Dattatreya Jayanti 2022: हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा तिथि को भगवान दत्तात्रेय का जन्मोत्सव मनाया जाता है. इस साल दत्तात्रेय जयंती 7 दिसंबर 2022 को मनाई जा रही है. ऐसा कहा जाता है कि भगवान दत्तात्रेय देवता ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवता का अवतार है. इन तीनों देवों की शक्तियां दत्तात्रेय भगवान के अंदर समाहित है. आइए जानते है दत्तात्रेय देवता की जयंती का क्या है शुभ मुहूर्त और कैसे करें पूजा –
पूर्णिमा तिथि आरंभ- 7 दिसंबर सुबह 8 बजकर 2 मिनट से शुरू
पूर्णिमा तिथि समाप्त- 8 दिसंबर सुबह 9 बजकर 38 मिनट तक
सिद्ध योग- 7 दिसंबर सुबह 2 बजकर 52 मिनट से 8 दिसंबर सुबह 2 बजकर 54 मिनट तक
मान्यता है कि इस दिन भगवान दत्तात्रेय की विधि-विधान से पूजा करने से भगवान शिव, भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी की कृपा प्राप्त होती है. जिससे आर्थिक बढ़ोतरी सहित कई अन्य लाभ होने की मान्यता है.
दत्तात्रेय भगवान की पूजा करने के लिए सबसे पहले आप स्नान ग्रहण कर लें और स्वच्छ कपड़े पहन लें. इसके बाद एक चौकी में लाल कपड़ा बिछाकर उसमें दत्तत्रेय भगवान की मूर्ति रखकर उनको जल चढ़ाए फिर रोली, चंदन, चावल लगाए. इसके बाद दीपक में घी डालकर भगवान को दिया दिखाएं. अब भगवान को प्रसाद का भोग लगाए. इसके बाद दत्तात्रेय भगवान की कथा सुने और आरती गाए। अब ब्राह्मणों को भोजन कराए। ब्राह्मणों को भोजन कराने के बाद ही आप प्रसाद चढ़ाए.
एक बार महर्षि अत्रि मुनि की पत्नी अनसूया के पतिव्रत धर्म की परीक्षा लेने के लिए तीनों देव ब्रह्मा, विष्णु, महेश पृथ्वी लोक पहुंचे. तीनों देव साधु भेष में अत्रि मुनि के आश्रम पहुंचे और माता अनसूया के सम्मुख भोजन की इच्छा प्रकट की. तीनों देवताओं ने शर्त रखी कि वह उन्हें निर्वस्त्र होकर भोजन कराएं. इस पर माता संशय में पड़ गई.
उन्होंने ध्यान लगाकर देखा तो सामने खड़े साधुओं के रूप में उन्हें ब्रह्मा, विष्णु और महेश खड़े दिखाई दिए. माता अनसूया ने अत्रिमुनि के कमंडल से निकाला जल जब तीनों साधुओं पर छिड़का तो वे छह माह के शिशु बन गए. तब माता ने देवताओं को उन्हें भोजन कराया.
तीनों देवताओं के शिशु बन जाने पर तीनों देवियां (पार्वती, सरस्वती और लक्ष्मी) पृथ्वी लोक में पहुंचीं और माता अनसूया से क्षमा याचना की. तीनों देवों ने भी अपनी गलती को स्वीकार कर माता की कोख से जन्म लेने का आग्रह किया. तीनों देवों ने दत्तात्रेय के रूप में जन्म लिया. तभी से माता अनसूया को पुत्रदायिनी के रूप में पूजा जाता है.