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वैद्य से राजनेता बने डॉ रमन सिंह ने 15 साल में किया छत्तीसगढ़ का कायाकल्प, ऐसा है राजनीतिक सफर

23 साल के छत्तीसगढ़ में 15 साल तक आयुर्वेद के एक डॉक्टर ने सरकार चलाई. नक्सलवाद और अन्य समस्याओं से जूझ रहे इस प्रदेश का इतने दिनों में कायाकल्प कर दिया. लेकिन, 15 साल बाद ऐसी हार मिली कि 49-50 सीटें जीतने वाली बीजेपी 15 सीटों पर सिमटकर रह गई. कैसा है डॉ रमन सिंह का करियर. यहां पढ़ें.

आयुर्वेद के एक डॉक्टर ने छत्तीसगढ़ की बागडोर संभाली और उसकी तस्वीर बदलकर रख दी. नक्सलवाद के खात्मे के लिए विशेष अभियान की शुरुआत की. अपनी अलग राजधानी बनाई. नवा रायपुर को देखकर हर कोई वाह-वाह कह उठता है. नवा छत्तीसगढ़ के इस शिल्पकार का नाम है- डॉ रमन सिंह. डॉ रमन लगातार 15 साल तक छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रहे. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के बेहद शालीन और तेज-तर्रार नेता का जन्म 15 अक्टूबर, 1952 को रायपुर में हुआ. उनके पिता का नाम विघ्नहरण सिंह ठाकुर तथा माता का नाम सुधा सिंह है. उनकी पत्नी का नाम वीणा देवी है. इनके दो बच्चे हैं. डॉ रमन सिंह वर्ष 1990 और वर्ष 1993 में मध्यप्रदेश विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए. वर्ष 1999 में डॉ सिंह लोकसभा के सदस्य निर्वाचित हुए. अटल बिहारी वाजपेयी की कैबिनेट में 13 अक्टूबर 1999 से 29 जनवरी 2003 तक मंत्री रहे. उन्हें केंद्रीय राज्य वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री बनाया गया था. वर्ष 2003 में जब अजित जोगी की अगुवाई वाली कांग्रेस की सरकार पराजित हुई, तो डॉ रमन सिंह को छत्तीसगढ़ की बागडोर सौंपी गई. वर्ष 2004 में वह छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री बने. इसके बाद वर्ष 2008 और वर्ष 2013 में भी उनके नेतृत्व में ही छत्तीसगढ़ में बीजेपी की सरकार बनी. 90 के दशक में मध्यप्रदेश विधानसभा के लिए दो बार निर्वाचित हुए डॉ रमन सिंह छत्तीसगढ़ विधानसभा के चार चुनाव जीत चुके हैं. एक बार फिर बीजेपी ने उन्हें राजनांदगांव से टिकट दिया है.

डॉ रमन सिंह की उपलब्ध‍ियां

डॉ रमन सिंह ने ‘सलवा जुडूम’ अभियान के तहत छत्तीसगढ़ में नक्सली संगठनों पर प्रतिबंध लगा दिया. संयुक्त राष्ट्र ने भी डॉ रमन के काम की तारीफ की. विशेष रूप से वित्तीय प्रबंधन पर उन्होंने जो काम किए थे, उसकी काफी तारीफ हुई. देश-दुनिया ने माना कि छत्तीसगढ़ की अनुसूचित जनजातियों के बिगड़ते हालात को इन्होंने बखूबी संभाला. डॉ रमन सिंह के कार्यकाल में ही वर्ष 2014 में छत्तीसगढ़ को अलग-अलग भाषाओं में पर्यटन साहित्य के लिए ‘राष्ट्रीय पर्यटन पुरस्कार’ मिला. इतना ही नहीं, उनके कार्यकाल में नि:शक्तों के सशक्तिकरण के लिए वर्ष 2017 में छत्तीसगढ़ को ‘राष्ट्रीय पुरस्कार’ मिला.

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डॉक्टर के रूप में की गरीबों की सेवा

एक डॉक्टर के रूप में डॉ रमन सिंह ने हमेशा गरीबों की सेवा की. वर्ष 1975 में उन्हें बीएएमएस की डिग्री मिली. 23 साल की उम्र में उन्होंने कवर्धा में मेडिकल की प्रैक्टिस शुरू कर दी. डॉ रमन सिंह ने हमेशा गरीबों का मुफ्त में इलाज किया. गरीबों के मुफ्त इलाज के लिए डॉ रमन सिंह ने ‘भारत माता चिकित्सालय’ का निर्माण करवाया है.

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7 दिसंबर 2003 को छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री बने

7 दिसंबर 2003 को छत्तीसगढ़ के दूसरे मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने के बाद डॉ रमन सिंह ने वर्ष 2004 में छत्तीसगढ़ विधानसभा का चुनाव लड़ा और विधायक बने. वर्ष 2008 में उनके नेतृत्व में बीजेपी ने फिर जीत दर्ज की और 12 दिसंबर 2008 को उन्होंने मुख्यमंत्री के पद एवं गोपनीयता की शपथ ली. वर्ष 2013 में भी उनकी अगुवाई में सरकार बनी. यह उनका लगातार तीसरा कार्यकाल था. लेकिन, वर्ष 2018 में भूपेश बघेल के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ने बीजेपी का सूबे में सूपड़ा ही साफ कर दिया. बीजेपी सिर्फ 15 सीटें जीत पाई, जबकि कांग्रेस ने 68 सीटों पर जीत दर्ज की.

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जनसंघ के यूथ विंग से की राजनीति में एंट्री

बता दें कि रमन सिंह ने जनसंघ के यूथ विंग से राजनीति में कदम रखा था. कवर्धा की नगरपालिका, छत्तीसगढ़ विधानसभा के साथ-साथ लोकसभा में कई अहम पदों पर काम किया. वर्ष 1999 में देश के वाणिज्य राज्यमंत्री बने थे. इस्राइल, नेपाल, फिलीस्तीन और दुबई जैसे देशों में उन्होंने भारतीय व्यापार मेले का नेतृत्व किया. डॉक्टर साहब क्रिकेट और वॉलीबॉल के भी शौकीन हैं. डॉ रमन सिंह कवर्धा के यूथ क्लब के सदस्य भी रहे हैं.

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छत्तीसगढ़ विधानसभा की 90 सीटों पर दो चरणों में वोट

छत्तीसगढ़ की 90 विधानसभा सीटों पर इस बार दो चरणों में वोटिंग होगी. पहले चरण में सात नवंबर को बस्तर संभाग की सभी 12 सीटों के साथ-साथ दुर्ग संभाग की आठ विधानसभा सीटों पर मतदान होगा. वहीं, शेष 70 विधानसभा सीट पर 17 नवंबर को वोटिंग होगी. इस वक्त 90 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस के 71 और बीजेपी के 13 सदस्य हैं. विधानसभा चुनाव 2018 में कांग्रेस ने 68 सीटों पर जीत दर्ज की थी, जबकि डॉ रमन सिंह के नेतृत्व में चुनाव लड़ने वाली बीजेपी 15 सीटों पर सिमटकर रह गई थी. बाद में हुए उपचुनावों में भी उसे दो सीटों का नुकसान हुआ.

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