Exclusive: छोटी-छोटी सफलताओं और असफलताओं से निरंतर सीख रहा हूं- वरुणेंद्र त्रिवेदी

वरुणेंद्र त्रिवेदी इन दिनों फिल्म पिंजरे की तितलियां’ को लेकर सुर्खियों में है. उन्होंने बताया कि, तरण सर ने इस फिल्म की चर्चा की और जब उन्हें पता चला कि मैं लिरिक्स राइटिंग का भी काम करता हूं, तो उन्होंने मुझे फिल्म का टाइटल सॉन्ग लिखने की जिम्मेदारी दे दी.

By कोरी | June 18, 2023 3:50 PM

पिछले दिनों आयी फिल्म ‘पिंजरे की तितलियां’ न सिर्फ अपनी स्क्रिप्ट, बल्कि अपने टाइटल सॉन्ग की वजह से भी काफी चर्चा में है. चंडीगढ़ फिल्म फेस्टिवल सहित अन्य विभिन्न मंचों पर इसे काफी सराहना मिल रही है. दर्शकों ने भी लीक से हट कर होने के बावजूद इस फिल्म को काफी पसंद किया है. इसका पूरा श्रेय जाता है- इसे लिखने वाले बॉलीवुड के नवोदित पटकथा लेखक सह गीतकार वरुणेंद्र त्रिवेदी को. पेश है यूपी के एक छोटे-से शहर हरदोई के रहने वाले वरुणेंद्र से इस फिल्म और अब तक के उनके फिल्मी सफर को लेकर रचना प्रियदर्शिनी से हुई बातचीत के प्रमुख अंश.

क्या ‘पिंजरे की तितलियां’ आपकी पहली कमर्शियल फिल्म है या इससे पहले भी आपने किसी फिल्म के लिए लिखा है?

जी हां, ‘पिंजरे की तितलियां’ से पहले मुझे सेक्रेड गेम्स-1 के लिए दो गाने लिखने का मौका मिल चुका है. इनमें से पहला गाना था, ‘लबों से छूकर…’ और दूसरा ‘डांस कैपिटल…’. इन गानों को लिखने का ऑफर मुझे म्यूजिक कंपोजर रचिता अरोड़ा जी की ओर से मिला था. इसके लिए मैं हमेशा उनका आभारी रहूंगा. इसके अलावा, मैंने ‘जजमेंटल है क्या’ मूवी के लिए भी उसका टाइटल सॉन्ग और उसमें शामिल एक रेट्रो सॉन्ग लिखा है. हां, अगर स्क्रिप्ट राइटिंग की बात करूं, तो इस लिहाज से ‘पिंजरे की तितलियां‘ मेरी पहली फिल्म है.

क्या बचपन से ही फिल्मों में आना चाहते थे?

मैंने तो कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि मैं फिल्मी दुनिया का हिस्सा बनूंगा. मैं तो सैनिक परिवार का हिस्सा हूं. मेरे पिताजी और दादाजी-दोनों ही सेना में थे. उनकी शुरुआती पोस्टिंग गाजियाबाद में थी, तो नर्सरी से आठवीं तक की मेरी पढ़ाई वही से हुई. फिर हमलोग हरदोई शिफ्ट हो गये. बाकी आगे की पढ़ाई मैंने वहीं से पूरी की. ग्रेजुएशन के बाद आइटीआइ से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा और कंप्यूटर हार्डवेयर में डिप्लोमा किया. इन सबके बीच फिल्म या मीडिया तो कहीं दूर-दूर तक नहीं था. हां, एक ख्वाहिश जरूर थी (हंसते हुए) दरअसल, मैं ग्रामीण पृष्ठभूमि से जुड़ा हुआ इंसान हूं, तो जब भी मैं किसी को सूट-बूट पहने देखता, तो सोचता कि किसी तरह एक अच्छी-सी नौकरी मिल जाये.

गाने लिखने का शौक कैसे हो गया?

