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घटती जनसंख्या और चीन की मुश्किलें

आज चीन में खाद्य पदार्थों और अन्य विनिर्मित उत्पादों और साजो-सामान का उत्पादन बहुत अधिक मात्रा में होता है. घटती जनसंख्या से घरेलू मांग प्रभावित हो सकती है. भारत और अन्य मुल्कों में आत्मनिर्भरता के प्रयास उसके सामान की मांग कम कर सकते हैं. यह स्थिति चीन की अर्थव्यवस्था में ठहराव का कारण बन सकती है.

वर्ल्ड पॉपुलेशन रिव्यू के अनुमानों के अनुसार, 2022 के अंत तक भारत की जनसंख्या 141.7 करोड़ हो गयी, जो 17 जनवरी, 2023 को चीन द्वारा घोषित उसकी जनसंख्या 141.2 करोड़ से 50 लाख ज्यादा है. चीन की जनसंख्या में पिछले वर्ष 8.5 लाख की गिरावट हुई है. वर्ष 1960 के बाद से चीन की जनसंख्या में पहली बार कमी आयी है, जबकि भारत की जनसंख्या वृद्धि दर तो कम हुई है, लेकिन जनसंख्या अभी भी बढ़ रही है. यह वृद्धि 2050 तक जारी रहेगी. कोरोना महामारी के कारण 2021 में होने वाली जनगणना टाल दी गयी थी. आधिकारिक जनसांख्यिकी आंकड़ों के अभाव में विभिन्न एजेंसियां अलग-अलग सूचनाएं प्रस्तुत कर रही हैं, लेकिन इन सबमें समानता यह है कि भारत की जनसंख्या लगातार बढ़ रही है. भारत दुनिया का सर्वाधिक युवा देश है, यानी भारत की युवा आबादी किसी भी देश से ज्यादा है.

चीन की जनसंख्या हालांकि लंबे समय से भारत से ज्यादा रही है, तो भी उसकी युवा जनसंख्या भारत की तुलना में कम ही रही. इसका कारण यह है कि 1980 के दशक में चीन में जनसंख्या नियंत्रण के लिए हर दंपत्ति के लिए एक संतान की अनिवार्य शर्त रख दी थी. यदि कोई महिला अधिक संतान पैदा करने का प्रयास करती थी, तो उसे प्रताड़ित किया जाता था. जबरदस्ती गर्भपात भी करवाया जाता था. इस कारण चीन की जनसंख्या की वृद्धि दर में भारी कमी आ गयी और अब आबादी घटने लगी है. भारत में भी जनसंख्या नियंत्रण के उपाय हुए और सामान्य परिवार दो बच्चों तक ही सीमित हो गये, लेकिन इसमें जबरदस्ती का पुट नहीं था. कुछ वर्गों में अधिक बच्चे पैदा करने की प्रवृत्ति जारी रही, लेकिन जनसंख्या वृद्धि दर घटने लगी. हाल ही में प्रकाशित जनसांख्यिकी आंकड़ों के अनुसार कुल प्रजनन दर 2019 में 2.2 से घटकर 2022 तक 2.159 रह गयी. गौरतलब यह है कि यदि प्रजनन दर 2.0 से कम होती है, तो आबादी घटने लगती है.

पूर्व में जनसंख्या वृद्धि की प्रवृत्तियों के कारण अस्सी और नब्बे के दशकों में जनसंख्या वृद्धि दर 2.0 के आसपास होने से देश में बच्चों की संख्या में खासी वृद्धि हो गयी, जो 2000 और 2010 के दशक में युवा हुए. आज हमारी 65 प्रतिशत जनसंख्या 35 वर्ष से कम आयु की है. लेकिन चीन में युवाओं का अनुपात कम होता गया. भारत में युवा जनसंख्या के अनुपात में रोजगार नहीं बढ़ पाने के कारण कई युवा दूसरे मुल्कों में जाने लगे, जिससे शेष दुनिया में भारतीयों की संख्या बढ़ने लगी और वे भारी मात्रा में विदेशी मुद्रा भारत भेजने लगे. वर्ष 2022 में भारतीयों द्वारा स्वदेश भेजी जाने वाली राशि 100 अरब डॉलर से भी ज्यादा रही. यह राशि अनिवासी चीनियों द्वारा अपने देश भेजी जाने वाली राशि से कहीं ज्यादा है. भारत में भी श्रमशक्ति की उपलब्धता काफी बढ़ गयी, पर उसका पूरा उपयोग भी नहीं हो पाता और बेरोजगारी में भी भारी वृद्धि हो रही है.

चीन में क्रूरता से एक संतान नीति लागू तो कर दी गयी, लेकिन चीन को इसके साथ एक अन्य समस्या का सामना करना पड़ा कि वहां युवाओं की तुलना में बुजुर्गों का अनुपात बढ़ने लगा. इससे श्रमशक्ति की कमी हो गयी और मजदूरी दरें भी बढ़ने लगीं. लेकिन अब जब चीन की जनसंख्या ही घटने लगी है, तो उसकी मुसीबतें और बढ़ सकती हैं. विकास दर की कमी, महामारी, सरकारों और निजी क्षेत्र का बढ़ता ऋण संकट तथा अमेरिका समेत विभिन्न मुल्कों की बढ़ती बेरुखी के चलते पहले से ही उसकी मुश्किलें बहुत हैं. आज चीन में खाद्य पदार्थों और अन्य विनिर्मित उत्पादों और साजो-सामान का उत्पादन बहुत अधिक मात्रा में होता है, लेकिन घटती जनसंख्या से घरेलू मांग प्रभावित हो सकती है. भारत और अन्य मुल्कों में आत्मनिर्भरता के प्रयास उसके सामान की मांग कम कर सकते हैं. यह स्थिति चीन की अर्थव्यवस्था में ठहराव का कारण बन सकती है.

हालांकि चीनी सरकार ने कुछ साल पहले आने वाले मुसीबतों को समझते हुए एक संतान नीति में कुछ ढील दी है, लेकिन इसका परिणाम आने में काफी देर लग सकता है. आज अवसर है कि भारत अपने जनसांख्यिकी लाभ (डेमोग्राफिक डिविडेंड), चीन के संकट और रूस समेत दुनिया में भारत के लिए खुलते नये बाजारों का लाभ उठाते हुए आत्मनिर्भरता के रास्ते पर तेजी से आगे बढ़े. सरकार इस मामले में संवेदनशील है और चीन से आयात रोकने हेतु पीएलआई स्कीम, एंटी डंपिंग ड्यूटी और अन्य रूकावट लगा रही है. गौरतलब है कि चीन से आने वाले अंधाधुंध आयात के कारण पूरी दुनिया में मैनुफैक्चरिंग प्रभावित हुई, जिससे कई मुल्कों को बेरोजगारी का सामना करना पड़ रहा है. चीन की बढ़ती आर्थिक और सामरिक ताकत से भी दुनिया आशंकित हैं. आज जब चीन संकट में है, तो सभी मुल्कों को वे सभी उपाय अपनाने होंगे, जिससे चीन की आर्थिक और सामरिक ताकत घटे और वह दुनिया को परेशान न कर सके.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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