डीपी यादव सहित तीन आरोपी अजय कटारा केस में बरी, पुलिस कोर्ट में साबित नहीं सकी जुर्म, जानें पूरा मामला
डीपी यादव के लिए बुधवार का दिन बड़ी राहत वाला रहा. नीतीश कटारा मर्डर केस के गवाह की हत्या के प्रयास के मामले में डीपी यादव को कोर्ट ने बरी कर दिया. हालांकि कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में साफ कहा कि साक्ष्यो में अभाव में सभी आरोपियों को बरी किया गया है.
Ghaziabad News: पूर्व मंत्री डीपी यादव को कोर्ट से बड़ी राहत मिली है. गाजियाबाद के बहुचर्चित नीतीश कटारा हत्याकांड के गवाह अजय कटारा को जान से मारने की कोशिश करने के मामले में उन्हें बरी कर दिया गया है. डीपी यादव सहित तीन अन्य आरोपियों को इस केस में अब बरी किया गया है.
कोर्ट ने कहा कि पुलिस आरोपियों के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं दे पाई है, इसलिए आरोपियों को बरी किया जाता है. पहले भी इस मामले में लोनी विधायक नंदकिशोर गुर्जर समेत चार लोग बरी किए जा चुके हैं. इसके बाद से माना जा रहा था कि साक्ष्यों के अभाव में केस कमजोर होने के कारण अन्य आरोपी भी कानून के शिकंज से बच सकते हैं. अजय कटारा ने साल 2007 में इस संबंध में एफआईआर दर्ज कराई थी.
समझौता कराने के नाम पर ले गए साथ
गाजियाबाद के थाना साहिबाबाद में दर्ज मुकदमे में अजय कटारा ने दावा किया था कि उनका पत्नी तनु चौधरी से विवाद चल रहा था. इस मामले में समझौता कराने के लिए उनके पास अनुज शर्मा और मनोज शर्मा नाम के दो व्यक्ति आए. समझौता कराने के लिए वे अपनी गाड़ी से मोहन नगर स्थित एक मंदिर पर ले गए, जहां पहले से बीजेपी विधायक नंद किशोर गुर्जर, यतेंद्र नार, सलीम खान मौजूद थे.
कटारा ने बताया कि उन्हें उन लोगों ने आलू की टिक्की खाने को दी थी. टिक्की कड़वी थी तो उन्होंने उसे फेंक दिया. इसके बाद उन लोगों ने कटारा को कोल्ड ड्रिंक पिलाने की कोशिश की लेकिन उन्होंने उसे भी फेंक दिया. कटारा ने टिक्की में जहर की आशंका जताई थी.
तबीयत खराब होने पर कई महीने तक चला इलाज
इससे उनकी तबीयत खराब हो गई. यह देखते ही वहां मौजूद सब लोग उन्हें छोड़कर भाग गए. कटारा को अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां कई महीने तक उनका इलाज चला. हालांकि, स्वास्थ्य विभाग ने जहर दिए जाने की घटना से इनकार कर दिया और इसे फूड पॉइजनिंग का केस बताया. तभी से कोर्ट में ये केस कमजोर पड़ता चला गया था और आरोपियों के बचने का अंदेशा जताया जा रहा था.
पुलिस ने 2010 में चार्जशीट की दाखिल
इस प्रकरण में साहिबाबाद थाने की पुलिस ने 18 मार्च 2010 को कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की थी. प्रकरण में 7 आरोपी पेश हुए थे. कोर्ट की लंबी चली प्रक्रिया के बाद अब गाजियाबाद की एमपी-एमलए कोर्ट ने बुधवार को डीपी सिंह यादव, सलीम खान, तनु चौधरी को बरी कर दिया. इससे पहले भाजपा विधायक नंदकिशोर गुर्जर, यतेंद्र नागर, अनुज शर्मा और मनोज शर्मा भी बरी हो चुके हैं. इस तरह केस के सातों आरोपी अब बरी हो चुके हैं.
क्या है नीतीश कटारा हत्याकांड
बता दें कि साल 2002 में आईएएस अधिकारी के बेटे नीतीश कटारा की एक शादी समारोह से अगवा करने के बाद हत्या कर दी गई थी. इसके बाद उनके शव पर पेट्रोल डालकर आग लगा दी थी. मामले में 30 मई 2008 को कोर्ट ने पूर्व मंत्री डीपी यादव के बेटे विकास, भतीजे विशाल और सुखदेव पहलवान को जेल की सजा सुनाई थी.
