कोलकाता: विधानसभा चुनाव में संयुक्त मोर्चा गठबंधन की अगुवाई करने वाली लेफ्ट की झोली खाली रही थी. भवानीपुर में उपचुनाव की घोषणा हुई, तो सीपीएम ने श्रीजीब विश्वास को अपना उम्मीदवार बनाया. ममता बनर्जी के खिलाफ उतारे गये लेफ्ट के इस उम्मीदवार का मुकाबला तृणमूल कांग्रेस की उम्मीदवार से नहीं, बल्कि नोटा (NOTA) से हो गया. यहां श्रीजीब को 4,226 वोट मिले. 1,453 वोटों ने नोटा दबाया था.
सीपीएम उम्मीदवार श्रीजीब विश्वास बीजेपी की प्रियंका टिबड़ेवाल के बाद तीसरे स्थान पर रहे. मुर्शिदाबाद के जंगीपुर और शमशेरगंज में भी सीपीएम का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा. 15 साल पहले पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने कहा था- हम 235 हैं, वे 30 हैं. अब विधानसभा में लेफ्ट की ओर से ‘हम’ कहने वाला तो दूर, कोई ‘मैं’ कहने वाला भी नहीं है.
भवानीपुर में माकपा को जीत की उम्मीद तो नहीं थी, लेकिन अलीमुद्दीन स्ट्रीट को इस बात की चिंता थी कि पार्टी का प्रदर्शन कैसा रहेगा. जब नतीजे घोषित हुए, तो पता चला कि माकपा उम्मीदवार की जमानत भी जब्त हो गयी. शुरुआत में माकपा 85-27 पर आगे रही, दूसरे दौर में यह अंतर 47-42 पर आ गया. माकपा को कुल 4,226 वोट मिले.
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माकपा इतने कम वोट पाने की सोच भी नहीं सकती थी? क्या उम्मीदवार देना सही निर्णय था? पार्टी के नेता राबिन देव ने कहा, विधानसभा चुनाव अभी खत्म हुआ है. हम पहले से ही पीछे थे. इतने कम समय में आपदाओं से निबटा नहीं जा सकता, लेकिन हमें इतने बुरे परिणाम की उम्मीद नहीं थी. हमने नहीं सोचा था कि मुख्यमंत्री को जिताने के लिए मुख्य सचिव, पुलिस-प्रशासन बेशर्मी से उतरेंगे. हमारी लड़ाई तृणमूल कांग्रेस की गलत नीति के खिलाफ है.
प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और सांसद प्रदीप भट्टाचार्य ने कहा, हमने नहीं सोचा था कि माकपा का परिणाम इतना खराब होगा. अगर हमने अपना उम्मीदवार दिया होता, तो हमें इससे ज्यादा वोट मिलता. शमशेरगंज में कांग्रेस और माकपा दोनों के उम्मीदवार थे. हमें 30,000 से ज्यादा वोट मिले. माकपा को छह हजार वोट मिले. यह इस बात का सबूत है कि हम अब भी राजनीति में प्रासंगिक हैं.
Posted By: Mithilesh Jha