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Sushant Singh Rajput की मौत पर बोलीं दीप्ति नवल, सांस लेने को छटपटा रही हूं मैं… पढ़ें पूरा पोस्‍ट

deepti naval speaks on the death of sushant singh rajput: अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद अभिनेत्री दीप्ति नवल (Dipti Naval) ने 90 दशक की शुरुआत में अवसाद से अपनी लड़ाई और आत्महत्या जैसे ख्यालों को लेकर फेसबुक पर पोस्ट किया है. दीप्ति नवल ने सशात को श्रद्धांजलि देते हुए एक कविता भी साझा की है जो उन्होंने अवसाद से उबरने की लड़ाई के दौरान लिखी थी.

Deepti Naval on Sushant Singh Rajput suicide: अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद अभिनेत्री दीप्ति नवल (Dipti Naval) ने 90 दशक की शुरुआत में अवसाद से अपनी लड़ाई और आत्महत्या जैसे ख्यालों को लेकर फेसबुक पर पोस्ट किया है. दीप्ति नवल ने सशात को श्रद्धांजलि देते हुए एक कविता भी साझा की है जो उन्होंने अवसाद से उबरने की लड़ाई के दौरान लिखी थी. 34 वर्षीय अभिनेता रविवार को बांद्रा स्थित अपने अपार्टमेंट में फांसी से लटके मिले थे.

पुलिस अधिकारी के अनुसार मुंबई पुलिस ने जांच के दौरान पाया कि अभिनेता अवसाद का इलाज करा रहे थे. दीप्ति नवल ने लिखा, ‘‘इन अंधेरे दिनों में…काफी कुछ हो रहा है…दिलो-दिमाग एक बिंदू पर जाकर ठहर गया है…या सुन्न हो गया.’

उन्‍होंने आगे लिखा,’ आज ऐसा महसूस हो रहा है कि मैं उस कविता को साझा करूं जिसे मैंने डिप्रेशन, व्यग्रता और आत्महत्या के ख्यालों के साथ अपनी लड़ाई के दौरान लिखा था…हां.. लड़ाई जारी है…” अभिनेत्री ने श्याम बेनेगल की 1978 में आई फिल्म ‘जुनून’ के साथ अपने करियर की शुरुआत की थी. इसके बाद उन्होंने 80 के दशक में ‘चश्मे बद्दूर’ , ‘अनकही’, ‘मिर्च मसाला’, ‘साथ-साथ’ जैसी फिल्मों में काम किया. नवल की कविता का शीर्षक ‘ब्लैक विंड’ है. इसमें उन्होंने लिखा है कि कैसे घबराहट और बेचैनी एक इंसान को घेर लेता है. कविता में वह अवसाद और आत्महत्या जैसे ख्यालों से अपनी लड़ाई के बारे में बात करती हैं.

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उन्होंने लिखा, ‘‘व्यग्रता और बेचैनी ने दोनों हाथों से पकड़ ली है मेरी गर्दन….. मेरी आत्मा में बहुत गहरे तक धंसे जा रहे हैं इसके नुकीले पंजे….. सांस लेने को छटपटा रही हूं मैं, अपने बिस्तर के तीखे चारपायों से लिपट कर…’

इस कविता में दीप्ति नवल ने लिखा है कि किस तरह से उनका मन आत्महत्या करने का करता था और कैसे वे अपने डिप्रेशन से लड़ीं. नवल ने कविता में आगे लिखा है : ‘‘टेलिफोन बजता है…नहीं, बंद हो गया…ओह! कोई बोल क्यों नहीं रहा है? एक इंसानी आवाज, इस शर्मनाक, निष्ठुर रात की खाई में… ये रात जो गहरे अंधकार में डूब गयी है, और इसने ओढ़ ली है एक बैंगनी नीली सी चादर…’ अपने भीतर महसूस कर रही हूं एक गहरा अंधकार.”

अंत में अभिनेत्री लिखती हैं कि वह इस अंधेरी रात से बचकर निकलेंगी. यह कविता उन्होंने 28 जुलाई, 1991 में लिखी थी. पिछले साल पीटीआई-भाषा के साथ एक इंटरव्‍यू में वह कह चुकी हैं कि 90 के आखिरी दशक में उन्हें काम मिलना बेहद कम हो गया था. उन जैसी ‘‘संजीदा अभिनेत्री” के लिए इसे बर्दाश्त कर पाना कितना मुश्किल भरा रहा था कि उन्हें इस तरह दुनिया अनदेखा कर दे.

Posted By: Budhmani Minj

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