फ़िल्म-दोबारा
निर्देशक-अनुराग कश्यप
निर्माता-एकता कपूर
कलाकार-तापसी पन्नू,राहुल भट्ट,पावेल गुलाटी,सारस्वत चटर्जी,निधि सिंह,हिमांशी चौधरी और अन्य
रेटिंग-तीन
Dobaaraa Movie Review: साउथ फिल्मों और उनके रीमेक के बीच निर्देशक अनुराग कश्यप स्पैनिश फ़िल्म मिराज का हिंदी रीमेक लेकर आए हैं. यह सस्पेंस थ्रिलर फ़िल्म, हिंदी सिनेमा के पॉपुलर जॉनर से इतर है. यह आपके दिमाग से खेलती है, लेकिन यह एक्सपेरिमेंटल सिनेमा आपको अंत तक बांधे रखता है.
टाइम ट्रेवल वाली है यह कहानी दोबारा
फ़िल्म दोबारा दो दशकों के बीच सफर करती रहती है. 1990 से 2021 के बीच आती जाती रहती है फ़िल्म के कहानी की शुरुआत पुणे के हिंजेवाड़ी से होती है. वहां 10 साल का लड़का अमेय अपनी आर्किटेक मां के साथ रहता है. भारी बारिश और तूफान की आशंका है. रेडियो पर उसकी चेतावनी लगातार दी जा रही है. इसके साथ ये भी बताया जा रहा है कि इस तरह के जियो मैगनेटिक तूफान इंसानी दिमाग और शरीर पर अलग -अलग तरह के असर करते हैं और भी रिएक्शन यह कर सकते हैं. यह सब चलता रहता है कि रात में पड़ोसी घर से मारपीट की आवाज़ें आने लगती है. अमेय अपनी मां को जगाता है,लेकिन जब वह नहीं उठती,तो अमेय खुद पड़ोसी के घर पहुँच जाता है. जहां वह अपने पड़ोसी घोष (सास्वत)को उसकी पत्नी की हत्या करते देखता है. घोष भी उसे देख लेता हैं, अमेय बाहर भागता है और सड़क पर उस वक़्त फायर ब्रिगेड की गाड़ी के नीचे आ जाता है और उसकी मौत हो जाती है. जब उसकी मौत होती है,घड़ी में उस वक़्त 2:12 का समय हुआ होता है. जो कहानी का मूल शीर्षक भी है दो बारह .
कहानी 2021 में आ जाती है. नर्स अंतरा ( तापसी पन्नू )अपने पति (राहुल भट्ट )और बेटी अवंति के साथ नए घर में शिफ्ट हुए हैं. यह घर और किसी का नहीं बल्कि अमेय का ही है. एक बार फिर से भयानक तूफान आनेवाला है. इसी बीच अमेय का एक पुराना टीवी और वीडियो रिकॉर्डर अंतरा को मिल जाता है. जिससे कहानी अतीत और भविष्य में ना सिर्फ आती जाती है बल्कि बहुत कुछ अतीत का बदल भी देती है, जिससे अंतरा का वर्तमान भी बदल जाता है. अंतरा ने अतीत में क्या बदल दिया है? अंतरा का वर्तमान अमेय के अतीत से कैसे जुड़ा है. यह सब सवालों के जवाब आपको यह रिव्यु नहीं बल्कि फ़िल्म देगी.
फ़िल्म दोबारा की कहानी सस्पेंस और थ्रिलर से भरी हुई है. जो कुछ परदे पर दिखता है वह आपको चौंकाता है. यह फ़िल्म एक अलग तरह के जॉनर की है. परदे पर जो कुछ भी घटता है. एक पल को आपको अविश्वसनीय लग सकता है, लेकिन ढाई घंटे की फ़िल्म आपको पूरी तरह से बांधे रखती है. यही इस टाइम ट्रैवेल फ़िल्म की खूबी है. अंतरा के जो सवाल होते हैं. वो सवाल आपके भी बन जाते हैं.अंतरा की तरह आप भी उनका जवाब जानना चाहते हैं. निर्देशक अनुराग कश्यप ने चार -पांच किरदारों के बीच ही इस कहानी को कहा है. जिस वजह से कहानी पेचीदा होने के बावजूद उलझी नहीं है. फ़िल्म की खामियों की बात करें तो स्क्रिप्ट में इमोशनल पहलू की थोड़ी कमी है. एक मां के तौर पर अपनी बेटी को पाने की जद्दोजहद में वो इमोशन स्क्रिप्ट में आ नहीं पाया है. जो स्क्रिप्ट की अहम ज़रूरत थी. दूसरे पहलुओं में फ़िल्म की एडिटिंग पर थोड़ा और काम करने की ज़रूरत थी. फ़िल्म की लंबाई भी थोड़ी कम की जाती तो फ़िल्म और कमाल की बन सकती थी.
इस फ़िल्म का अभिनय पक्ष इसकी खूबी है. अभिनय की बात करे तो एक बार तापसी पन्नू ने स्क्रीन पर कमाल किया है. उन्होंने अपने किरदार को पूरी शिद्दत के साथ दिया है. पॉवेल गुलाटी अपने किरदार में याद रह जाते हैं तो शाश्वत चटर्जी,राहुल भट्ट भी अपनी भूमिका में छाप छोड़ने में कामयाब हुए हैं. बाकी के किरदारों ने भी कहानी के साथ बखूबी न्याय किया हैं.
फ़िल्म के दूसरे पहलुओं की बात करें तो फ़िल्म दोबारा के संवाद अच्छे बन पड़े हैं. कई बार वह इस थ्रिलर सस्पेंस फ़िल्म में मुस्कान भी बिखेर गए हैं. जिससे फ़िल्म का मूड भी थोड़ा हल्का हो गया है. फ़िल्म की सिनेमेटोग्राफी कहानी के अनुरूप है. दोनों दशकों को बखूबी कहानी में दर्शाया गया है. बैकग्राउंड म्यूजिक अच्छा बन पड़ा है. फ़िल्म का गीत-संगीत ज़रूर औसत रह गया है.
आप एक्सपेरिमेंटल सिनेमा के शौकीन हैं ,तो यह थ्रिलर सस्पेंस फ़िल्म आपके लिए है.