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Datta Purnima 2022: 7 दिसंबर को है दत्तात्रेय जयंती, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, महत्व और रोचक कथा

Datta Purnima 2022: मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा तिथि 07 दिसंबर, बुधवार की सुबह 08:01 08 दिसंबर, गुरुवार की सुबह 09:38 तक रहेगी.चूंकि भगवान दत्त की पूजा प्रदोष काल यानी शाम को की जाती है, इसलिए ये पर्व 7 दिसंबर को ही मनाया जाएगा.

By Shaurya Punj | November 29, 2022 3:28 PM

Datta Purnima 2022:  इस साल 7 दिसंबर को दत्त पूर्णिमा मनाई जा रही है.दत्त पूर्णिमा को भगवान दत्तात्रेय पूर्णिमा या दत्ता पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है जो कि मार्गशीर्ष महीने की पूर्णिमा तिथि पर मनाई जाती है. इस पूर्णिमा पर जिन दत्तात्रेय की पूजा-अर्चना की जाती है वो कोई और नहीं बल्कि त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश के अवतार माने जाते हैं.

दत्तात्रेय जयंती पर बनेंगे ये शुभ योग (Dattatreya Jayanti 2022 Shubh Muhurat)

पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा तिथि 07 दिसंबर, बुधवार की सुबह 08:01 08 दिसंबर, गुरुवार की सुबह 09:38 तक रहेगी.चूंकि भगवान दत्त की पूजा प्रदोष काल यानी शाम को की जाती है, इसलिए ये पर्व 7 दिसंबर को ही मनाया जाएगा.इस दिन सर्वार्थसिद्धि और साध्य नाम के 2 शुभ योग दिन भर रहेंगे, जिसके चलते इस पर्व का महत्व और भी बढ़ गया है.

दत्त पूर्णिमा का महत्व

भगवान दत्तात्रेय को भगवान विष्णु के 24 अवतारों में से एक माना जाता है.वह एक ऐसे ऋषि हैं  जिन्होंने बिना गुरु के ज्ञान प्राप्त किया.भगवान दत्तात्रेय की पूजा महाराष्ट्र, गोवा, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना और गुजरात और मध्य प्रदेश के कई हिस्सों में की जाती है.इस दिन विशेष पूजा की जाती है.उपवास के लिए, भक्त एक दिन का उपवास रखते हैं और भगवान दत्तात्रेय की पूजा करने के लिए ध्यान लगाते हैं.आध्यात्मिक दृष्टिकोण से, दत्तात्रेय के तीन सिर तीन गुणों का प्रतिनिधित्व करते हैं – सत्त्व, रजस और तमस और उनके छह हाथ यम (नियंत्रण), नियम (नियम), साम (समानता), दम (शक्ति), दया का प्रतिनिधित्व करते हैं.

भगवान दत्तात्रेय की कथा

एक बार महर्षि अत्रि मुनि की पत्नी अनसूया के पतिव्रत धर्म की परीक्षा लेने के लिए तीनों देव ब्रह्मा, विष्णु, महेश पृथ्वी लोक पहुंचे. तीनों देव साधु भेष में अत्रि मुनि के आश्रम पहुंचे और माता अनसूया के सम्मुख भोजन की इच्छा प्रकट की. तीनों देवताओं ने शर्त रखी कि वह उन्हें निर्वस्त्र होकर भोजन कराएं. इस पर माता संशय में पड़ गई.

उन्होंने ध्यान लगाकर देखा तो सामने खड़े साधुओं के रूप में उन्हें ब्रह्मा, विष्णु और महेश खड़े दिखाई दिए. माता अनसूया ने अत्रिमुनि के कमंडल से निकाला जल जब तीनों साधुओं पर छिड़का तो वे छह माह के शिशु बन गए. तब माता ने देवताओं को उन्हें भोजन कराया.
तीनों देवताओं के शिशु बन जाने पर तीनों देवियां (पार्वती, सरस्वती और लक्ष्मी) पृथ्वी लोक में पहुंचीं और माता अनसूया से क्षमा याचना की. तीनों देवों ने भी अपनी गलती को स्वीकार कर माता की कोख से जन्म लेने का आग्रह किया. तीनों देवों ने दत्तात्रेय के रूप में जन्म लिया. तभी से माता अनसूया को पुत्रदायिनी के रूप में पूजा जाता है.

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