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सहकारिता से समाधान

किसान की खेती और कमाई की एक सुचारु व्यवस्था जारी रहे और वह कर्ज के चंगुल में न फंसे, इसके लिए सहकारिता की व्यवस्था कारगर साबित हो सकती है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के गांवों और किसानों के विकास के लिए सहकारिता क्षेत्र की भूमिका को महत्वपूर्ण बताया है. पिछले सप्ताह 17वें भारतीय सहकारिता सम्मेलन में सहकारिता को देश के सामाजिक और आर्थिक बदलाव के लिए अहम बताया गया. कृषि प्रधान देश होने के नाते भारत में सहकारिता क्षेत्र के महत्व को गुलामी के दौर में ही समझ लिया गया था. 18वीं सदी में शुरू हुई औद्योगिक क्रांति ने भारत में ग्रामोद्योगों की कमर तोड़ दी, और ग्रामवासियों के लिए कृषि आजीविका का सबसे बड़ा साधन बन गयी, लेकिन विभिन्न कारणों से कृषि का काम गैर-लाभकारी होता गया और किसान साहूकारों के चंगुल में फंसते गये. ऐसे में किसानों के लिए सस्ता कर्ज उपलब्ध कराने की एक वैकल्पिक व्यवस्था की जरूरत महसूस की जाने लगी और सहकारी संस्थाओं का उदय होता गया. आजादी के बाद जब देश में मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया गया, तो उसमें सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के साथ-साथ सहकारी क्षेत्र को भी शामिल किया गया.

भारतीय सहकारी विकास निगम, भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (नैफेड), भारतीय किसान उर्वरक सहकारी लिमिटेड (इफ्को) तथा अमूल जैसी सहकारी संस्थाओं की बदौलत भारत में गांवों और किसानों का जीवन बेहतर हुआ है. अभी देश में लगभग 10 लाख सहकारी समितियां हैं, जिनमें से एक लाख से ज्यादा वित्तीय सहकारी समितियां हैं, लेकिन कुप्रबंधन, गैर-जवाबदेही और भ्रष्टाचार जैसे कारणों से कई सहकारी या कोऑपरेटिव बैंक बंद हो गये. सहकारिता सम्मेलन में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने भी कहा कि एक समय था, जब सहकारी समितियां भ्रष्टाचार, कुव्यवस्था और राजनीति में लिप्त रहती थीं, लेकिन अब सुधारों से यह क्षेत्र समृद्धि की ओर अग्रसर है.

इन प्रयासों में वर्ष 2021 में सहकारिता क्षेत्र की देख-रेख के लिए एक नये सहकारिता मंत्रालय का गठन करने जैसे फैसले शामिल हैं. भारत में कृषि की स्थिति को लेकर चिंता जतायी जाती रही है. अक्सर ऐसा सुनने में आता है कि खेती अब फायदे का काम नहीं रहा और किसान खेती छोड़ रहे हैं. किसानों के आत्महत्या करने की खबरों से भी ऐसी चिंताओं को बल मिलता है. किसान की खेती और कमाई की एक सुचारु व्यवस्था जारी रहे और वह कर्ज के चंगुल में न फंसे, इसके लिए सहकारिता की व्यवस्था कारगर साबित हो सकती है. सहकारिता क्षेत्र की मजबूती से किसानों की आर्थिक सुरक्षा और देश की खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी.

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