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धनबाद के केएमसीइएल की 112.50 करोड़ की लगी बोली, कोलकाता की लोगोन एथिकल्स ने खरीदा

धनबाद के कुमारधुबी में बंद पड़े कुमारधुबी मेटल कास्टिंग एंड इंजीनियरिंग वर्क्स लिमिटेड उद्योग की सफल बोली रांची में लगी. कोलकाता की कंपनी लोगोन एथिकल्स ने 112.50 करोड़ रुपये की बोली लगा कर केएमसीइएल को हासिल कर लिया. इसकी पुष्टि ऑफिशियल लिक्वीडेटर केसी मीणा के अधिकृत अधिवक्ता हिमांश मेहता ने की.

Dhanbad News: धनबाद के कुमारधुबी में बंद पड़े कुमारधुबी मेटल कास्टिंग एंड इंजीनियरिंग वर्क्स लिमिटेड (केएमसीइएल) उद्योग की सफल बोली रांची में लगी. कोलकाता की कंपनी लोगोन एथिकल्स ने 112.50 करोड़ रुपये की बोली लगा कर केएमसीइएल को हासिल कर लिया. इसकी पुष्टि ऑफिशियल लिक्वीडेटर केसी मीणा के अधिकृत अधिवक्ता हिमांश मेहता ने की.

15 सितंबर को निकाला विज्ञापन

लोगोन एथिकल्स कंपनी कोलकाता के राकेश सिंघानिया की है. बताया जाता है कि झारखंड हाइकोर्ट द्वारा नियुक्त लिक्वीडेटर केसी मीणा ने कंपनी की कीमत 110 करोड़ रुपये लगायी थी. बोली के लिए बीते 15 सितंबर को विज्ञापन निकाला गया था. सीलबंद लिफाफे में इच्छुक फर्मों को 10 अक्टूबर तक टेंडर जमा करना था. इसे 14 अक्टूबर को खोला जाना था.

टेंडर में सामने आये छह फर्म

निर्धारित समय पर खोले गये टेंडर में छह फर्म सामने आये, लेकिन सारी शर्तों को पूरा करने पर कोलकाता के लोगोन एथिकल्स एवं सिद्धि विनायक ही बिडिंग में सफल रहे. बताते चलें कि कुमारधुबी मेटल कास्टिंग एंड इंजीनियरिंग वर्क्स लिमिटेड की बिक्री के लिए लंबे अरसे से प्रक्रिया चल रही थी. हालांकि कोई फर्म लिक्वीडेटर द्वारा तय राशि पर बंद उद्योग खरीदने को तैयार नहीं हो रहा था.

यह भी जानें

कोलकाता की कंपनी ने हासिल किया कुमारधुबी का बंद उद्योग

लोगोन एथिकल्स एवं सिद्धि विनायक फर्म ही पूरी कर सके शर्त

कोर्ट के आदेश से होगा सभी बकायेदारों का भुगतान

वर्ष 1995 में बंद हो गयी थी कंपनी

मजदूरों का 50 करोड़ है बकाया

लोगोन एथिकल्स ने जमा किये 22 करोड़ रुपये

ऑफिशियल लिक्वीडेटर केसी मीणा के अधिकृत अधिवक्ता हिमांशु मेहता ने बताया कि कंपनी ने 22 करोड़ रुपये जमा किये हैं. शेष राशि तीन माह में हाइकोर्ट में जमा करनी है. इसके बाद ही कंपनी को पजेशन मिलेगा. उधर, राशि जमा होते ही जिन लोगों का बकाया था या श्रमिकों के बकाये के मुद्दे पर उनके द्वारा कोर्ट में डिटेल फाइल की जायेगी. फिर उसके अनुरूप कोर्ट के आदेश से बकायेदारों का भुगतान होगा. यह कंपनी वर्ष 1995 में बंद हुई थी. यूनियन नेताओं की मानें तो कंपनी पर मजदूरों का लगभग 50 करोड़ रुपये से अधिक बकाया है. बंद उद्योग के नाम पर लगभग 165 एकड़ जमीन और मशीनरी है.

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