डोंबारी बुरु आज भी धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा और अंग्रेजों के बीच संघर्ष की कहानी बयां करता है. यहां पर बिरसा मुंडा की याद में स्मृति स्थल बनाया गया है. जहां पर उनकी बड़ी प्रतिमा और कार्यक्रम के लिए मंच तैयार किया गया है. यहां पर हमेशा मंत्री, विधायक और नेताओं का दौरा होते रहता है, लेकिन भगवान बिरसा की यादों को संजो कर रखने के लिए 80 डिसमिल जमीन देने वाने बिसु मुंडा को अब भी इंसाफ का इंतजार है. उन्हें बिना पैसे के दिनभर वहां की देखरेख करनी पड़ती है.
नौकरी देने का वादा कर लिया गया जमीन, 850 रुपये मिलता था मनदेय
डोंबारी बुरु में बिरसा स्मारक स्थल की देखरेख करने वाले बिसु मुंडा ने बताया कि 01 अगस्त 1990 को उनसे नौकरी देने का वादा करके स्मृति स्थल के लिए 80 डिसमिल जमीन ली गयी थी. 32 साल गुजर गये, लेकिन अब तक उन्हें या उनके परिवार वालों को सरकारी नौकरी नहीं मिली. जब वह अपनी कहानी बता रहे थे, उनकी बातों में दर्द साफ झलक रहा था. उन्होंने बताया, सितंबर 1997 तक मानदेय के रूप में 850 रुपये जिला परिषद से दिये गये. लेकिन उसके बाद उसे भी बंद कर दिया गया.
बिसु मुंडा के लिए परिवार का पेट पालना बड़ी चुनौती
बिसु मुंडा ने बताया, भगवान बिरसा की यादों को बचाये रखने के लिए दिनभर स्थल की देखरेख करते हैं. लेकिन पैसे नहीं मिलने से परिवार का पेट पालना मुश्किल हो गया है. कई बार उन्होंने अधिकारियों से इस बारे में बात भी की, लेकिन उन्हें केवल आश्वासन मिला. परिवार का पेट पालने के लिए उन्हें खेतीबाड़ी के काम पर निर्भर रहना पड़ता है. लेकिन दिनभर स्मृति स्थल की देखरेख करने के कारण खेती करना भी मुश्किल हो जाता है. बिसु मुंडा ने कहा, डोंबारी पहाड़ में सौकड़ों की संख्या में लोग रोज घुमने के लिए आते हैं, देखरेख के अभाव में इस स्थान को नुकसान पहुंचने का डर है, इसलिए बिना पैसे के ही वह यहां अपना दिन गुजार दे रहे हैं.
बिसु मुंडा को किसी फरिश्ते का है इंतजार
डोंबारी बुरु में बने स्मृति स्थल की देखरेख करने वाले बिसु मुंडा को अब भी किसी फरिश्ते का इंतजार है. जो उन्हें उनका हक दिला सके. उन्होंने जिला परिषद से दी गयी चिट्ठी को भी दिखाया, जिसमें साफ-साफ लिखा गया है, श्री बिसु मुंडा को डुंबारी स्थित बिरसा भगवान की मूर्ति प्रतिस्थापन के बाद दिनांक 1.8.1990 से दैनिक मजदूरी पर रात्रि प्रहरी सह चौकीदार सह पहरेदार के पद पर अस्थायी तौर पर नियुक्त किया जाता है.
क्या है डोंबारी बुरु की कहानी
डोंबारी बुरु झारखंड की अस्मिता और संघर्ष का साक्षी है. यह स्थल बिरसा मुंडा और उनके अनुयायियों के बलिदान की कर्मभूमि है. इसी पहाड़ पर भगवान बिरसा मुंडा ने 9 जनवरी 1900 को अपने अनुयायियों के साथ बड़ी जनसभा की थी. जिसमें 400 से अधिक लोग जमा हुए थे. इस जनसभा की सूचना मिलने के बाद अंग्रेजों ने पूरे पहाड़ को घेर लिया और बिरसा व उनके अनुयायियों पर ताबड़तोड़ गोलीबारी शुरू कर दी. इस गोलीकांड में सैकड़ों की संख्या में निर्दोश लोग मारे गये. कहा जाता है, अंग्रेजों की गोलीबारी से डोंबारी पहाड़ खून से लाल हो गया था. हालांकि भगवान बिरसा अंग्रेजों से बचकर निकल गये. बाद में उन्हें संकरी से गिरफ्तार किया गया और रांची जेल लाया गया. जहां 9 जून 1900 को उनकी मृत्यु हो गयी.