आज दत्तात्रेय जयंती मनाई जा रही है. भारत के राज्य महाराष्ट्र मे हिंदू पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष महीने की पूर्णिमा को दत्त जयंती, देव दत्तात्रेय के अवतरण / जन्म दिवस के रूप मे बड़ी ही धूम-धाम से मनायी जाती है. भगवान दत्तात्रेय एक समधर्मी देवता है और उन्हें त्रिमूर्ति अथार्त ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश का अवतार माना जाता है. वैसे तो दत्त जयंती का पूरे देश में काफी महत्व है, लेकिन दक्षिण भारत में इसकी महत्ता कहीं ज्यादा है क्योंकि वहां तमाम लोग दत्त संप्रदाय से जुड़े हुए हैं. माना जाता है कि भगवान दत्तात्रेय की पूजा करने से घर में सुख, समृद्धि, वैभव आदि प्राप्त होता है.
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Dattatreya Jayanti 2021: शुभ मुहूर्त
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पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ : 18 दिसंबर, शनिवार सुबह 07.24 बजे से शुरू
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पूर्णिमा तिथि समाप्त : 19 दिसंबर, रविवार सुबह 10.05 बजे समाप्त
Dattatreya Jayanti 2021: दत्तात्रेय जयंती की पूजा विधि
दत्तात्रेय जयंती के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें. इसके बाद पूजा के स्थान पर साफ सफाई करें और गंगाजल का छिड़काव करें. इसके बाद एक चौकी रखकर उस पर साफ कपड़ा बिछाएं और उस पर भगवान दत्तात्रेय की तस्वीर स्थापित करें. इसके बाद भगवान दत्तात्रेय को धूप, दीप, रोली, अक्षत, पुष्प आदि अर्पित करें. इसके बाद भगवान दत्तात्रेय की कथा पढ़ें और अंत में आरती करें और प्रसाद बांटें.
Dattatreya Jayanti 2021: दत्तात्रेय जयंती का महत्व
मान्यताओं के अनुसार दत्त जयंती के दिन भक्त पूजा-अर्चना करते हैं. वह जीवन के सभी क्षेत्रों में सफलता की कामना करते हैं. दत्तात्रेय जयंती के दिन भगवान के लिए व्रत रखने और पूजन करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती है.
Dattatreya Jayanti 2021: भगवान दत्तात्रेय की कथा
एक बार महर्षि अत्रि मुनि की पत्नी अनसूया के पतिव्रत धर्म की परीक्षा लेने के लिए तीनों देव ब्रह्मा, विष्णु, महेश पृथ्वी लोक पहुंचे. तीनों देव साधु भेष में अत्रि मुनि के आश्रम पहुंचे और माता अनसूया के सम्मुख भोजन की इच्छा प्रकट की. तीनों देवताओं ने शर्त रखी कि वह उन्हें निर्वस्त्र होकर भोजन कराएं. इस पर माता संशय में पड़ गई.
उन्होंने ध्यान लगाकर देखा तो सामने खड़े साधुओं के रूप में उन्हें ब्रह्मा, विष्णु और महेश खड़े दिखाई दिए. माता अनसूया ने अत्रिमुनि के कमंडल से निकाला जल जब तीनों साधुओं पर छिड़का तो वे छह माह के शिशु बन गए. तब माता ने देवताओं को उन्हें भोजन कराया.
तीनों देवताओं के शिशु बन जाने पर तीनों देवियां (पार्वती, सरस्वती और लक्ष्मी) पृथ्वी लोक में पहुंचीं और माता अनसूया से क्षमा याचना की. तीनों देवों ने भी अपनी गलती को स्वीकार कर माता की कोख से जन्म लेने का आग्रह किया. तीनों देवों ने दत्तात्रेय के रूप में जन्म लिया. तभी से माता अनसूया को पुत्रदायिनी के रूप में पूजा जाता है.