EXCLUSIVE: बिहार का ये गांव कोरोना से नहीं डरता, 5 लाख चमगादड़ों का अड्डा है यहां
Coronavirus in Bihar, Outbreak in india: आज पूरे विश्व में महामारी बन कर कोरोना का कहर टूट रहा है. विशेषज्ञों ने भी आशंका जतायी है कि खतरनाक कोरोना वायरस चमगादड़ (BAT) से आया है. ऐसे में आमलोग चमगादड़ से खौफजदा भी हैं. इसके बावजूद बिहार के सुपौल जिले में एक ऐसा गांव है, जहां 50 एकड़ में फैले बगीचे में करीब पांच लाख चमगादड़ रहते हैं. यहां के ग्रामीण चमगादड़ों को शौक से पाल रहे हैं. सबसे खात बात है कि गांव के लोग चमगादड़ का संरक्षण भी करते हैं. उनकी मान्यता है कि गांव के लिए चमगादड़ वरदान हैं. चमगादड़ों की मौजूदगी के कारण गांव में आज तक कोई भी आपदा नहीं आयी है.
Coronavirus in Bihar: सुपौल : आज पूरे विश्व में महामारी बन कर कोरोना का कहर टूट रहा है. विशेषज्ञों ने भी आशंका जतायी है कि खतरनाक कोरोना वायरस चमगादड़ से आया है. ऐसे में आमलोग चमगादड़ से खौफजदा भी हैं. इसके बावजूद बिहार के सुपौल जिले में एक ऐसा गांव है, जहां 50 एकड़ में फैले बगीचे में करीब पांच लाख चमगादड़ रहते हैं. यहां के ग्रामीण चमगादड़ों को शौक से पाल रहे हैं. सबसे खात बात है कि गांव के लोग चमगादड़ का संरक्षण भी करते हैं. उनकी मान्यता है कि गांव के लिए चमगादड़ वरदान हैं. चमगादड़ों की मौजूदगी के कारण गांव में आज तक कोई भी आपदा नहीं आयी है.
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कोरोना वायरस को लेकर आज जहां लोग चमगादड़ों को देखकर खौफ खा रहे हैं, वहीं, बिहार के सुपौल जिले के एक गांव में चमगादड़ों को पनाह दी जा रही है. फिल्मों में हॉरर दृश्य दिखाने के लिए जिन चमगादड़ों को दिखाया जाता है, वह आमतौर पर महानगरों, शहरों या गांवों में कम ही देखने को मिलते हैं. हॉरर फिल्मों में भयावहता बढ़ानेवाले चमगादड़ को सुपौल जिला मुख्यालय से करीब तीस किलोमीटर दूर त्रिवेणीगंज अनुमंडल के लहरनियां गांव में सुख-समृद्धि का प्रतीक माना जाता है.
लहरनियां के ग्रामीण चमगादड़ों का अभयारण्य गांव में बनाने के लिए प्रयासरत हैं. उनका कहना है कि उनके पूर्वजों ने चमगादड़ों को बगीचे में पनाह दी थी, वे उसी परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं. करीब 50 एकड़ में लाखों चमगादड़ों के रहने के लिए खास तौर पर पेड़ लगाये गये हैं. साथ ही ग्रामीण इस बात का भी ध्यान रखते हैं कि कोई भी चमगादड़ों को नुकसान ना पहुंचा सके.
ग्रामीणों का कहना है कि यहां रहनेवाले चमगादड़ शाकाहारी हैं. अन्य चमगादड़ों की अपेक्षा बड़े हैं. इन्हें दुर्लभ श्रेणी का चमगादड़ माना जाता है. ये अंधेरे में निकलते हैं और पौ फटने से पहले लौट आते हैं. ग्रामीणों का कहना है कि चमगादड़ों ने कभी भी उनकी फसलों या फलों का नुकसान नहीं किया.
चमगादड़ पालनेवाले ग्रामीण अजय सिंह के परिवार सहित गांव के लोग भी इसे शुभ मानते हैं. ग्रामीणों का कहना है कि साल 2008 में कोसी में आयी प्रलयंकारी बाढ़ में भी यह इलाका डूबने से बचा रहा. उनका विश्वास है कि चमगादड़ों के रहने से महामारी नहीं फैलती. सभी ग्रामीण चमगादड़ों की देखरेख करते हैं. हाल में आये भूकंप में भी चमगादड़ों ने संकेत दे दिया था. यहां के चमगादड़ को देखने के लिए दूर-दूर के गांवों से भी लोग यहां पहुंचते हैं.