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गर्म पानी और काढ़ा के भरोसे कोरोना से जंग लड़ रहा बिहार का एक गांव, नहीं पहुंची स्वास्थ्य सेवाएं, टीका को लेकर भी है भ्रांतियां

झील टोला गांव की कहानी अनोखी है. वह इसलिए कि यहां पहुंचकर कोरोना से जंग लड़ने की हिम्मत मिलती है. जब जीने के सारे रास्ते बंद हो जायें तो कैसे अपने बुलंद हौसले और देसी नुस्खे के भरोसे जिंदगी की बाजी जीती जाये, वह कोई इनसे सीखे. शहर से सटे इस गांव के लोग कोरोना से खुद ही जंग लड़ रहे हैं. वह भी खांटी देसी तरीके से. बीमार भी पड़ रहे हैं, लेकिन ठीक भी हो रहे हैं. कोरोना की जद में आये शहरी बाबू जहां लाखों खर्च के बावजूद अपनी जान बचा नहीं पा रहे, वहीं इस गांव के लोग महज काढ़ा और गर्म पानी के भरोसे कोरोना को मात देने में जुटे हुए हैं.

By Prabhat Khabar News Desk | May 24, 2021 1:53 PM

अरुण कुमार, पूर्णिया: झील टोला की कहानी अनोखी है. वह इसलिए कि यहां पहुंचकर कोरोना से जंग लड़ने की हिम्मत मिलती है. जब जीने के सारे रास्ते बंद हो जायें तो कैसे अपने बुलंद हौसले और देसी नुस्खे के भरोसे जिंदगी की बाजी जीती जाये, वह कोई इनसे सीखे. शहर से सटे इस गांव के लोग कोरोना से खुद ही जंग लड़ रहे हैं. वह भी खांटी देसी तरीके से. बीमार भी पड़ रहे हैं, लेकिन ठीक भी हो रहे हैं. कोरोना की जद में आये शहरी बाबू जहां लाखों खर्च के बावजूद अपनी जान बचा नहीं पा रहे, वहीं इस गांव के लोग महज काढ़ा और गर्म पानी के भरोसे कोरोना को मात देने में जुटे हुए हैं.

हम बात कर रहे हैं पूर्णिया शहर से सटे झील टोला की. शहर के आखिरी छोर पर बसे इस टोले में आदिवासियों की बड़ी आबादी बसती है. दोपहर का समय. गांव में सन्नाटा पसरा है. कुछ लोग पेड़ के नीचे बैठे हैं, तो कुछ महिलाएं घर के बाहर खटिया पर लेटी हुई हैं. न कोई डर न कोई संशय. एक गुमटी में कुछ लोग सामान भी खरीद रहे हैं. हमने पूछा यहां कोई कोरोना से बीमार भी है? जवाब मिलता है- बीमार तो है पर किसे पता कोरोना से है या और किसी कारण से!

क्या टेस्ट नहीं कराया? नहीं. यह संक्षिप्त जवाब दीनू हांसदा का है. वह कहता है कि हमलोग खाने-कमाने वाले हैं. लॉकडाउन में काम-धंधा बंद है. पैसे नहीं हैं इलाज कराने के लिए. इसलिए जड़ी-बूटी से ही काम चलाते हैं. बातचीत में पता चला कि कोरोना टेस्ट करने के लिए प्रशासनिक स्तर से यहां अबतक कोई नहीं आया है. जागेश्वर उरांव कहते हैं- इस टोले के लोग बीमार जरूर हैं लेकिन ठीक भी हो रहे हैं. यहां के लोगों को जड़ी-बूटी की पहचान है. सर्दी-खांसी होने पर गुरुजलत्ती (गिलोय), हल्दी, तुलसी का पत्ता और गोलमरीच का काढ़ा बनाते हैं. इधर कोरोना के फैलने से लोग काढ़ा के साथ-साथ गर्म पानी का भी सेवन करने लगे हैं.

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कोरोना के टीके को लेकर लोगों में अभी कई भ्रांतियां फैली हुई हैं. नतीजा यह है कि करीब दो हजार आबादी वाले इस टोले में मात्र पांच फीसदी लोगों ने टीका लगवाया है. झील टोला की सेविका रानी देवी कहती हैं कि लोगों को समझाते-समझाते थक गयी हूं, लेकिन कोई टीका लेने को तैयार नहीं होता है. लोगों का कहना है कि जो टीका लेता है वह भी मरता है और जो नहीं लेता है वह भी मरता है. इसलिए टीका नहीं लेंगे. रानी देवी कहती हैं कि दो दिन आंगनबाड़ी सेंटर में टीकाकरण अभियान चलाया गया, लेकिन मुश्किल से सौ के करीब लोग ही टीका के लिए राजी हुए.

कहते हैं कि पहली बार टीका लेने के बाद एक महिला को तेज बुखार आ गया. इसके बाद गांव के लोग डर गये. तभी से लोग टीका लेने से परहेज करने लगे हैं. इस टोले में 45 से ऊपर के लोगों के लिए टीकाकरण अभियान शुरू किया गया है जबकि 18 से ऊपर के लोग अभी वैक्सीन के इंतजार में हैं. हालांकि यहां के युवक टीका के प्रति बुजुर्गों से ज्यादा जागरूक दिखे.

दरअसल, टीके को लेकर यह भ्रांति केवल आदिवासियों में ही नहीं बल्कि पड़ोस के नया टोला रिकाबगंज के कल्पी टोला, सीताराम टोला, पिपरा टोला के मुसहरी का भी यही हाल है. इस क्षेत्र की सेविका शत्रुपा देवी कहती हैं कि लाख समझाने के बाद दो दिन में केवल 40 लोग टीके लगवाने के लिए तैयार हुए. उन्होंने बताया कि इन क्षेत्रों में लगातार जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है, ताकि लोगों में फैली यह भ्रांतियां दूर हो सके. पूर्णिया के झील टोला में काढ़ा और गर्म पानी से लोगों ने कोरोना को मात दिया तथा News in Hindi से अपडेट के लिए बने रहें।

झील टोला में अभी तक कोरोना संक्रमण से बीमार पड़ने की कोई सूचना नहीं है. इसलिए वहां मेडिकल टीम अभी नहीं गयी है. जल्द ही वहां टीम जायेगी.

डाॅ एससी झा, प्रभारी चिकित्सा प्रभारी, केनगर, पूर्णिया

POSTED BY: Thakur Shaktilochan

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