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धनबाद में 482 कुपोषित बच्चों की हुई पहचान, जानें कितने का हो रहा इलाज

हर साल सितंबर माह में महिला व बाल विकास मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय पोषण माह मनाया जाता है. इस पूरे महीने तमाम तरह के प्रयास किये जाते हैं, कुपोषण से बचने को लेकर. जागरूकता फैलायी जाती है.इसके बाद भी धनबाद में इस साल के अगस्त महीने तक 482 कुपोषित बच्चों की पहचान की गयी है. इनमें 93 का इलाज हो रहा है.

By Rahul Kumar | September 17, 2022 12:15 PM

Dhanbad News: हर साल सितंबर माह में महिला व बाल विकास मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय पोषण माह मनाया जाता है. इसके तहत शून्य से छह साल तक के बच्चे, गर्भवती महिला व घातृ महिलाओं को कुपोषण से बचाने, सीमित साधन में संतुलित आहार की जानकारी दी जाती है. जिला समाज कल्याण विभाग द्वारा कुपोषण व एनीमिया से संबंधित पोस्टर बैनर आंगनबाड़ी केंद्र में भेजकर सेविका व सहायिकाओं के माध्यम से लोगों को कुपोषण के प्रति जागरूक किया जाता है. बावजूद इसके जिले के आठ प्रखंडों में 2022-2023 में अगस्त तक 482 कुपोषित बच्चे हैं.

निरसा प्रखंड में 156 कुपोषित बच्चों की हुई पहचान

सबसे कम तोपचांची प्रखंड में एक और सबसे अधिक निरसा प्रखंड में 156 कुपोषित बच्चों की पहचान हुई है. धनबाद में छह कुपोषित बच्चे हैं. जिला समाज कल्याण पदाधिकारी स्नेह कश्यप ने बताया कि कुपोषण से बचाव के लिए जिला में तीन कुपोषण उपचार केंद्र (माल न्यूट्रीशियन ट्रीटमेंट सेंटर) संचालित है. वर्ष 2021-2022 में टुंडी में 13 गोविंदपुर में पांच और तोपचांची में 17 बच्चों कुल 35 का इलाज किया गया. कुपोषित बच्चों की संख्या और सिर्फ 35 का इलाज यह आंकड़ा चौकाने वाला है. पता चला कि कई अभिभावक अपने बच्चों का कुपोषण उपचार केंद्र में रहकर इलाज नहीं कराना चाहते हैं. उनका कहना होता है कि घर में और भी बच्चे हैं, उन्हें छोड़कर कुपोषण उपचार केंद्र में रहना संभव नहीं है. जबकि सरकार की ओर से कुपोषित बच्चे के साथ रहने वाली उसकी मां के लिए भी राशि दी जाती है.

15 दिन होता है उपचार

कुपोषित बच्चे का उपचार 15 दिन का होता है. जो बच्चे सैम ( सीरियल एक्यूड माल न्यूट्रिशन ) अति गंभीर कुपोषण के तहत पाये जाते हैं, उन्हें उपचार केंद्र भेजा जाता है. केंद्र में बच्चे के साथ उनके एक अटेंडेंट का रहना जरूरी होता है. अटेंडेंट को प्रतिदिन सौ रुपया दिया जाता है. उपचार केंद्र मेें प्रभारी चिकित्सक के साथ एएनएम सेवा देती हैं. बच्चे के जरूरत के अनुसार उपचार किया जाता है. 15 दिन के उपचार के बाद बच्चे को डिस्चार्ज किया जाता है. डिस्चार्ज करने के बाद बच्चे की स्थिति जानने के लिए चार फॉलोअप लिया जाता है.

महीने में दो बार होती है सीबीई

जिले में संचालित 2231 आंगनबाड़ी केंद्रों पर महीने में दो बार कम्यूनिटी बेस्ट इंवेट (सीबीइ) होती है. यहां गर्भवती महिला की गोद भरायी की जाती है. बच्चे का वजन लिया जाता है. कम वजनवाले बच्चों में कुपोषण के लक्षण दिखते ही उन्हें नजदीक वाले कुपोषण उपचार केंद्र में भेजा जाता है.

गोद भरायी में दी जाती है जानकारी

आंगनबाड़ी केंद्र में गोद भरायी के समय गर्भवती माता को सेविका व सहायिका द्वारा महत्वपूर्ण जानकारी दी जाती है. उन्हें बताया जाता है कि सीमित साधन में भी संतुलित आहार लिया जा सकता है. गर्भावस्था में संतुलित आहार लेने से नवजात स्वस्थ पैदा होगा. छह माह के बाद बच्चे का अन्नप्रासन कराया जाता है. अन्नप्रासन में जानकारी दी जाती है छह माह के बाद बच्चों को ऊपर का आहार देना जरूरी होता है, क्योंकि यहीं से कुपोषण प्रारंभ होता है.

