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बंगाल चुनाव में तृणमूल कांग्रेस के लिए ‘करो या मरो’ की स्थिति, उदार हिंदुत्व की ओर बढ़ रही ममता की पार्टी

पिछले कुछ दिनों से इसकी झलक भी देखी जा रही है. सरस्वती पूजा में राज्य के मंत्रियों ने अपने-अपने घरों में पूजा की और उसकी तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर पोस्ट की. ममता बनर्जी ने 10 मार्च को हल्दिया में नंदीग्राम व विधानसभा सीट से नामांकन दाखिल करने से पहले खुद को हिंदू और ब्राह्मण की बेटी बताया. चंडी पाठ भी किया.

कोलकाता : पश्चिम बंगाल की सत्तारूढ़ पार्टी तृणमूल कांग्रेस और उसकी सुप्रीमो ममता बनर्जी के लिए 2021 का विधानसभा चुनाव में ‘करो या मरो’ की स्थिति है. भाजपा से उसे कड़ी टक्कर मिल रही है. भाजपा को सत्ता में आने से रोकने के लिए अब ममता की पार्टी टीएमसी को उदार हिंदुत्व का रास्ता अपनाना पड़ रहा है.

पिछले कुछ दिनों से इसकी झलक भी देखी जा रही है. सरस्वती पूजा में राज्य के मंत्रियों ने अपने-अपने घरों में पूजा की और उसकी तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर पोस्ट की. ममता बनर्जी ने 10 मार्च को हल्दिया में नंदीग्राम व विधानसभा सीट से नामांकन दाखिल करने से पहले खुद को हिंदू और ब्राह्मण की बेटी बताया. चंडी पाठ भी किया.

विश्व में लोकतांत्रिक तरीके से निर्वाचित एवं सबसे लंबे समय तक शासन करने वाली कम्युनिस्ट सरकार को हराकर इतिहास रचने के करीब एक दशक बाद तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी एक बार फिर निर्णायक मोड़ पर खड़ी हैं. इस बार, बंगाल विधानसभा चुनावों में उनके लिए ‘करो या मरो’ की स्थिति है.

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इस चुनाव में तृणमूल कांग्रेस प्रमुख का राजनीतिक भविष्य दांव पर लगा हुआ है, क्योंकि शिकस्त मिलने पर उनकी पार्टी के अस्तित्व पर सवालिया निशान लग सकता है, जो 2011 से राज्य में शासन कर रही है. लेकिन, यदि वह चुनाव जीत जाती हैं, तो उन्हें नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा के विजय रथ को रोकने वाले नेताओं में गिना जायेगा.

मोदी के सबसे बड़े आलोचकों में शुमार बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, न केवल भाजपा से लोहा ले रही हैं, बल्कि चुनाव से ठीक पहले उन्हें अपनी पार्टी के बागी नेताओं से भी चुनौती मिल रही है. ‘डूबते जहाज’ के तमगे से पीछा छुड़ाने को आतुर तृणमूल कांग्रेस ने चुनाव में ‘बांग्ला निजेर मेयेकेई चाय’ (बंगाल को अपनी ही बेटी चाहिए) का नारा दिया है.

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तृणमूल ने माना – भाजपा से मुकाबला कड़ा है

पार्टी ने बंगाली अस्मिता का कार्ड खेलते हुए भाजपा को ‘बाहरी’ लोगों की पार्टी करार दिया है. पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं प्रवक्ता सौगत राय ने कहा, ‘इस बार मुकाबला कड़ा है, क्योंकि हमारे सामने भाजपा है जो धन, बल और केंद्र सरकार की मशीनरी के इस्तेमाल से बंगाल में सत्ता हथियाना चाहती है. वर्ष 2011 और 2016 के विधानसभा चुनाव आज के मुकाबले कम तनाव देने वाले थे.’

