बीमारी से दूर होने के लिए लोग आज अस्पतालों का चक्कर लगा रहे हैं. क्या अस्पताल से मिलने वाली दवाओं से बीमारी दूर होती है? दवाओं से बीमारी दूर नहीं होती, बल्कि दब जाती है. कुछ समय के बाद बीमारी फिर से आ जाती है. फिर से लोग अस्पताल जाते हैं और डॉक्टर उन्हें दवा देते है. यह चक्र चलता रहता है. जबकि इसका समाधान आपकी रसोई में है. अस्पताल की जगह रसोई को ठीक कर लें, तो बीमार नहीं होंगे. खानपान को बदल कर स्वस्थ जीवन जी सकते हैं. उक्त बातें भारत के मिलेट मैन कहे जाने वाले पद्मश्री से सम्मानित डॉ खादर वली ने कही. वह रविवार को धनबाद आये थे. सिंफर में कार्यक्रम करने के बाद धनबाद क्लब में आयोजित आहार से आरोग्य विषय पर आयोजित कार्यक्रम में मिलेट मैन ने कहा : आज फूड व स्वास्थ्य एक इंडस्ट्रीज बन गया है. मिट्टी के बर्तन का उपयोग बंद हो गया है. फूड काॅरपोरेट वालों ने यह तय कर दिया है कि हमें क्या खाना है. बच्चों के मुंह में आर्टिफिशियल दूध डाला जा रहा है, जो स्लो प्वाइजन के रूप में काम करता है. गाय का दूध उसके बछड़ा के लिए होता है, मनुष्य के लिए नहीं. दूध को पचाने के लिए हमारा शरीर नहीं बना है. आदमी का बच्चा जन्म से चार साल तक ही दूध पीता है. इसी बीच मां का दूध भी खत्म हो जाता है. इसके बाद बच्चें को दूध की जरूरत नहीं होती है. कार्यक्रम में प्रधान आयकर आयुक्त अजीत कुमार श्रीवास्तव, आयकर आयुक्त संजय कुमार, राजेश सिंघल समेत स्वामी जयपल, मनोज अग्रवाल, रमेश श्रीवास्तव, संजीव बंहोत्रा, विनय अग्रवाल आदि मौजूद थे.
लड़कियों में मासिक धर्म का समय बदल गया
लड़कियों में पहले 15 साल की उम्र में मासिक धर्म शुरू होता था, लेकिन असंतुलित खान-पान के कारण हार्मोन डिसबैलेंस हो गया है. इस कारण 12 साल में मासिक धर्म होने लगा. अब यह घट कर नौ से आठ साल पर आ गया है. चावल, गेंहू, चीनी व दूध छोड़ दें, तो अधिकांश बीमारी ठीक हो जायेगी. उन्होंने खाने के सही तरीके को बताते हुए कहा कि दिन में सिर्फ दो वक्त खाना खायें. सुबह व रात में. रात का खाना आठ बजे से पहले खत्म का लें. इसे फॉलो करें और देखेंगे कि काफी सुधार हो गया है.
हमारे खान-पान को बदल दिया गया
मिलेट मैन ने खेती और स्वास्थ्य सेवा उद्योग के निगमीकरण और गेहूं, चावल और चीनी के बढ़ते उपयोग की निंदा की. कहा : यह एक तरह की विडंबना है कि तथाकथित बुद्धिजीवियों को खाद्य सुरक्षा के बारे में चर्चा में भाग लेते देखते रहते हैं. साथ ही हम, जो खाना खा रहे हैं, वह हमारा असली खाना नहीं है. इन दिनों हमारा अधिकांश भोजन चावल, गेहूं और चीनी से बना है, जो हमारे शरीर में ग्लूकोज की एकाग्रता को परेशान करता है. इसे मैं ””ग्लूकोज असंतुलन”” कहता हूं, हमारे रक्त को गाढ़ा करता है, और हृदय और उसके बाद, सभी अंगों को प्रभावित करता है. फिर भी, मानव स्वास्थ्य पर इसके दुष्प्रभाव और आधुनिक बीमारियों की तेजी से वृद्धि के बारे में दुनिया में कहीं भी कोई सवाल नहीं पूछा जाता है.
कम पानी में भी मिलेट की होती है बेहतर उपज
मानव हजारों वर्षों से अपने आसपास उपलब्ध विभिन्न प्रकार के अनाज या बाजरा खाता था, जो कम मात्रा में भी उगने वाली सैंकड़ों प्रकार की घासों के बीजों के माध्यम से उगता था. ये घांस वायुमंडल से सीधे पानी को अवशोषित कर सकते हैं और गेहूं, चावल के विपरीत उन्हें जीवित रहने के लिए सिंचाई के लिए बहुत कम मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है. कम पानी में भी मिलेट की बेहतर उपज होती है. इसलिए मोटा अनाज को हमारे मुख्य आहार के रूप में फिर से शामिल कर पर्यावरणीय प्रभाव को कम किया जा सकता है. जब तक चावल और गेहूं हमारी थाली में नहीं थे, किसी को भी उच्च रक्तचाप, मधुमेह, गठिया, थायरॉयड, फैटी लीवर आदि जैसी बीमारियाँ नहीं थीं. क्योंकि वे सभी अंगों तक कुशलतापूर्वक पहुंचने के लिए हमारे रक्त को गाढ़ा बनायें. दूध की जरूरत हमारे शरीर को नहीं है. चीनी हमारे शरीर के लिए सबसे हानिकारक है. हमें इसकी एक मिलीग्राम भी मात्रा नहीं खानी चाहिए. मनुष्य पहले मोटा अनाज खाते थे, जो हमारे खून को पतला रखता है. इसकी समृद्ध प्राकृतिक फाइबर सामग्री हमारे माइटोकॉन्ड्रिया को अनावश्यक ग्लूकोज जलाने में मदद करती है और हमारे आंत के रोगाणु संक्रामकों के विरुद्ध अधिक प्रतिरक्षा प्रदान करते हैं. स्वस्थ शरीर के लिए प्रत्येक कोशिका को दैनिक आधार पर डिटॉक्स करना पड़ता है. इसलिए मोटा अनाज आपके खून में सभी प्रकार की बीमारियों को खत्म करने के लिए एक अद्भुत हथियार बन जाता है.
सिंफर में हुआ कार्यक्रम
केंद्रीय खनन व ईंधन अनुसंधान संस्थान (सीएसआइआर-सीआईएमएफआर) ने स्वास्थ्य चर्चा का आयोजन किया गया. इसमें डॉ खादर वली और आइआरएस सीआईटी (ए) संजय कुमार उपस्थित थे. सीएसआईआर-सीआईएमएफआर के निदेशक प्रो. अरविंद कुमार मिश्रा ने स्वागत किया. प्रो अरविंद कुमार मिश्रा ने पद्मश्री डॉ खादर वली का परिचय दिया. डॉ खादर वली ने स्वास्थ्य समस्याओं पर चर्चा की. इसमें बाजरा के महत्त्व को बताया. उन्होंने पारंपरिक भारतीय खाद्य आदतों की वापसी के लिए बाजरा को एक समाधान के रूप में दिखाया. डॉ खादर वली ने स्वास्थ्य समस्याओं के संबंध में भूमि, मिट्टी और पानी के महत्त्व को उजागर किया और एक पूर्णतान्त्रिक उपचार की दिशा में एक बदलाव की अपील की. बाजरा में मौजूद अद्भुत उपचार संभावना को बढ़ावा देते हुए उन्होंने बाजरा को दिनचर्या में शामिल करने की प्रेरणा दी.
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