मेरे छोटे फूफाजी स्व सत्येंद्र नाथ मिश्रा को कविताएं लिखने का बड़ा शौक था. उनके असामयिक निधन के बाद हमारी छोटी बुआजी हमारे साथ हरदोई में ही आकर रहने लगीं. वह अपने साथ फूफाजी की वो सारी डायरियां भी लेकर आयी थीं, जिनमें उन्होंने कविताएं लिखी थीं. उन्हीं को पढ़ कर पहली बार कविताओं से मेरा परिचय हुआ. मुझे उन्हें पढ़ना बड़ा अच्छा लगता था. धीरे-धीरे मैं खुद भी कविताएं लिखने की प्रैक्टिस करने लगा. मेरी रचनात्मकता को निखारने में मेरे दादाजी हरीशचंद्र द्विवेदी का भी बड़ा योगदान है. सेना से रिटायर होने के बाद वह रोज रात में हम सभी बच्चों को कहानियां या भजन सुनाया करते थे. उन कहानियों और भजनों ने मेरे भीतर संवेदनाओं के बीज बोने और उन्हें शाब्दिक रूप से अभिव्यक्त करने में काफी अहम भूमिका अदा की है. साल 2011-12 में मैंने कविता लिखना शुरू किया. उस वक्त बस इतनी ही ख्वाहिश थी कि किसी तरह अपनी एक किताब छपवा लूं और चार लोग मुझे जानने लगे.

अपने शुरुआती संघर्षों के बारे में बताएं?

गाहे-बगाहे अपने अनुभवों को फेसबुक पर भी साझा किया करता था. एक दिन अचानक से एक सिने हाउस मुंबई आने का ऑफर मिला. उसे पाकर मुझे ऐसा लगा, मेरी किस्मत को मानो पंख मिल गये हों. उस वक्त उनलोगों के कहने पर मैंने अपनी तत्कालीन नौकरी से इस्तीफा भी दे दिया और मुंबई जाने के दिन गिनने लगा, पर कई महीने बीतने के बाद जब आगे कोई रेस्पॉन्स नहीं मिला, तब मैंने अपने स्तर से जांच-पड़ताल शुरू की. तब पता चला कि मैं ठगा गया हूं. उस दिन मैं काफी दुखी हुआ. कई दिनों तक रोता रहा. फिर धीरे-धीरे खुद को संभाला और अपने आप से एक वादा किया कि आगे से कोई भी निर्णय जल्दबाजी में नहीं, बल्कि सोच-समझ कर लूंगा. कुछ समय बाद दिल्ली के एक मीडिया हाउस से ऑफर मिला. पिछले अनुभव से सीख कर काफी दिनों तक तो मैंने कोई रिस्पॉन्स ही नहीं दिया, पर उनलोगों द्वारा बार-बार कॉल करने के कारण मैं किसी तरह ट्रेन के जनरल डिब्बे में सवार होकर डरते-डरते वहां पहुंचा.

फिल्मों में पहला ब्रेक कब और कैसे मिला?

दिल्ली पहुंचने पर जिस मीडिया कंपनी ने मुझे बुलाया था, उसके मालिक रुद्र रवि शर्मा ने मेरा तगड़ा वाला इंटरव्यू लिया, जिसमें मैं सफल रहा. सैलरी हालांकि कम थी, लेकिन मैं खुश था कि चलो, छोटी ही सही, पर कहीं से शुरुआत तो हुई. कुछ समय तक वहां जॉब करने के बाद मुझे गुड़गांव की एक मीडिया कंपनी से ऑफर मिला. वह कंपनी ‘गुड़गांव’ नाम से ही अनुराग कश्यप की एक मूवी के गाने कंपोज कर रही थी. रुद्र भइया से जब मैंने पूछा, तो उन्होंने मेरे करियर ग्रोथ को देखते हुए सहर्ष ही अनुमति दे दी. इसके लिए मैं हमेशा उनका आभारी रहूंगा. मैंने भी उस मूवी के लिए दो गाने लिखे थे, पर किन्हीं कारणों से वे गाने मूवी में शामिल नहीं हो सके. मैं सच कहूं, तो उस दौर में मैं ऐसी छोटी-छोटी सफलताओं और असफलताओं से निरंतर सीख रहा था.आज भी सीखता हूं. सुबह गुड़गांव वाली कंपनी में राइटर-एडिटर का काम करता था और रात में घर लौटने पर स्क्रिप्ट राइटिंग की प्रैक्टिस किया करता था. हर दिन अपना बेस्ट देने की कोशिश करता था.