इसी प्रकरण में अजय कटारा गवाह थे. उन्होंने आरोप लगाया था कि वह इस केस के गवाह थे, इसलिए उन्हें जान से मारने की साजिश रची गई. अब इस प्रकरण में सबूतों के अभाव में डीपी यादव और अन्य आरोपियों को राहत मिली है.
डीपी यादव की बेटी और नीतीश ने साथ में की थी पढ़ाई
डीपी यादव की एक बेटी, भारती यादव गाजियाबाद के एक मैनेजमेंज इंस्टीट्यूट से पढ़ाई कर रही थी. इसी इंस्टीट्यूट में पढ़ाई करते हुए भारती की मुलाकात नितीश कटारा से हुई और दोनों करीब आ गए.
नितीश के पिता रेलवे अफसर हुआ करते थे. पढ़ाई के बाद नीतीश ने नौकरी ज्वाइन कर ली थी. वहीं भारती को नौकरी करने की इजाजत नहीं थी. कॉलेज के निकलने के बाद भी दोनों संपर्क में रहे. दोनों आपस में कार्ड और चिट्ठियां भेजा करते थे. ये बात यादव परिवार को हरगिज मंजूर नहीं थी. डीपी यादव के बड़े बेटे विकास यादव ने इस मामले में कई बार नीतीश को धमकाया कि वी भारती से दूर रहे. इसके बावजूद नीतीश और भारती आपस में बात करते रहे.
17 फरवरी 2002 को नीतीश को साथ में ले गए थे आरोपी
इस मामले में 17 फरवरी 2002 की तारीख सबसे अहम है. इस दिन गाजियाबाद में एक शादी का प्रोग्राम था. इस प्रोग्राम में डीपी यादव का पूरा परिवार, विकास, भारती, उसकी बहन मिताली, सब पहुंचे थे. शादी में नीतीश भी आया हुआ था. कहा जाता है यहां विकास और नीतीश के बीच बहस हुई. इसके बाद देर रात विकास और उसके कजिन विशाल ने नीतीश कटारा को अपनी गाड़ी में बिठाया और साथ ले गए.
नीतीश ने मां ने पुलिस ने लगाई गुहार
जब काफी देर बाद भी नीतीश पार्टी में नहीं लौटा तो दोस्तों ने उसकी मां नीलम कटारा को जानकारी दी. नीतीश की मां अपने बेटे और भारती के रिश्ते से वाकिफ थीं. उन्होंने भारती को फोन पर पूरी जानकारी दी. इस पर भारती ने नीलम कटारा से कहा कि वह पुलिस स्टेशन जाएं. साथ ही उसने नीलम कटारा से कहा कि शायद उसके भाई नीतीश को पंजाब लेकर गए हैं. नीलम ने डीपी यादव से भी फोन पर बात की. उन्होंने कहा कि उन्हें खुद पता नहीं उनका बेटा इस वक्त कहां है. नीलम पुलिस के पास पहुंची, यहां से भी उन्हें कोई मदद नहीं मिल पाई.
अगले दिन मिला नीतीश का शव
अगली सुबह पुलिस को पार्टी की जगह से कुछ 80 किलोमीटर दूर खुजरा में एक शव मिला. पुलिस ने पाया कि मरने वाले को पहले बुरी तरह पीटा गया. बाद में उसका शव जलाने की कोशिश भी की गयी थी. शिनाख्त में पाया गया कि ये नीतीश कटारा का शव था. तुरंत विकास और विशाल यादव के नाम वारंट जारी कर दिए गए. दोनों को 23 फरवरी को ग्वालियर के एक रेलवे स्टेशन से पकड़ा गया. मामला कोर्ट पहुंचा.
कोर्ट में कई गवाह बयान से मुकरे
विकास और विशाल को नीतीश के साथ जाते कई लोगों ने देखा था. ऐसे में लग रहा था इस हत्याकांड में न्याय की लड़ाई जयादा लंबी नहीं होगी. लेकिन, हर बार डीपी यादव के रसूख और दबदबे के कारण लड़ाई अंजाम तक नहीं पहुंच सकी. अजय कटारा ने साल 2007 में खुद पर जानलेवा हमले को लेकर भी एफआईआर दर्ज कराई. लेकिन, मामला में कोई प्रगति नहीं हुई.
