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भक्तों के कल्याणार्थ मां की आगमनी है महालया

वैदिक परंपरा के अनुसार, पुत्र का पुत्रत्व तभी सार्थक होता है, जब वह अपने जीवनकाल में जीवित माता-पिता आदि अपने पूर्वजों की सेवा करे तथा मृत्युपरांत महालय (पितृपक्ष) में उनका विधिवत् श्राद्ध-तर्पण करे

वैदिक परंपरा के अनुसार, पुत्र का पुत्रत्व तभी सार्थक होता है, जब वह अपने जीवनकाल में जीवित माता-पिता आदि अपने पूर्वजों की सेवा करे तथा मृत्युपरांत महालय (पितृपक्ष) में उनका विधिवत् श्राद्ध-तर्पण करे. जिन लोगों को अपने पितरों की मृत्यु तिथि सही ज्ञात न हो, वे सर्वपैत्री अमावस्या यानी महालया के दिन पिंडदान कर सकते हैं. विष्णु पुराण के अनुसार, महालया के दिन पुत्र-पौत्र आदि वंशजों द्वारा किये गये श्राद्ध-तर्पण से उनके पितर तृप्त एवं संतुष्ट होते हैं तथा उनकी सभी मनोकामनाओं की पूर्ति का आशीर्वाद देते हैं.

Q. क्या नवरात्रि पर समृद्धि की साधना संभव है?

नवरात्रि की नौ रात्रियां अपनी बिखरी ऊर्जा को खुद में समेटने का काल है. इसके तीन दिन आत्म बोध और ज्ञान बोध के, तीन दिन शक्ति संकलन और उसके संचरण यानी फैलाव के और तीन दिन स्थूल समृद्धि अर्थात् धन प्राप्ति के बताये गये हैं. यूं तो नवरात्रि में भी समृद्धि कारक साधना की जा सकती है, क्योंकि इसकी तीन रात्रि अर्थ, धन या भौतिक संसाधनों की मानी गयी हैं, पर यह पर्व सीधे धन न देकर, अर्थार्जन की क्षमता प्रदान करता है, जो कर्म, श्रम और प्रयास के बिना फलिभूत नहीं होता. सनद रहे कि धन प्राप्ति के सूत्र तो सिर्फ श्रमपूर्वक कर्म और स्वयं की योग्यता व क्षमता में ही समाहित हैं.

Qकुंडली पराक्रम भाव का सूर्य कैसा फल देता है?

अजय कुमार, गोपालगंज

कुंडली के तृतीय भाव में यदि सूर्य हो तो पराक्रमी, पुरुषार्थी और प्रतापी बनाता है. ये लोग यशस्वी होते हैं. सूर्य व्यक्ति को भाई-बहनों का सुख देने के साथ उनसे मदभेद का कारक भी बनता है. यह छोटी-बड़ी यात्राओं का प्रदाता है. रचनात्मकता इनमें कूट-कूट कर भरी होती है. सूर्य की भाग्य भाव पर दृष्टि से व्यक्ति भाग्यशाली व धार्मिक प्रवृत्ति का होता है. इन्हें स्वयं पर अधिक यकीन होता है. जीवन में अपने दमखम से अपार धन अर्जित करते हैं. सूर्य यदि शत्रु राशि में हो तो भाई-बहनों के सुख में कमी होती है. सूर्य अपनी नीच राशि तुला में आसीन हो, तो भाई-बहनों से सुख से वंचित कर उनसे मतभेद का सूत्रपात करता है और यह योग पराक्रम में भी कमी करता है.

Qलाभ के मालिक से क्या आशय है? यह किस ग्रह को कहा जाता है?

– सुनंदा दास, गुमला

जन्म कुंडली में एकादश भाव को लाभ का भाव कहा जाता है. इस भाव में जो भी राशि हो, उसके स्वामी ग्रह को लाभेश या लाभ का स्वामी कहते हैं. उदाहरण के लिए यदि लाभ भाव में 1 लिखा हो तो मंगल, 2 लिखा हो तो शुक्र, 3 हो तो बुध, 4 हो तो चंद्रमा, 5 सूर्य, 6 बुध, 7 शुक्र, 8 मंगल, 9 बृहस्पति, 10 शनि, 11 शनि और यदि वहां 12 लिखा हो तो बृहस्पति लाभ के मालिक अर्थात् लाभेश कहलायेंगे.

