पाकुड़ में पत्थर खदान और क्रेशर बंद रहने से मजदूरों के बीच रोजगार का संकट, पलायन को हो रहे मजबूर
पाकुड़ में पत्थर खदान और क्रशर के बंद होने से मजदूरों के समक्ष रोजगार के संकट उत्पन्न हो गये हैं. वैध पत्थर खदान और क्रशर में काम तो चल रहा है, लेकिन इसकी संख्या कम होने से मजदूरों के सामने आर्थिक संकट उत्पन्न हो गयी है. इससे परेशान होकर मजदूर पलायन करने को विवश हैं.
Jharkhand News: झारखंड का पाकुड़ जिला पत्थर उद्योग (Stone Industry) के लिए जाना जाता है, लेकिन जिले में पत्थर उद्योग अस्तित्व के संकट से गुजर रहा है. बिना वैध कागजों के पत्थर खदान और क्रेशरों का संचालन करने पर जिला प्रशासन की कड़ी कार्रवाई हो रही है. इसके कारण काफी संख्या में अवैध पत्थर खदान (Illegal Stone Quarry) और क्रेशर बंद हो गये हैं. वहीं, वैध खदान और क्रेशर भी कागजातों के अभाव के कारण संचालित नहीं हो रहे हैं. इसके अलावा कागजातों को पूर्ण करना भी विभागीय शिथिलता के कारण समय पर नहीं हो पाता है. जिसके कारण पत्थर व्यवसायियों के समक्ष भीषण संकट उत्पन्न हो गया है. वहीं, इसका खासा असर मजदूरों पर देखने को मिल रहा है.
कभी जिले में 300 पत्थर खदान और 500 क्रेशर थे संचालित
बता दें कि पहले जिले में 300 के करीब पत्थर खदान और 500 के करीब क्रेशर संचालित हुआ करते थे, लेकिन कोरोना महामारी और उसके बाद ईडी की कार्रवाई के बाद से जिले में पत्थर उद्योग बुरी तरह प्रभावित हुआ है. वर्तमान में करीब 86 पत्थर खदान वैध है. जिसमें से मात्र 72 पत्थर खदान में ही काम हो रहा है. वहीं, जिले में 245 पत्थर क्रेशर प्लांट को लाइसेंस दिया गया है. जिसमें से 100 से कम ही क्रेशर संचालित हो रहा है. जिससे कारोबारियों के साथ-साथ मजदूरों के समक्ष भी रोजी-रोजगार का भीषण संकट उठ खड़ा हो गया है.
मजदूरों को हो रही परेशानी
पाकुड़ जिले के सिर्फ मालपहाड़ी पत्थर खनन क्षेत्र में पत्थर खदान, क्रेशर और रेलवे साइडिंग में करीब 15-20 हजार मजदूर काम करते थे. लेकिन, खदान-क्रेशर के बंद होने के कारण इसका 10 फीसदी ही मजदूरों को काम मिल पा रहा है. ऐसे में कई गांवों में मजदूर एक दिन बाद करके मजदूरी कर रहे हैं, ताकि सभी को रोजगार मिल पायें. वहीं, जिले भर के पत्थर खनन क्षेत्र में यही हाल है. मालपहाड़ी के अलावे पाकुड़ प्रखंड के अन्य पत्थर खनन क्षेत्र, हिरणपुर प्रखंड का सीतापहाड़ी पत्थर खनन क्षेत्र सहित लिट्टीपाड़ा, महेशपुर और पाकुड़िया के पत्थर खनन क्षेत्रों में यही हाल है. जहां पत्थर खदान और क्रेशर चल रहे हैं, वहां पर बड़ी-बड़ी मशीनें तेजी से काम कर रही है. जिसके कारण भी मजदूरों की जरुरत कम होती जा रही है. अधिकांश पत्थर खदान और क्रेशरों में पोकलेन, जेसीबी का इस्तेमाल पत्थर लोडिंग और पत्थरों को तोड़ने में इस्तेमाल किया जाता है.
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इस संबंध में मजदूर उत्तम राजवंशी ने बताया कि गांव और आसपास संचालित खदान और क्रेशर में एक-एक दिन बाद काम मिल रहा है. इस तरह से सप्ताह में तीन दिन ही काम मिल पा रहा है. सरकार के राशन से परिवार चल रहा है. वहीं, मजदूर शिकांतो दास ने बताया कि पत्थर खदान और क्रेशर में हमरुल गांव के 150 मजदूर कार्यरत थे, लेकिन फिलहाल पांच से दस मजदूरों को काम मिल पा रहा है.