रोहित गौड़ के बयान से पलटने से पीड़ित पक्ष को लगा झटका
कोर्ट में कई गवाह अपने बयान से पलटे. लोगों को फोन पर धमकी मिली. इनमें रोहित गौड़ का अपने बयान वापस लेना काफी अहम रहा. दरअसल रोहित शिवानी गौड़ का भाई था. जिसकी शादी में उस रात ये घटना हुई थी. शुरुआत में रोहित अपने बयान पर कायम रहा. लेकिन, 2006 में उसने न सिर्फ अपना बयान वापस लिया, बल्कि इस बात से भी इनकार कर दिया कि भारती और नीतीश के प्रेम संबंध थे. इससे इस मामले में पीड़ित पक्ष को बड़ा झटका लगा. क्योंकि, इस हत्या का मोटिव इसी बात पर टिका था कि नीतीश और भारती का आपस में रिश्ता था. और इसी के चलते नितीश की हत्या हुई थी.
सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसफर किया केस
इसके बावजूद नितीश की मां लगातार अपने बेटे को इंसाफ दिलाने के लिए लड़ती रही. वह इस केस को सुप्रीम कोर्ट लेकर गई. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को दिल्ली कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया. वहीं इस केस के शुरू होने के कुछ वक्त के अंदर ही डीपी यादव के परिवार ने बेटी भारती को पढ़ाई के नाम पर लंदन भेज दिया गया. कोर्ट की तरफ से कई बार उसे गवाही के लिए बुलाया गया, लेकिन भारती वापस नहीं आई. नीलम कटारा लगातार कोशिश करती रहीं.
भारती ने लंदन से आकर दी गवाही, उठे सवाल
इसके बाद मई 2006 में भारती का पासपोर्ट रद्द कर दिया गया. और उस पर कोर्ट की नाफरमानी के जुर्म का खतरा मंडराने लगा. अगर ऐसा होता तो भारती को लंदन में गिरफ्तार कर भारत भेज दिया जाता. इसी कानूनी खौफ से वर्ष 2006 में भारती वापस भारत आने पर मजबूर हुई और उसने इस केस में कोर्ट में अपना बयान दज कराया.
हालांकि कोर्ट में उसने कहा कि वह और नीतीश सिर्फ दोस्त थे. इसके साथ ही भारती ने उसके और नीतीश के बीच प्रेम संबंधों से इनकार किया. इसके जवाब में पुलिस ने कोर्ट में भारती और नीतीश के बीच आपस में दिए गए कार्ड्स और लेटर पेश किए. इनसे साफ जाहिर होता था कि दोनों में करीबी रिश्ता था.
2008 में फास्ट ट्रैक कोर्ट ने उम्र कैद की सुनाई सजा
इन बयानों और सबूतों के आधार पर वर्ष 2008 ने दिल्ली फास्ट ट्रैक कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया. विकास और विशाल को नितीश के किडनैप और मर्डर के जुर्म में 30 साल आजीवन कारवास की सजा सुनाई गयी. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि ये झूठी शान की खातिर हत्या का मामला था. दोनों पर डेढ़ लाख का जुर्माना भी लगाया गया. इसके अलावा एक और व्यक्ति सुखविंदर पहलवान जो उस दिन दोनों के साथ गाड़ी में था, उसे भी 20 साल की सजा सुनाई गई. इसके बाद ये केस हाई कोर्ट पहुंचा. 2014 में हाई कोर्ट ने विकास और विशाल की सजा बरकरार रखी.
सुप्रीम कोर्ट ने कम की सजा
प्रकरण में सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में आखिरी सुनवाई हुई. नीलम कटारा इस केस में फांसी की सजा की मांग कर रही थी. लेकिन, सुप्रीम कोर्ट ने दोनों की सजा 25 साल की कर दी.
इसी बीच साल 2015 में डीपी यादव को भी एक पुराने प्रकरण को लेकर जेल जाना पड़ा. कोर्ट ने डीपी यादव को हत्या के एक मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. हालांकि बाद में वह इस केस में रिहा हो गए. लेकिन, नीतीश कटारा हत्याकांड ने डीपी यादव की राजनीति साख को बेहद प्रभावित किया. इस वजह से कई बड़े नेताओं ने डीपी यादव से किनारा कर लिया और वह सियासी तौर पर कमजोर हो गए.