मार्च, सितंबर में चलता है जागरूकता रथ

एक से 15 मार्च पोषण पखवारा व एक से 30 सितंबर पोषण माह में जिले के सभी प्रखंडों में एलइडी वैन (जागरूकता रथ) से विभाग द्वारा प्रचार प्रसार के लिए भेजा जाता है. जागरूकता रथ में कुपोषण से बचाव, एनीमिया से बचाव संबंधित जानकारी पोस्टर, बैनर के माध्यम से दी जा रही है. नुक्कड़ नाटक के माध्यम से भी कुपोषण से बचाव के प्रति जागरूकता फैलायी जा रही है.

जिला में कुपोषित बच्चे

प्रखंड कुपोषित बच्चे

धनबाद 6

गोविंदपुर 90

झरिया 10

निरसा 156

बाघमारा 97

बलियापुर 77

टुंडी 45

तोपचांची 01

सुपोषण दिवस में दी जाती है जानकारी

जिला समाज कल्याण पदाधिकारी स्नेह कश्यप ने बताया कि जिले के सभी आंगनबाड़ी केंद्रों में महीने में दो बार दूसरे व चौथे बुधवार को सुपोषण दिवस मनाया जाता है. कम्यूनिटी बेस्ट इंवेट में कुपोषण से बचने की जानकारी दी जाती है. माताओं को इसकी जानकारी नहीं होती है कि दिन में कितनी बार और कितनी मात्रा में कैसा आहार देना चाहिए.

केंद्र में अभिभावक नहीं रखना चाहते हैं बच्चे

कुपोषित पाये गये बच्चों के अभिभावक ट्रीटमेंट के लिए उन्हें सेंटर में नहीं रखना चाहते. बार बार काउंसेलिंग करने के बाद भी नहीं मानते हैं. उनका कहना होता है हमारे और भी बच्चे है अन्य काम हैं, सब छोड़कर सेंटर में रहना संभव नहीं है. ग्रामीण क्षेत्र के अभिभावक कुछ मानने सुनने को तैयार ही नहीं होते हैं. सेंटर में छह माह से पांच साल तक के कुपोषित बच्चों को रखे जाने का प्रावधान है.

स्नेह कश्यप, जिला समाज कल्याण पदाधिकारी

कुपोषण से बचाने के लिए दें संतुलित आहार

बच्चों को कुपोषण से बचाने के लिए जागरूकता बेहद जरूरी है. माताओं को इस बात की जानकारी होनी चाहिए की कम संसाधन में भी संतुलित आहार देकर बच्चों को कुपोषण से बचाया जा सकता है. बच्चों को दलिया, उबला आलू, पपीता, कच्चा केला उबालकर, फल में पका केला, पका पपीता, सेब, मडुआ के आटे का हलवा, रोटी, दाल का पानी, दाल, सोयाबीन, खिचड़ी दें.

डॉ आशोक तालपात्रा, शिशु रोग विशेषज्ञ

छह माह से बच्चों को दें आहार

डायटीशियन मनीषा मीनू ने बताया : बच्चों का पोषण गर्भ से ही प्रारंभ हो जाता है. गर्भावस्था के तीन महीने में हार्मोन में बदलाव के कारण महिलाओं में कई तरह के बदलाव होते हैं. उल्टियां होती है. तीन महीने के बाद से उन्हेंं कैल्सियम, प्रोटीन, आयरन की मात्रा बढ़ाना चाहिए. इस समय गर्भस्थ शिशु का अंग बनना शुरू हो जाता है. गर्भवती स्वस्थ रहेगी, तभी आनेवाला बच्चा स्वस्थ पैदा होगा. गर्भावस्था में प्रतिदिन 75 से 85 ग्राम प्रोटीन, 800से 1000 माइक्रोग्राम कैल्शियम, 8 से 10 ग्राम आयरन की जरूरत होती है. विटामिन डी के लिए सूरज की रोशनी में बैठें. गर्भावस्था में एनीमिया व मधुमेह होने के चांस बढ़ जाते हैं. बच्चों को कुपोषण से बचाने के लिए दूध, दही, पनीर, दाल, चना, सोयाबीन, अंडा, चिकेन, मछली, दें. इन खाद्य पदार्थ में प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है. केला, सेब, अनार, अमरूद, संतरा, खीरा दें. इनमें आयरन, विटामिन सी, फाइबर होते हैं. दाल दलिया, मीठा दलिया, प्लेन खिचड़ी, वेजेटेबल खिचड़ी दें. जिन बच्चों को दूध नहीं पचता है उन्हें मड़ुआ के आटे की रोटी हलवा, मूंगफली दें. इनमें कैल्सियम पाया जाता है.

रिपोर्ट : सत्या राज, धनबाद

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