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तुलसी विवाह पर बन रहा यह शुभ संयोग
तुलसी विवाह के दिन हर्षण योग का शुभ संयोग बन रहा है. हिंदू पंचांग के अनुसार हर्षण योग 15 नवंबर की देर रात 1 बजकर 44 मिनट तक रहेगा. ज्योतिष के अनुसार शुभ और मांगलिक कार्यों के लिए हर्षण योग को अत्यंत उत्तम माना गया है.
इस वजह से 15 नवंबर को है एकादशी व्रत
एकादशी दो प्रकार की होती है- (1)सम्पूर्णा (2) विद्धा.
सम्पूर्णा:-जिस तिथि में केवल एकादशी तिथि होती है अन्य किसी तिथि का उसमे मिश्रण नहीं होता उसे सम्पूर्णा एकादशी कहते हैं.
विद्धा एकादशी : यह एकादशी पुनः दो प्रकार की होती है
(1) पूर्वविद्धा (2) परविद्धा
पूर्वविद्धा:- दशमी मिश्रित एकादशी को पूर्वविद्धा एकादशी कहते हैं. यदि एकादशी के दिन अरुणोदय काल (सूरज निकलने से 1घंटा 36 मिनट का समय) में यदि दशमी का नाम मात्र अंश भी रह गया तो ऐसी एकादशी पूर्वविद्धा दोष से दोषयुक्त होने के कारण वर्जनीय है. यह एकादशी दैत्यों का बल बढ़ाने वाली है. पुण्यों का नाश करने वाली है. इसलिए भक्तों को परविद्धा एकादशी में ही एकादशी व्रत रखना चाहिए. ऐसी एकादशी का पालन करने से भक्ति में वृद्धि होती है.
तुलसी विवाह शुभ मुहूर्त
सोमवार, नवम्बर 15, 2021 को
द्वादशी तिथि प्रारम्भ - नवम्बर 15, 2021 को सुबह 06:39 बजे
द्वादशी तिथि समाप्त - नवम्बर 16, 2021 को सुबह 08:01 बजे
शुभ मुहूर्त-
ब्रह्म मुहूर्त- सुबह 04:58 बजे से 05:51 बजे तक
अभिजित मुहूर्त- सुबह 11:44 बजे से 12:27 बजे तक
विजय मुहूर्त- दोपहर 01:53 बजे से 02:36 बजे तक
गोधूलि मुहूर्त- शाम 05:17 बजे से 05:41 बजे तक
अमृत काल- रात 01:02 बजे से 02:44 बजे तक
निशिता मुहूर्त- रात 11:39 बजे से 12:33 सुबह तक, नवम्बर 16
तुलसी पूजन मंत्र
तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी।
धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमन: प्रिया।।
लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत्।
तुलसी भूर्महालक्ष्मी: पद्मिनी श्रीर्हरप्रिया।।
तुलसी विवाह के दौरान इन बातों का ध्यान रखें
: अंखड सौभाग्य और सुख-समृद्धि के लिए हर सुहागन स्त्री को तुलसी विवाह जरूर करना चाहिए.
: पूजा के समय मां तुलसी को सुहाग का सामान और लाल चुनरी चढ़ाना चाहिए.
: तुलसी के गमले में शालीग्राम को साथ रखना चाहिए और तिल चढ़ाना चाहिए.
: तुलसी और शालीग्राम को दूध में भीगी हल्दी का तिलक लगाना चाहिए.
: पूजा के बाद किसी भी चीज के साथ 11 बार तुलसी जी की परिक्रमा करने की परंपरा है.
: मिठाई और प्रसाद का भोग लगाना चाहिए.
