐसे में उसे समझदारी दिखाते हुए दक्षिण भारत में ऐसी भावनाएं नहीं पैदा करनी चाहिए, जिससे अस्थिरता पैदा हो. हिंदी पट्टी में उसकी मुख्य चुनौती बिहार है, जहां की सामाजिक संरचना उस क्षेत्र के अन्य राज्यों से कुछ भिन्न है.

बहरहाल, तेलंगाना की जीत कांग्रेस के लिए कुछ राहत की बात है, पर उसे और विपक्ष के गठबंधन को नये सिरे से अपनी राजनीति और रणनीति पर विचार करना चाहिए. तेलंगाना में बड़ी उम्मीद के साथ लोगों ने उसे वोट दिया है. कांग्रेस ने भी बड़े-बड़े वादे किये हैं. उन्हें पूरा करना आसान नहीं होगा. भाजपा की सरकारों को भी मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में इस चुनौती का सामना करना होगा. लेकिन उन्हें केंद्र सरकार की मदद भी मिलेगी, जो तेलंगाना की कांग्रेस सरकार को उतनी नहीं मिल पायेगी.

Also Read: परिणामों का राजनीति पर दूरगामी असर

Exit mobile version