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गढ़वा में मात्र 18 फीसदी बारिश होने से पीने के पानी पर भी संकट, सूखे की स्थिति बनी

गढ़वा इस साल सूखे के दौर से गुजर रहा है. जून में जहां पिछले साल 172 मिमी बारिश हुई थी. वहीं इस साल जून में मात्र 26 मिमी बारिश हुई. जुलाई महीने में अब तक 66.3 मिमी (मात्र 18 प्रतिशत) बारिश हुई. इसका असर भदई और खरीफ दोनों ही फसलों पर पड़ा है. किसानों में खेती को लेकर हाहाकार की स्थिति बनी हुई है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 27, 2022 10:12 PM

विनोद पाठक

Garhwa News: गढ़वा जिला इस साल भयानक सूखे के दौर से गुजर रहा है. जून में जहां पिछले साल 172 मिमी बारिश हुई थी. वहीं इस साल जून में मात्र 26 मिमी बारिश हुई. जुलाई महीने में अब तक 66.3 मिमी (मात्र 18 प्रतिशत) बारिश हुई. इसका असर भदई और खरीफ दोनों ही फसलों पर पड़ा है. किसानों में खेती को लेकर हाहाकार की स्थिति बनी हुई है. किसान मॉनसून के भरोसे अपना भदई और खरीफ दोनों फसलों का बिचड़ा लगाकर अपनी जमा पूंजी को भी गंवा बैठे हैं. गढ़वा शहर के 90 प्रतिशत आबादी आधा सावन बीत जाने के बाद पीने के लिये पानी से लेकर अपनी दिनचर्या के लिये टैंकर के भरोसे हैं. नगर परिषद का टैंकर जरूरत के हिसाब से शहरवासियों को पानी नहीं पूरा पा रहा है.

धान की रोपाई शुरू ही नहीं हुई

इस साल यहां के मुख्य खरीफ फसल में धान की रोपाई अबतक शुरू ही नहीं हुई. जिले में हर साल की तरह इस साल भी 55 हजार हेक्टेयर में धान की रोपाई का लक्ष्य रखा गया था. लेकिन धान की रोपाई शून्य प्रतिशत हुई. कृषि विभाग की रिपोर्ट के अनुसार लक्ष्य के 71 प्रतिशत धान का बिचड़ा किया गया है. लेकिन इसमें से खेतों में सिंचाई की व्यवस्था के अभाव में कहीं भी रोपाई शुरू नहीं हो सकी. खेतों में लगी भदई फसलों में मुख्य फसल मक्का भी प्रभावित होकर रह गया है. कृषि विभाग के अनुसार मक्का की बोआई 27200 हेक्टेयर लक्ष्य के विरूद्ध 15600 हेक्टेयर में हुई है. लेकिन बोये गये मक्का की स्थिति लगातार वर्षा के अभाव के कारण सूखने की स्थिति बन गयी है.

दलहन-तेलहन की लगी फसल भी प्रभावित

जिले में इस वर्ष वर्षा के अभाव में दलहन और तेलहन की लगी फसल भी प्रभावित हुआ है. दलहन में अरहर, उरद, मूंग व कुलथी को मिलाकर 44800 हेक्टेयर लक्ष्य के विरूद्ध 23355 हेक्टेयर में आच्छादन हुआ. लेकिन लगातार बारिश नहीं होने और कड़ी धूप निकलने के कारण बोये गये दलहन और तेलहन की स्थिति मरनासन्न हो चुकी है. उसमें फसल होने की आशा क्षीण हो चुकी है.

अक्सर करना पड़ता है अकाल व सूखे का सामना

वैसे तो पूरा पलामू प्रमंडल में बारिश की कमी रहती है. ऐसे में सिंचाई के अभाव में यहां की पूरी तरह से कृषि मॉनसून के भरोसे है. जबकि मॉनसून अक्सर किसानों को दगा देता रहता है. इसके कारण यहां हर साल सूखा और प्रत्येक तीन साल पर अकाल की स्थिति रहती है. इसके कारण किसान खेती करने से उब चुके हैं. किसान और खेतिहर मजदूर सूखे की स्थिति के कारण बरसात के दिनों में पलायन कर बिहार, यूपी, पंजाब, हरियाणा जैसे दूसरे प्रदेशों में जाकर कृषि कार्य में योगदान देकर अपने परिवार का जीविकोपार्जन करते हैं. बारिश की कमी की वजह से यहां की कृषि योग्य 90 प्रतिशत भूमि असिंचित है.

सांसद ने लोकसभा में उठायी आवाज

पलामू के सांसद विष्णु दयाल राम ने बुधवार को लोकसभा में शून्यकाल के दौरान अपने पलामू संसदीय क्षेत्र में बारिश के अभाव में उत्पन्न सूखे का मामला उठाया. सांसद ने पलामू एवं गढ़वा जिले के साथ-साथ झारखंड राज्य के अन्य जिलों में भी बारिश नहीं होने की बात रखते हुये उत्पन्न हुये सुखाड़ स्थिति से सदन को अवगत कराया. इसमें उन्होंने किसानों को हो रही कठिनाइयों से भी सदन को अवगत कराते हुये उसका इस ओर ध्यान आकृष्ट किया. उन्होंने राज्य में खाद्य संकट के किसी भी प्रभाव को कम करने एवं पशुओं के लिए चारा का प्रबंध करने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाने पर जोर दिया है. सांसद ने झारखंड के किसानों को हुई आर्थिक क्षति का आकलन पलामू और गढ़वा जिलों में सुखाड़ से हुए नुकसान का आकलन, राज्य के फसल पैटर्न का विश्लेषण करने और राज्य के वर्षा पैटर्न में बदलाव के चलते वैकल्पिक फसल पैटर्न और विधियों के लिए एक विशेष टास्क फोर्स का गठन करने की मांग की.

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