तृणमूल कांग्रेस के कई नेताओं ने इस बार चुनाव के नतीजों को भाग्य के सहारे छोड़ दिया है, क्योंकि उनका मानना है कि विधानसभा चुनाव में हारने के बाद पार्टी का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है. ममता ने भ्रष्टाचार और तुष्टिकरण की राजनीति करने के आरोपों को खारिज करते हुए विश्वास जताया है कि उनकी पार्टी आसानी से चुनाव जीत जायेगी और 220 सीटें प्राप्त करेगी.

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बंगाल में विधानसभा चुनाव आठ चरणों में हो रहे हैं और पहले चरण में 30 सीटों पर मतदान 27 मार्च को होना है. मतगणना दो मई को होगी. तृणमूल कांग्रेस 2001 और 2006 में चुनाव जीतने की नाकाम कोशिशों के बाद 2011 में कम्युनिस्ट सरकार को हराकर राज्य की सत्ता पर काबिज हुई थी. वर्ष 2016 में एक बार फिर कम्युनिस्ट पार्टी को हराकर और 211 सीटें प्राप्त कर बनर्जी ने ममता ने सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत की.

लोकसभा चुनाव से ही बदलाव के दिखने लगे संकेत

वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान बदलाव के संकेत दिखने लगे और भाजपा ने राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) तथा संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के मुद्दों को उठाकर राज्य की 42 में से 18 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की और भगवा पार्टी को तृणमूल कांग्रेस से महज चार ही सीट कम मिली.

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राज्य के खाद्य आपूर्ति मंत्री ज्योतिप्रिय मलिक ने कहा कि पार्टी जून 2016 से कड़ी मेहनत कर रही है, ताकि उसकी राजनीतिक जमीन बची रहे और चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर तथा उनकी आई-पैक टीम को 2021 के विधानसभा चुनाव के लिए नियुक्त करना इसी दिशा में उठाया गया कदम है.

स्थानीय बनाम बाहरी मुद्दे से उत्साहित तृणमूल कांग्रेस

‘स्थानीय’ बनाम ‘बाहरी’ अभियान पर सकारात्मक प्रतिक्रिया मिलती देख तृणमूल कांग्रेस नेतृत्व ने ‘बंगाली गौरव’ की भावना को जगाने का निर्णय किया है और भाजपा की अस्मिता की राजनीति को चुनौती देने के लिए ममता नीत पार्टी महिलाओं को केंद्र में रखकर चुनाव प्रचार अभियान कर रही है.

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हालांकि, अल्पसंख्यकों का तुष्टिकरण, अम्फान चक्रवात के समय जमीनी स्तर पर हुए भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, बागी नेताओं का पार्टी छोड़कर जाना और विधानसभा चुनाव मैदान में पीरजादा अब्बास सिद्दीकी के इंडियन सेक्युलर फ्रंट (आइएसएफ) का उतरना, ऐसे मुद्दे हैं, जो पार्टी को नुकसान पहुंचा सकते हैं.

सांप्रदायिक विभाजन बढ़ने से बीजेपी को होगा फायदा

तृणमूल सूत्रों के अनुसार, बंगाल चुनाव में आइएसएफ के उतरने से सांप्रदायिक विभाजन बढ़ेगा और भाजपा को इसका लाभ मिलेगा, लेकिन सत्ताधारी पार्टी को यह भी पता है कि वामदलों, कांग्रेस और आइएसएफ का गठजोड़ यदि काम कर गया, तो यह भाजपा के लिए चिंता का कारण बन सकता है.

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तृणमूल ने अपनी नीति में किया बदलाव

ममता बनर्जी की पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘आइएसएफ भले ही सीटें न जीते, लेकिन हमारे मुस्लिम वोटों को कटवाकर तृणमूल कांग्रेस को नुकसान पहुंचा सकती है और हिंदू भावनाओं का रुख भाजपा की ओर कर सकती है. लेकिन यदि गठजोड़ अच्छा प्रदर्शन करता है, तो यह हमारे लिए फायदेमंद होगा. हमने अपनी नीति में बदलाव किया है, जिसके तहत हम उदार हिंदुत्व की ओर बढ़ रहे हैं.’

Posted By : Mithilesh Jha

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