तुलसी विवाह 15 नवंबर को जानिए वजह
इस साल प्रबोधिनी एकादशी 14 और 15 नवंबर दोनों दिन लग रही है. ऐसे में ज्यादातर लोग एकादशी तिथि को लेकर असमंजस में है जबकि तुलसी विवाह को लेकर भी यह सोच रहे हैं कि 14 नवंबर को करें या 15 नवंबर को. धर्मसिंधु ग्रंथ के अनुसार यदि जब एकादशी तिथि के साथ द्वादशी लग रही हो तो उस दिन तुलसी विवाह प्रदोष काल में कराना चाहिए. बताए गए इस नियम के अनुसार इस साल 15 नवंबर को तुलसी विवाह कराना और प्रबोधिनी एकादशी व्रत रखना सबसे शुभ होगा. तुलसी विवाह के दौरान कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना जरूरी है.
15 नवंबर शाम 6 बजे से 7 बजकर 39 मिनट तक प्रदोष काल में तुलसी विवाह का शुभ मुहूर्त है.
देवोत्थान एकादशी की पूजा विधि
: इस दिन सुबह-सुबह उठकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें. भगवान विष्णु का ध्यान कर व्रत का संकल्प लें.
: आंगन में भगवान विष्णु के चरणों की आकृति बनाएं. धूप में चरणों को ढक दें.
: एक ओखली में गेरू से चित्र बनाकर फल, मिठाई, ऋतुफल और गन्ना रखकर डलिया से ढक दें.
: इस दिन रात्रि में घरों के बाहर और पूजा स्थल पर दीये जलाएंं.
: रात में भगवान विष्णु और अन्य देवी-देवताओं की पूजा करें.
: शाम की पूजा में सुभाषित स्त्रोत पाठ, भगवत कथा और पुराणादि का श्रवण व भजन आदि गाये जाते हैं.
: इसके बाद भगवान को शंख, घंटा-घड़ियाल आदि बजाकर उठाया जाता है.
देवउठनी एकादशी के दौरान ना करें ये गलतियां
इस दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान करना अनिवार्य होता है
देवउठनी एकादशी के दिन रात में फर्श पर नहीं सोना चाहिए.
एकादशी के दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना आवश्यक होता है. इसी के साथ क्रोध नहीं करना चाहिए और घर में किसी प्रकार से झगड़ा नहीं करना चाहिए
देवउठनी एकादशी में भोजन वर्जित होता है. यदि आप रोगी हैं या किसी अन्य कारण से निर्जला एकादशी व्रत न कर सकें तो आप केवल एक ही समय भोजन करें। शाम को ही एक समय का भोजन करना ही उचित होगा
एकादशी तिथि को भूलकर भी मांस मदिरा या फिर किसी भी तरह से तामसिक गुणों वाली चीजों जैसे प्याज लहसुन आदि का प्रयोग नहीं करना चाहिए.
देवउठनी एकादशी के दिन कभी भी दांत दातुन से न करें क्योंकि इस दिन किसी पेड़ की टहनी को तोड़ना भगवान विष्णु को नाराज कर देता है.
तुलसी विवाह पूजा विधि
तुलसी विवाह के लिए एक चौकी पर आसन बिछा कर तुलसी और शालीग्राम की मूर्ति स्थापित करें. चौकी के चारों और गन्ने का मण्डप सजाएं और कलश की स्थापना करें. सबसे पहले कलश और गौरी गणेश का पूजन करें. अब माता तुलसी और भगवान शालीग्राम को धूप, दीप, वस्त्र, माला, फूल अर्पित करें. तुलसी माता को श्रृगांर के सामान और लाल चुनरी चढ़ाएं. ऐसा करने से सुखी वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद मिलता है. पूजा के बाद तुलसी मंगलाष्टक का पाठ करें. हाथ में आसन सहित शालीग्राम को लेकर तुलसी के सात फेरे लें. फेरे पूरे होने के बाद भगवान विष्णु और तुलसी की आरती करें. पूजा के बाद प्रसाद बाटें.
