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झारखंड : खरसावां में जगन्नाथ रथयात्रा को राजकीय महोत्सव का दर्जा देने की मांग, सदन में विधायक ने रखी बात

खरसावां के रथ यात्रा को राजकीय महोत्सव का दर्जा देने की मांग उठी. बुधवार को झारखंड विधानसभा के मानसून सत्र में खरसावां विधायक दशरथ गागराई ने इस मामले को उठाते हुए राजकीय महोत्सव का दर्जा देने की मांग सरकार से की. इसको लेकर विधायक ने मुख्यमंत्री को ज्ञापन भी सौंपा.

सरायकेला-खरसावां, शचिंद्र कुमार दाश : विधायक दशरथ गागराई ने झारखंड की हेमंत सरकार से खरसावां में हर साल आयोजित होने वाली प्रभु जगन्नाथ की वार्षिक रथ यात्रा को राजकीय महोत्सव का दर्जा देने की मांग की है. विधायक दशरथ गागराई ने बुधवार को विधानसभा के मानसून सत्र में शून्य काल के दौरान इस मामले को उठाया. इसको लेकर खरसावां विधायक दशरथ गागराई ने बुधवार की देर शाम मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मिलकर एक ज्ञापन सौंपा. ज्ञापन में प्रभु जगन्नाथ की वार्षिक रथ यात्रा को राजकीय महोत्सव का दर्जा देने की मांग के साथ हर साल खरसावां में आयोजित होने वाले महाप्रभु जगन्नाथ की रथ यात्रा की विशेषता से मुख्यमंत्री को अवगत कराया.

रथयात्रा को राजकीय महोत्सव का मिले दर्जा

खरसावां विधायक ने कहा कि खरसावां में प्रतिवर्ष आयोजित होने वाले महाप्रभु जगन्नाथ के रथ यात्रा की विशेषता यह है कि झारखंड सरकार इसके आयोजन के लिए राशि उपलब्ध कराती है. उन्होंने कहा कि स्वतंत्र भारत में देशी रियासतों के विलय के समय हुए समझौते के समय यह व्यवस्था बनायी गयी थी. विधायक ने कहा कि प्रतिवर्ष आयोजित होने वाले इस धार्मिक अनुष्ठान में काफी संख्या में लोग शामिल होते हैं. उन्होंने सदन के माध्यम से सरकार से मांग करते हुए कहा कि खरसावां में आयोजित होने वाले प्रभु जगन्नाथ की रथ यात्रा को राजकीय महोत्सव का दर्जा दिया जाये.

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खरसावां में करीब 300 साल पुरानी है रथ यात्रा

खरसावां में प्रभु जगन्नाथ के रथ यात्र करीब यात्रा तीन सौ साल से भी पुरानी है. आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष द्धितीय तिथि पर हर वर्ष रथ यात्रा का आयोजन होता है. रथ पर सवार होकर प्रभु जगन्नाथ, बलभद्र व देवी सुभद्रा मौसीबाड़ी गुंडिचा मंदिर जाते हैं. खरसावां में राजा-राजवाड़े के समय से ही पूरे पारंपरिक ढंग से रथ यात्रा का आयोजन होते आ रहा है. खरसावां में रथ यात्रा के दौरान सभी धार्मिक परंपराओं का निर्वाहन किया जाता है.

रथ यात्रा के लिए राज्य सरकार देती है आंवटन

खरसावां में रथ यात्रा के आयोजन के लिए सरकार से आवंटन मिलती है. रियासत काल में रथ यात्रा में होने वाले सभी खर्च राजपरिवार उठाता था. देश की आजादी के बाद तमाम देशी रियासतों के भारत गणराज्य में विलय के बाद खरसावां में रथ यात्रा का आयोजन सरकारी खर्च पर होने लगा. देश के आजादी के बाद खरसावां रियासत का भारत गणराज्य में विलय के दौरान वर्ष 1947 में खरसावां के तत्कालिन राजा श्रीरामचंद्र सिंहदेव ने भारत सरकार के गृह सचिव (राजनीतिक मामले) वीपी मेनन के साथ मर्जर एग्रिमेंट किया था. मर्जर एग्रिमेंट में उल्लेख है कि जिन धार्मिक व सांस्कृतिक अनुष्ठानों का आयोजन रियासत काल में राजा द्वारा किया जाता था, उनके सभी अनुष्ठानों का आयोजन सरकारी स्तर से किया जायेगा. इसी एग्रिमेंट के तहत ही रथ यात्रा समेत अन्य अनुष्ठानों के लिये राज्य सरकार से आवंटन मिलती है.

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महाप्रभु जगन्नाथ रथ यात्रा की जानें महता

महाप्रभु जगन्नाथ रथ यात्रा धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा है. यह यात्रा हिंदू धर्म में बहुत मायने रखती है और लाखों लोग इसे देखने आते हैं.

जगन्नाथ रथयात्रा की महता इस प्रकार है :

धार्मिक अर्थ : यह यात्रा हिंदू धर्म में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के रथों में उन्हें उनके मंदिर से बाहर निकालने और सार्वजनिक रूप से सभी भक्तों को उनके संबंधित धर्मिक स्थलों तक ले जाने का महत्वपूर्ण अवसर है. यह यात्रा हिंदू धर्म के समर्थन में सामाजिक समरसता और भाईचारे का संदेश भी प्रसारित करती है.

सांस्कृतिक महत्व : जगन्नाथ रथयात्रा पुरानी संस्कृति, साहित्य, कला और शैली को प्रस्तुत करती है. इस यात्रा में विभिन्न कलाकार, नृत्य गण, संगीतगार और साहित्यकार भाग लेते हैं, जो भारतीय संस्कृति को समृद्ध करते हैं और उसे बचाने और बढ़ाने में मदद करते हैं.

ऐतिहासिक महत्व : जगन्नाथ रथयात्रा की शुरुआत कई सदियों पहले हुई थी और यह भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है. इसके माध्यम से पुरानी संस्कृति और परंपराएं आज भी जीवंत रहती हैं और लोगों को इसके मूल्य और अर्थ को समझने में मदद करती हैं.

परंपरागत विशेषता : यह यात्रा भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को उनके नवयौवन के समय अपने भक्तों के समीप लाने के लिए आयोजित की जाती है. भगवान जगन्नाथ को यहां देवत्व की अवधारणा से परे एक मित्र के रूप में पूजा जाता है, जिससे भक्तों के बीच एक अद्भुत संबंध बनता है.

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