इसके अलावा और कौन-कौन से प्रोजेक्ट हैं?

अभी मैं दो टीवी सीरियल और कुछ मूवीज के स्क्रिप्ट पर काम कर रहा हूं. बहुत जल्द ही वो आपको पर्दे पर देखने को मिलेंगी. मैंने कुछ प्राइवेट रेडियो चैनल्स जैसे कि ’रेडियो करंट’ और ’रेडियो संस्कृति’ के लिए जिंगल्स भी लिखे हैं.

इंडियन या वेस्टर्न कौन-सा सिनेमा आपको ज्यादा प्रभावित करता है?

लिरिक्स राइटिंग की बात करूं, तो मुझे गुलजार साहब सबसे ज्यादा प्रभावित करते हैं. इनफैक्ट, उन्हें मैं अपना रोल मॉडल मानता हूं, लेकिन स्क्रिप्ट राइटिंग के मामले में मुझे बॉलीवुड जरा भी प्रभावित नहीं करता है. यहां सारी मूवीज लगभग एक जैसी ही होती हैं. जो कुछ थोड़ी-बहुत अलग हैं भी, तो पता चलेगा वो हॉलीवुड से कॉपी की गयी हैं. इसी वजह से मुझे हॉलीवुड के स्क्रिप्ट राइटर्स ज्यादा प्रभावित करते हैं. मेरा मानना है कि जब आप क्रिएटिव काम कर रहे हैं, तो आपको ऑल राउंडर बनना होगा. हर तकनीक में दक्ष भले न हों, पर सबकी थोड़ी-बहुत जानकारी जरूर रखनी चाहिए. तभी आप अपना बेस्ट दे पायेंगे. एक लेखक दरअसल आधा निर्देशक होता है और इसी तरह से एक निर्देशक आधा लेखक.

अपनी यूएसपी क्या मानते हैं?

मैं आपको बताऊं कि मैं स्क्रिप्ट राइटिंग और लिरिक्ट राइटिंग-दोनों करता हूं. (हंसते हुए) यानी निर्माता के पैसे बचा सकता हूं. बहुत कम ही लोग ऐसा करते हैं. साथ ही मैं हमेशा कुछ नया सीखने की कोशिश करता रहता हूं.

पिंजरे की तितलियां’ से कब और किस तरह जुड़ना हुआ?

एक सीरियल के सिलसिले में मेरी मुलाकात तरण बल से हुई, जो कि इस फिल्म के क्रिएटिव प्रोड्यूसर हैं. मैं उन्हें एक टीवी शो का स्क्रिप्ट देने गया था. हालांकि, वह सेलेक्ट नहीं हुआ. बातों ही बातों में तरण सर ने इस फिल्म की चर्चा की और जब उन्हें पता चला कि मैं लिरिक्स राइटिंग का भी काम करता हूं, तो उन्होंने तुरंत मुझे फिल्म का टाइटल सॉन्ग लिखने की जिम्मेदारी दे दी. मजेदार बात यह है कि जब कुछ दिनों बाद मैं उन्हें अपना लिखा गाना सुनाने गया, तो वे उससे इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने अपनी फिल्म का नाम बदल कर ’पिंजरे की तितलियां’ रख दिया. साथ ही उसके अनुसार मुझे फिल्म की स्क्रिप्ट में फेरबदल करने की भी छूट दी.

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