देव उठानी एकादशी की तिथि और शुभ मुहूर्त
हिंदी पंचांग के अनुसार चातुर्मास का आरंभ इस वर्ष 20 जुलाई को देवशयनी एकादशी के दिन हुआ था. जिसका समापन 14 नवंबर को देवउठानी एकादशी के दिन होगा. एकादशी तिथि 14 नवंबर को सुबह 05:48 बजे से शुरू हो कर 15 नवंबर को सुबह 06:39 बजे समाप्त होगी. एकादशी तिथि का सूर्योदय 14 नवंबर को होने के कारण देवात्थान एकादशी का व्रत और पूजन इसी दिन होगा.
देवउत्थान एकादशी समय
देवउत्थान एकादशी रविवार, नवम्बर 14, 2021 को
एकादशी तिथि प्रारम्भ – नवम्बर 14, 2021 को 05:48 am बजे
एकादशी तिथि समाप्त – नवम्बर 15, 2021 को 06:39 am बजे
पारण तिथि के दिन हरि वासर समाप्त होने का समय – 01:00 pm बजे
तुलसी विवाह 2021 शुभ मुहूर्त
कार्तिक मास एकादशी तिथि 15 नवंबर को सुबह 06 बजकर 29 मिनट तक है. इसके बाद द्वादशी तिथि शुरू हो जाएगी. ऐसे में तुलसी विवाह 15 नवंबर, दिन सोमवार को किया जाएगा. द्वादशी तिथि 15 नवंबर को सुबह 06 बजकर 39 मिनट से प्रारंभ होगी, जो कि 16 नवंबर को सुबह 08 बजकर 01 मिनट तक रहेगी.
तुलसी विवाह पौराणिक कथा
प्राचीन काल में जलंधर नामक राक्षस ने चारों ओर उत्पात मचा रखा था. वह बड़ा वीर और पराक्रमी था. उसकी वीरता का रहस्य था, उसकी पत्नी वृंदा का पतिव्रता धर्म. उसी के प्रभाव से वह अजेय बना हुआ था. जलंधर के उपद्रवों से परेशान सभी देवी-देवता भगवान विष्णु के पास गए और उनसे रक्षा करने की गुहार लगाई. देवी-देवताओं की प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु ने वृंदा का पतिव्रता धर्म भंग करने का निश्चय किया. उन्होंने जलंधर का रूप धर कर छल से वृंदा को स्पर्श किया. विष्णु के स्पर्श करते ही वृंदा का सतीत्व नष्ट हो गया. जलंधर, देवताओं से पराक्रम से युद्ध कर रहा था लेकिन वृंदा का सतीत्व नष्ट होते ही मारा गया. जैसे ही वृंदा का सतीत्व भंग हुआ, जलंधर का सिर उसके आंगन में आ गिरा. जब वृंदा ने यह देखा तो क्रोधित होकर जानना चाहा कि जिसने उसे स्पर्श किया वह कौन है. सामने साक्षात विष्णु जी खड़े थे. उसने भगवान विष्णु को शाप दे दिया, 'जिस प्रकार तुमने छल से मुझे पति वियोग दिया है, उसी प्रकार तुम्हारी पत्नी का भी छलपूर्वक हरण होगा और स्त्री वियोग सहने के लिए तुम भी मृत्यु लोक में जन्म लोगे.' यह कहकर वृंदा अपने पति के साथ सती हो गई. वृंदा के शाप से ही प्रभु श्रीराम ने अयोध्या में जन्म लिया और उन्हें सीीता वियोग सहना पड़ा़. जिस जगह वृंदा सती हुई वहीं तुलसी का पौधा उत्पन्न हुआ.
तुलसी विवाह पूजा विधि
तुलसी विवाह के लिए एक चौकी पर आसन बिछा कर तुलसी और शालीग्राम की मूर्ति स्थापित करें. चौकी के चारों और गन्ने का मण्डप सजाएं और कलश की स्थापना करें. सबसे पहले कलश और गौरी गणेश का पूजन करें. अब माता तुलसी और भगवान शालीग्राम को धूप, दीप, वस्त्र, माला, फूल अर्पित करें. तुलसी माता को श्रृगांर के सामान और लाल चुनरी चढ़ाएं. ऐसा करने से सुखी वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद मिलता है. पूजा के बाद तुलसी मंगलाष्टक का पाठ करें. हाथ में आसन सहित शालीग्राम को लेकर तुलसी के सात फेरे लें. फेरे पूरे होने के बाद भगवान विष्णु और तुलसी की आरती करें. पूजा के बाद प्रसाद बाटें.
