Coronavirus Lockdown 3 Bihar Update : बचते-बचाते अब भी पैदल गांव लौट रहे प्रवासी मजदूर, जांच नहीं होने से बढ़ सकता है संक्रमण का खतरा

लॉकडाउन के कारण काम-धंधा बंद हो जाने के बाद जैसे-तैसे बिहार में अपने घरों को लौट रहे प्रवासियों का सिलसिला थमा नहीं है. लॉकडाउन 3 लागू होने और श्रमिक स्पेशल ट्रेन चलने के बाबजूद सैंकड़ों लोग पैदल यात्रा करने को मजबूर हैं. अपना पेट भरने और परिजनों का पेट पालने के लिए दूसरे राज्यों और राज्य के दूसरे जिलों तक मजदूरी करने गये लोगों का काम-धंधा बंद होने के बाद अपने घर वापस लौटने का सिलसिला बुधवार को भी जारी रहा.

By Samir Kumar | May 6, 2020 8:12 PM

दरभंगा, कमतौल से शिवेंद्र कुमार शर्मा की रिपोर्ट : लॉकडाउन के कारण काम-धंधा बंद हो जाने के बाद जैसे-तैसे बिहार में अपने घरों को लौट रहे प्रवासियों का सिलसिला थमा नहीं है. लॉकडाउन 3 लागू होने और श्रमिक स्पेशल ट्रेन चलने के बाबजूद सैंकड़ों लोग पैदल यात्रा करने को मजबूर हैं. अपना पेट भरने और परिजनों का पेट पालने के लिए दूसरे राज्यों और राज्य के दूसरे जिलों तक मजदूरी करने गये लोगों का काम-धंधा बंद होने के बाद अपने घर वापस लौटने का सिलसिला बुधवार को भी जारी रहा.

देर शाम तक सड़क और रेल लाइन को नापते हुए तीन सौ से ज्यादा मजदूरों का दल दरभंगा जिला की सीमा में प्रवेश कर कमतौल होते हुए गंतव्य की ओर बढ़ता चला गया. संक्रमण के भय से ये मजदूर भले ही खुद की सुरक्षा को लेकर डरे सहमे हुए नजर आए, लेकिन साथ लेकर गये बाल-बच्चों और गांव में छोड़कर गये परिवार के सदस्यों की चिंता ने इन मजदूरों को वापस लौटने को मजबूर किया.

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कोरोना संक्रमित होने का डर मजदूरों को वापस लौटने को मजबूर कर दिया है. बच्चों को संभालने की चिंता में मजदूर भूखे-प्यासे पैदल ही गांव वापस लौट जा रहे है. जोगियारा-कमतौल पथ में बुधवार को अहले सुबह कांधे पर बैग लटकाये, माथे पर मोटरी लिए बच्चों का हाथ थामे मजदूर दल के लोगों ने बताया कि कुछ दिन पहले ही मजदूरी करने के लिए हमलोग बच्चों को साथ लेकर गये थे. लॉकडाउन के चलते काम बंद हो गया. डेढ़ महीने जैसे-तैसे गुजारे. लेकिन, कोरोना का संकमण का दायर बढ़ता ही जा रहा है. बीमारी की गंभीरता जानकर अब डर लगने लगा है. इसलिए गांव लौट रहे हैं. रक्सौल से आने और कटिहार जाने की बात बता रहे मजदूरों ने बताया कि अपना और परिजनों की चिंता के कारण हम हर जोखिम उठाने को तैयार हैं.

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सड़क और रेल पथ से गुजरने वाले मजदूरों के कदम ठहरने का नाम नहीं ले रहे और वे लगातार पैदल चलते जा रहे हैं. सैंकड़ों किलोमीटर का सफर तय करने के बाद कमतौल गुमती के समीप पहुंच रहे कुछ मजदूरों को स्थानीय लोगों सहयोग भी मिल रहा है. लेकिन, अधिकांश मजदूर जल्द से जल्द घर पहुंचने की आस और मन में विश्वास लिए गंतव्य की ओर कदम बढ़ाते ही निकल जा रहे हैं. भूख-प्यास और थकान की परवाह नहीं करते इन गुजरते के कदम लड़खड़ाते भी है, लेकिन अपने गांव और परिवार तक पहुंचने की चाह में दिन हो या रात चले जा रहे हैं.

इनमें से कई नरकटियागंज तो कई रक्सौल से आने की बात बता रहे, अधिकांश मजदूर सीतामढ़ी के आसपास से आने और कटिहार जाने की बात ही बता रहे हैं. मजदूरों का दल चाहे जहां से भी पलायन कर आया हो लेकिन अपने गांव की ओर जाने के लिए दिनभर मजदूरों का तांता लगा रहता है. मंगलवार रात्रि से बुधवार की देर शाम तक ही तीन सौ से अधिक मजदूर कमतौल होकर गुजर गये.

इधर, मंगलवार को भी अहले सुबह कटिहार जिला के कजरा प्रखंड जाने वाले दर्जनों मजदूरों का दल कमतौल स्टेशन से सटे दक्षिण एक तालाब के भिंडा पर खुले आसमान के नीचे रात बिताकर रेल लाइन के सहारे ही कटिहार के लिए रवाना हुए थे. सभी रक्सौल-सीतामढ़ी रेलखंड के बीच ढेंग स्टेशन के समीप गोसाईंपुर से सोमवार की देर रात करीब आठ बजे कमतौल स्टेशन से पूरब रेल लाइन से गुजर रहे थे.

स्थानीय लोगों ने पूछताछ कर रोका और तालाब के भिंडा पर रात बिताने को पहुंचा दिया. आपसी सहयोग से आनन-फानन में इन मजदूरों को खाने के लिए चूड़ा, चीनी, नमक, दालमोट, हरी मिर्च, प्याज सहित पत्ता और पानी का ग्लास, बिस्कुट आदि उपलब्ध कराया. मुश्किल घड़ी में स्थानीय लोगों द्वारा जो मिला मजदूरों ने खाया-पीया, थोड़ा आराम किया और मंगलवार अहले सुबह ही गंतव्य के लिए प्रस्थान कर गए थे. लेकिन, बुधवार को अहले सुबह गुजरने वाले एक भी मजदूर रुकने का आग्रह किये जाने के बाबजूद एक पल ठहरने के लिए तैयार नहीं हुए. इस कारण इन्हें स्थानीय लोगों का सहयोग नहीं मिल सका.

स्थानीय लोगों ने बताया कि इस तरह गुजरते इन मजदूरों के लिए न तो प्रशासन की ओर से इंतजाम किया गया है और न ही किसी स्वयंसेवी संगठनों की ओर से किया गया कोई इंतजाम नजर आता है. इन मजदूरों का दर्द कोई मजदूर ही समझ सकता है.

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