Kanpur: कानपुर के जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज में तैनात एक डॉक्टर ने ऐसी नीडिल डिजाइन की है, जो रेटिना के अंदर की परतों तक दवा पहुंचा देती है. अभी तक जो नीडिल बनी थी वह उन परतों तक दवा नहीं पहुंचा पाती थी. जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. परवेज खान की इस डिवाइस को पेटेंट प्रमाणपत्र जारी हो गया है. उन्होंने इसे ‘सुपर ख्योराइडल नीडिल’ नाम दिया है. यह रतौंधी जैसी लाइलाज बीमारी के इलाज में कारगर साबित होगी.
रतौंधी जैसी बीमारियों का इलाज अब तक मुश्किल था क्योंकि रेटिना की जिस परत तक दवा जानी चाहिए, वहां तक दवा पहुंचाने को नीडिल नहीं थी. डॉ.परवेज खान ने मीडिया से बातचीत करते हुए बताया कि पांच वर्ष तक देश-दुनिया के संस्थानों से सत्यापन के बाद उनके अविष्कार सुपर खोराइडल निडिल 500-900 माइक्रो यूनिट यानी (माइक्रो नीडिल फार आकूलर ड्रग डिलिवरी) को 20 साल के लिए अंतरराष्ट्रीय पेटेंट प्रदान कर दिया है. इस पर मेडिकल कॉलेज प्राचार्य डॉ. संजय काला ने खुशी जताई है.
डॉ. परवेज खान ने बताया कि इसे 2018 में तैयार कर लिया था. इसका प्रयोग 5000 से अधिक मरीजों पर कर चुके हैं. 30 देशों से नीडिल भेज कर पूछा गया कि उनमें और कानपुर में बनी नीडिल में क्या फर्क है. इसके साथ ही सभी को अंतर भी बताया गया. मैंने रतौंधी के इलाज पर शोध के तहत 15 मरीज चुने, जिन्हें कुछ नहीं दिखता था.
डॉ परवेज खान ने बताया कि पेटेंट को 2018 में आवेदन किया था. दुनिया भर के संस्थानों में पड़ताल के बाद इससे मिलती जुलती तीन नीडिल अमेरिका में मिली. उनसे रेटिना के अंदरूनी हिस्से तक पहुंचना संभव नहीं था. सभी शंकाओं के समाधान के बाद पांच साल में प्रक्रिया पूरी हुई. तब पेटेंट दिया गया.इस नीडिल का 26 अगस्त को दिल्ली में प्रेजेंटेशन होगा.