तुलसी विवाह पर हर्षण योग का शुभ संयोग
तुलसी विवाह के दिन हर्षण योग का शुभ संयोग बन रहा है. हिंदू पंचांग के अनुसार, हर्षण योग 15 नवंबर की देर रात 1 बजकर 44 मिनट तक रहेगा. ज्योतिष शास्त्र में शुभ व मांगलिक कार्यों के लिए हर्षण योग को उत्तम माना जाता है.
तुलसी विवाह का महत्व
हिंदू मान्यता के अनुसार तुलसी विवाह करने से कन्यादान के समान पुण्य की प्राप्ति होती है. इसलिए अगर किसी ने कन्या दान न किया हो तो उसे जीवन में एक बार तुलसी विवाह करके कन्या दान करने का पुण्य अवश्य प्राप्त करना चाहिए. मान्यताओं के अनुसार, तुलसी विवाह विधि-विधान से संपन्न कराने वाले भक्तों को सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है. सारे कष्ट दूर हो जाते हैं और भगवान विष्णु की कृपा से सारी मनोकामना पूरी होती है. किसी के वैवाहिक जीवन में यदि परेशानी आ रही हो तो सारी बाधाएं दूर हो जाती हैं.
तुलसी मंगलाष्टक मंत्र
ॐ श्री मत्पंकजविष्टरो हरिहरौ, वायुमर्हेन्द्रोऽनलः। चन्द्रो भास्कर वित्तपाल वरुण, प्रताधिपादिग्रहाः ।
प्रद्यम्नो नलकूबरौ सुरगजः, चिन्तामणिः कौस्तुभः, स्वामी शक्तिधरश्च लांगलधरः, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥1
गंगा गोमतिगोपतिगर्णपतिः, गोविन्दगोवधर्नौ, गीता गोमयगोरजौ गिरिसुता, गंगाधरो गौतमः ।
गायत्री गरुडो गदाधरगया, गम्भीरगोदावरी, गन्धवर्ग्रहगोपगोकुलधराः, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥2
नेत्राणां त्रितयं महत्पशुपतेः अग्नेस्तु पादत्रयं, तत्तद्विष्णुपदत्रयं त्रिभुवने, ख्यातं च रामत्रयम् । गंगावाहपथत्रयं सुविमलं, वेदत्रयं ब्राह्मणम्, संध्यानां त्रितयं द्विजैरभिमतं, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥3
बाल्मीकिः सनकः सनन्दनमुनिः, व्यासोवसिष्ठो भृगुः, जाबालिजर्मदग्निरत्रिजनकौ, गर्गोऽ गिरा गौतमः । मान्धाता भरतो नृपश्च सगरो, धन्यो दिलीपो नलः, पुण्यो धमर्सुतो ययातिनहुषौ, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥4
गौरी श्रीकुलदेवता च सुभगा, कद्रूसुपणार्शिवाः, सावित्री च सरस्वती च सुरभिः, सत्यव्रतारुन्धती ।
स्वाहा जाम्बवती च रुक्मभगिनी, दुःस्वप्नविध्वंसिनी, वेला चाम्बुनिधेः समीनमकरा, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥5
गंगा सिन्धु सरस्वती च यमुना, गोदावरी नमर्दा, कावेरी सरयू महेन्द्रतनया, चमर्ण्वती वेदिका ।
शिप्रा वेत्रवती महासुरनदी, ख्याता च या गण्डकी, पूर्णाः पुण्यजलैः समुद्रसहिताः, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥6
लक्ष्मीः कौस्तुभपारिजातकसुरा, धन्वन्तरिश्चन्द्रमा, गावः कामदुघाः सुरेश्वरगजो, रम्भादिदेवांगनाः ।
अश्वः सप्तमुखः सुधा हरिधनुः, शंखो विषं चाम्बुधे, रतनानीति चतुदर्श प्रतिदिनं, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥7
ब्रह्मा वेदपतिः शिवः पशुपतिः, सूयोर् ग्रहाणां पतिः, शुक्रो देवपतिनर्लो नरपतिः, स्कन्दश्च सेनापतिः ।
