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Durga Puja 2021: झरिया राजागढ़ में 500 साल पहले शुरू हुई थी मां दुर्गा की आराधना,आज भी निभायी जा रही है परंपरा

धनबाद के झरिया राजागढ़ में करीब 500 साल पहले शुरू हुई मां दुर्गा की आराधना को आज भी जारी रखा गया है. राज परिवार के लोग हर्षोल्लास से मां दुर्गा की पूजा करते हैं. वही परंपरा निभायी जाती है, जो वर्षों पूर्व निभायी जाती थी. इस पूजा के खास मायने भी हैं.

Durga Puja 2021 (उमेश सिंह, झरिया, धनबाद) : धनबाद के झरिया में दुर्गापूजा की शुरुआत राजा संग्राम सिंह ने डोम राजा से युद्ध जीतने के बाद राजागढ़ में करीब 500 वर्ष पूर्व की थी. इसके बाद से अभी तक राज परिवार परंपरा के अनुसार दुर्गापूजा का आयोजन कर रहा है.

राजा संग्राम सिंह के बाद उनके वंशज राजा जयमंगल सिंह, राजा उदित नारायण सिंह, राजा रासबिहारी सिंह, राजा दुर्गा प्रसाद सिंह ने परंपरा को आगे बढ़ाया. राजा दुर्गा प्रसाद सिंह ने अपने कार्यकाल में राजागढ़ में मां दुर्गा का भव्य मंदिर, ठाकुरबाड़ी, कोठरी आदि बनवाये.

मंदिर में मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित कर पूजा होने लगी. इनके बाद राजा शिव प्रसाद सिंह व अंतिम राजा काली प्रसाद सिंह ने भी परंपरा का निर्वहन किया. अभी पूर्व राजा काली प्रसाद के ज्येष्ठ पुत्र महेश्वर प्रसाद सिंह परंपरा निभा रहे हैं.

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राजपरिवार की पुत्रवधू सुजाता सिंह व माधवी सिंह के अलावा जेपी सिंह, संजय कुमार सिंह आदि परिवार के लोग पूजा में शामिल होते हैं. पूर्व में राजा व उनके स्वजन बग्धी से पूजा करने मंदिर आते थे. यहां बांग्ला पंचांग के अनुसार, षष्ठी से पूजा राजा परिवार के कुल पुरोहित करते हैं. पहले यहां काड़ा की बलि हाेती थी. अब मंदिर परिसर में बकरे की बलि होती है.

डोम राजा के वंशज के वध करने से राजा संग्राम सिंह के हाथ से चिपक गयी थी तलवार

मध्य प्रदेश के रीवा से 18वीं सदी में 4 राजा भाई राज्य विस्तार को लेकर गिरिडीह के पालगंज पहुंचे थे. एक भाई पालगंज के राजा बने. इसके बाद तीन भाई पालगंज से निकले. दूसरे भाई नावागढ़, बाघमारा व तीसरे भाई कतरास के राजा बने. चौथे भाई संग्राम सिंह झरिया के डोम राजा व उनके वंशज को मारकर यहां के राजा बने.

कहा जाता है कि चौथाई कुल्ही झरिया में डोम राजा के वंशज को मारने के बाद तलवार संग्राम सिंह के हाथ से चिपक गयी. राजा ने मां दुर्गा की आराधना कर बायें हाथ से ही पुआ बना कर भोग लगाया. परिवार ने आजीवन राजागढ़ में दुर्गापूजा करने का संकल्प लिया. इसके बाद तलवार उनके हाथ से छूटी. उसी समय से राज परिवार यहां मां की आराधना करते आ रहा है.

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कोठरी में पुआ बनाती हैं राजपरिवार की पुत्रवधू

झरिया राजा परिवार की पुत्रवधू पूर्वजों द्वारा 19वीं सदी में राजागढ़ में बनायी गयी कोठरी में अभी भी सप्तमी से ही पुआ व घटरा पकवान बनाकर परंपरा के अनुसार मां दुर्गा को भोग लगाती है. सप्तमी से दशमी तक मंदिर में तीन दिन व रात अखंड दीप जलता है. महाअष्टमी को बलि दी जाती है. मनोकामना पूरी होने पर भक्त दुर्गा मंदिर परिसर में महानवमी के दिन बलि दी जाती है. दशमी को मां की प्रतिमा को कंधा पर ले जाकर राजा तालाब में विसर्जित किया जाता है.

राजागढ़ दुर्गापूजा समिति के लोग पूजा की व्यवस्था में लगे रहते हैं. मंदिर के पहले पुजारी पुरुलिया के माणिक मुखर्जी थे. बाद में उन्हीं के परिवार के गोपालचंद्र बंधोपाध्याय, सव्यसाची बनर्जी व अमर बंधोपाध्याय ने पुजारी की भूमिका निभायी. वर्तमान में अजय बनर्जी पूजा करते हैं.

Posted By : Samir Ranjan.

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