पोते करण देओल की शादी में Dharmendra का छलका दर्द, पढ़ी कविता, बोले- दम घुट रहा था खामोशी का…
अनुपम खेर ने अपने ट्विटर पर वीडियो पोस्ट किया है. इसमें अनुपम कहते है, जी धरमजी आप बहुत अच्छा कुछ सुना रहे थे. जिसके बाद धर्मेंद्र अपनी एक कविता बहुत गहराई से पढ़ते है. अनुपम और राज बब्बर उनका हौसला अफजाई करते है.
Dharmendra Video: हाल ही में दिग्गज एक्टर धर्मेंद्र के पोते और सनी देओल के बेटे सनी देओल की शादी हुई. इस शादी में बॉलीवुड से कई सेलेब्स शामिल हुए, जिनमें अनुपम खेर औऱ राज बब्बर भी थे. इस दौरान अनुपम ने धरम पाजी का एक वीडियो रिकॉर्ड किया, जिसे उन्होंने फैंस के संग शेयर किया. वीडियो में धर्मेंद्र एक कविता पढ़ते हुए नजर आ रहे हैं. इसपर यूजर्स खूब सारे कमेंट कर रहे है.
अनुपम खेर ने शेयर किया ये वीडियो
अनुपम खेर ने अपने ट्विटर पर वीडियो पोस्ट किया है. इसमें अनुपम कहते है, जी धरमजी आप बहुत अच्छा कुछ सुना रहे थे. जिसके बाद धर्मेंद्र अपनी एक कविता बहुत गहराई से पढ़ते है. अनुपम और राज बब्बर उनका हौसला अफजाई करते है. एक्टर ने वीडियो के साथ कैप्शन में लिखा, हम जब बड़े हो जाते हैं. उम्र में या रुतबे में. तो अपने छोड़े हुए घर की बहुत याद आती है. उस घर की, जहां हमने अपना बचपन गुज़ारा होता है.
हम जब बड़े हो जाते हैं।उम्र में या रुतबे में।तो अपने छोड़े हुए घर की बहुत याद आती है। उस घर की, जहाँ हमने अपना बचपन गुज़ारा होता है। उस दिन मेरे दोस्त सनी देओल के बेटे, करण की शादी में कुछ जल्दी पहुँच गया तो धरम जी के साथ वक़्त गुज़ारने का मौक़ा मिला।धरम जी अपनी लिखी हुई नज़्म… pic.twitter.com/truylYA6Yw
— Anupam Kher (@AnupamPKher) June 27, 2023
उस दिन मेरे दोस्त…
आगे उन्होंने लिखा, उस दिन मेरे दोस्त सनी देओल के बेटे, करण की शादी में कुछ जल्दी पहुंच गया तो धरम जी के साथ वक़्त गुज़ारने का मौक़ा मिला. धरम जी अपनी लिखी हुई नज़्म (कविता) की कुछ लाइनें गुनगुना रहे थे. जो मेरे और राज बब्बर जी के दिलों की गहराई को छू रही थी. मेरे बहुत कहने पर वो ये नज़्म रिकॉर्ड करने को राज़ी हुए. आप भी सुनिए. आपको भी अपना माज़ी, अपना बचपन, अपना घर और अपनी मां बहुत याद आएगी.
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धरम पाजी की कविता
धरम पाजी की कविता के लाइन्स ऐसे है, मैं अपने कमरे में गुमशुम, तन्हा, उदास बैठा था, देख उदास मुझे बेचैन सोच मेरी, ले गई मुझे मेरे गांव की गलियों में, उड़ता जर्रा जर्रा मेरी धरती का, सूरते मां मेरे सामने आ खड़ा जर्रा तारीख हो गया, चुप थीं मां मैं ख़ामोश हो गया फिर आया झोंका जो बिछड़ी यादों का उड़ता जर्रा जर्रा मेरी धरती का सूरते मां मेरे सामने आ खड़ा जर्रा तारीख हो गया, चुप थीं मां मैं ख़ामोश हो गया, लम्हा ये जानेवाला था, अचानक मां मिल गई…
‘दम घुट रहा था ख़ामोशी का…’
आगे धर्मेंद्र ने कहते है, दम घुट रहा था ख़ामोशी का, सुबुकती ममता ने फिर चुप्पी तोड़ी अब और न तड़पा, आ मेरे बच्चे आ मेरे गले लग जा और मैं बिलखता किसी बच्चे की तरह मां, मेरी मां कहकर जाके मां से लिपटा, मां की नरम गोद में नींद सी आने लगी, मां ने सिर सहलाते हुए कहा- वो देख धरम, गांव के बच्चे-बूढ़े सब हैं खड़े तुझसे मिलने के लिए जा उनसे मिल आ मैं चला गया…