विष्णुयर्ज्ञपतियर्मः पितृपतिः, तारापतिश्चन्द्रमा, इत्येते पतयस्सुपणर्सहिताः, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥8
॥ इति मंगलाष्टक समाप्त ॥
तुलसी पूजन के मंत्र
तुलसी जी की पूजा के दौरान उनके इन नाम मंत्रों का उच्चारण करें
ॐ सुभद्राय नमः
ॐ सुप्रभाय नमः
तुलसी दल तोड़ने का मंत्र
मातस्तुलसि गोविन्द हृदयानन्द कारिणी
नारायणस्य पूजार्थं चिनोमि त्वां नमोस्तुते ।।
रोग मुक्ति का मंत्र
महाप्रसाद जननी, सर्व सौभाग्यवर्धिनी
आधि व्याधि हरा नित्यं, तुलसी त्वं नमोस्तुते।।
तुलसी स्तुति का मंत्र
देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः
नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये।।
तुलसी विवाह 2021 (Tulsi Vivah 2021)
देवउठनी एकादशी पर तुलसी विवाह का भी आयोजन किया जाता है. इस दिन तुलसी की शालिग्राम के साथ शादी कराई जाती है. तुलसी भगवान विष्णु को प्रिय हैं. तुलसी को पवित्र माना गया है.
देवउठनी एकादशी की ये है पूजा विधि
इस दिन सुबह जल्दी उठकर पवित्र नदियों में स्नान करें. ऐसी मान्यता है कि पवित्र नदियों में स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है. इस दिन शाम से पहले पूजा स्थल को साफ़-सुथरा कर लें. चूना और गेरू से विष्णु भगवान के स्वागत के लिए रंगोली बनाएं.
देवोत्थान एकादशी व्रत नियम (Devuthani Ekadashi Vrat Niyam)
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार एकादशी के दिन चावल खाना वर्जित माना गया है. सालभर में 24 एकादशी पड़ती हैं और सभी में चावल खाने की मनाही होती है. कहते हैं कि एकादशी के दिन चावल खाने से अगले जन्म में रेंगने वाले जीव की योनि में जन्म मिलता है.
भगवान विष्णु की अराधना है जरूरी
एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठना चाहिए और शाम के समय भी सोने की मनाही होती है. इस दिन भगवान विष्णु की अराधना करनी चाहिए.
Devuthani Ekadashi 2021: देवउठनी एकादशी महत्व
देवउठनी एकादशी तिथि से चतुर्मास अवधि खत्म हो जाती है। कहा जाता है कि भगवान विष्णु शयनी एकादशी को सो जाते हैं और देवउठनी एकादशी के दिन जागते हैं। इस दिन मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा करने से मनोकामना पूरी होने की मान्यता है.
देवोत्थान एकादशी समय (Devutthana Ekadashi 2021 Timings)
देवउत्थान एकादशी रविवार, नवम्बर 14, 2021 को
एकादशी तिथि प्रारम्भ – नवम्बर 14, 2021 को 05:48 am बजे
एकादशी तिथि समाप्त – नवम्बर 15, 2021 को 06:39 am बजे
पारण तिथि के दिन हरि वासर समाप्त होने का समय – 01:00 pm बजे
Devuthani Ekadashi 2021: तुलसी पूजा
सबसे अहम बात है कि इसी दिन भगवान शालीग्राम के साथ तुलसी मां का आध्यात्मिक विवाह भी होता है. लोग घरों में और मंदिरों में ये विवाह करते हैं.इस दिन तुलसी की पूजा का महत्व है. शालीग्राम और तुलसी की पूजा से पितृदोष का शमन होता है.