मजदूर सुना रहे अपनी आपबीती
मजदूर दुलाल राजवंशी ने बताया कि गांव में काम नहीं मिलने पर मुंबई काम करने गये, लेकिन वहां भी एक महीने का काम मिला. उसके बाद वापस लौट आना पड़ा. जबकि, मजदूर होरु दत्ता ने बताया कि गांव में पत्थर खदान और क्रेशर बंद पड़ा हुआ है. ऐसे में रोजगार के लिए पाकुड़ शहर जाना पड़ता है, लेकिन वहां भी मजदूरी नहीं मिल रही है. मजदूर मोजिबुर रहमान ने बताया कि गांव में क्रेशर खदान चलने से कई तरह का काम निकल जाता था, लेकिन अब सब तरह का काम बंद होने के कारण उधार में टोटो खरीद कर चला रहे हैं, ताकि किसी तरह परिवार चल सके.
पलायन करने को मजबूर हैं मजदूर
मजदूर बोनेश्वर मुर्मू ने बताया कि वह गाड़ी में लोडिंग का काम करता है. अब काम काफी कम हो गया है. गांव में काम नहीं मिलने पर कई रिश्तेदार काम करने दूसरे राज्य चले गये हैं. मजदूर बोने मुर्मू ने बताया कि हम बुजुर्ग हैं और गांव में रहकर ही घर की रखवाली करते हैं. घर के कई लोग काम करने बाहर चले गये हैं, ताकि किसी तरह घर चल सके. मजदूर बिटी हांसदा ने बताया कि गांव में काम नहीं मिल रहा है. इसलिए गांव के लोग काम करने के लिए बाहर चले गये है. मजदूर सकल टुडू ने बताया कि गांव में रोजगार की काफी दयनीय स्थिति है. पहले कई पत्थर खदान और क्रेशर चलता था, तो सबको रोजगार मिलता था, लेकिन अब बहुत दिक्कत है. लोगों को काम करने के लिए दूसरे राज्य जाना पड़ रहा है.
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सदर प्रखंड के नसीपुर पंचायत का हमरुल गांव में करीब 150 परिवार रहता है. जिसमें से करीब 200 लोग पत्थर खदान और क्रेशर में काम करते थे. लेकिन, पत्थर खदान और क्रेशर बंद रहने के कारण गांव के समीप एक ही पत्थर खदान चल रहा है. जिसमें से गांव के 5-7 लोग काम करते हैं. वहीं, अन्य गांवों में स्थित खदान और क्रेशर में काम करने के लिए लोग जाते हैें. लेकिन कुल मिलाकर 20-25 लोगों को ही काम मिल पाता है. गांव में काम नहीं मिलने पर दुलाल राजवंशी अपने साथ 22 लोगों को लेकर काम करने के लिए मुंबई गया था. वहां उसे राजमिस्त्री का काम एक महीने के लिए मिला. काम खत्म हो जाने के बाद दुबारा उन्हें काम नहीं मिला. जिसके कारण उन्हें वापस लौट आना पड़ा. दुलाल अब एक दिन बाद दूसरे दिन पत्थर खदान और क्रेशर में काम करके अपना परिवार चला रहे हैं.
केस स्टडी-02
सदर प्रखंड के चेंगाडांगा पंचायत का हरिरामपुर आदिवासी बहुल गांव है. इस गांव में करीब 80 परिवार रहते हैं. गांव के समीप पत्थर खदान और क्रेशर संचालित हो रहा था, तो अधिकांश लोगों को काम मिल जाता था. लेकिन, फिलहाल एक ही क्रेशर चल रहा है. जिसके कारण गांव में कुछ लोगों को ही काम मिल रहा है. ऐसे में बाकी लोग दूसरे राज्य पलायन कर रहे हैं. वहां से भी काम नहीं मिलने पर वापस घर लौट रहे हैं. गांव के बुजुर्ग बोने मुर्मू ने बताया कि गांव में अधिकांश परिवार बेरोजगार हैं. सरकार से मिल रहे राशन से किसी तरह गुजारा हो रहा है. दूसरे राज्य में भी सबको काम नहीं मिल पा रहा है. जिसके कारण वापस लौटना पड़ा रहा है. स्थिति बेहद खराब हो रही है.
क्या कहते हैं मजदूर संगठन
वर्तमान में मजदूरों के समक्ष रोजगार के संकट को देखते हुए सीपीएम के मजदूर संगठन सीटू के जिला अध्यक्ष मानिक दुबे ने बताया कि मजदूर बेहद दयनीय स्थिति में हैं. घर-परिवार चलाना इनके लिए मुश्किल होता जा रहा है. ये काम की तलाश में जिले भर और आस-पास के जिलों के पत्थर खनन क्षेत्रों में जा रहे हैं, लेकिन काम कहीं नहीं मिल रहा है. जिसके कारण मजदूर पलायन को विवश हैं.
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