महालय संस्कृत शब्द है, जो ‘महा+आलय’ से मिलकर बना है, जिसका अर्थ होता है- ‘महान आवास’. यह वह दिन होता है, जिस दिन से देवी-पक्ष शुरू होता है और पितृ पक्ष की समाप्ति होती है. प्राचीनकाल से मान्यता है कि आश्विन कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से आश्विन कृष्णा पंचदशी अर्थात् अमावस्या तक प्रेतलोक से पितृपुरुष की आत्मा अपने प्रियजनों की माया में मर्त्यलोक अर्थात् धरती पर आते हैं. महालया के दिन पितृ लोगों आना संपूर्ण होता है. गरुड़ पुराण, वायुपुराण, अग्निपुराण आदि शास्त्रों के अनुसार –

आयुः पुत्रान् यशः स्वर्ग कीर्ति पुष्टि बलं श्रियम् ।

पशून् सौख्यं धनं धान्यं प्राप्नुयात् पितृपूजनात् ।।

अर्थात् – पितरों की प्रसन्नता से गृहस्थ दीर्घायु, पुत्र-पौत्रादि, यश, स्वर्ग, पुष्टि, बल, लक्ष्मी, पशुधन, सुख-साधन तथा धन-धान्यादि की प्राप्ति होती है.

अत: पितरों की कृपा बिना कुछ संभव नहीं है. उन्हें नमन कीजिए, उनकी स्तुति कीजिए, उन पर श्रद्धा कीजिए, तो समझिए कि बाधा रहित जीवन का मार्ग वे स्वयं प्रशस्त कर देंगे.

दुर्गा पूजा के सात दिन पहले महालया की तिथि दुर्गतिनाशिनी मां दुर्गा के आगमन की सूचना है. ‘जागो तुमि जागो’ मां दुर्गा को धरती पर बुलाने का आह्वान है. मां दुर्गा की स्तुति मंत्रोच्चार और भक्तिमय संगीत द्वारा की जाती है. इस अवसर पर विशेष भक्तिमय बांगला संगीत (श्रीश्रीचंडी का पाठ जिसे ‘आगमनी’ कहते हैं) के द्वारा दशप्रहरणधारिणी, महाशक्ति स्वरूपिणी मां दुर्गा की स्तुति की जाती है.

पुरानी पीढ़ी को आज भी याद होगा, इस दिन प्रात: चार बजे आकाशवाणी व दूरदर्शन पर होनेवाली महालया की प्रस्तुति, जो आज भी जन-जन में लोकप्रिय है. दशकों से आज भी हम बंगाल में मंत्र मुग्ध कर देने वाला मंत्रोच्चार- ‘रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ।। तथा या देवि सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता । नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।’ सुनते आ रहे हैं. रेडियो पर प्रसारित होनेवाला यह कार्यक्रम महालया का पर्याय बन गया है.

मान्यता है कि मां के आगमन से सभी अमंगल का विनाश होता है, मां की कृपा से ऐश्वर्य, धन, सौंदर्य, सौभाग्य, कीर्ति, विद्या, बल, आयु, संतान, आनंदोपभोग, सुलक्षणा पत्नी, सुयोग्य पति, स्वर्ग, मोक्ष आदि की प्राप्ति होती है, इसलिए हम मातृरूपेण, शक्तिरूपेण, लक्ष्मीरूपेण, शांतिरूपेण आदि मंत्रों से स्तुति करते हैं और प्रार्थना करते हैं- ‘एसो मां दुर्गा आमार घरे – एसो मां दुर्गा आमार घरे…’ क्योंकि श्रीदुर्गासप्तशती में कहा गया है –

या श्रीः स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मीः

पापात्मनां कृतधियां ह्दयेषु बुद्धिः।

श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा

तां त्वां नताः स्म परिपालय देवि विश्वम्।।

अर्थात् – जो पुण्यात्माओं के घरों में स्वयं ही लक्ष्मीरूप से, पापियों के यहां दरिद्रतारूप से, शुद्ध अंत:करणवाले पुरुषों के हृदय में बुद्धि रूप से तथा कुलीन मनुष्यों में लज्जारूप से निवास करती हैं, उन भगवती दुर्गा को हम नमस्कार करते हैं. देवि, आप संपूर्ण विश्व का पालन कीजिए.

मां आसछे – विश्व आजके ध्यान मग्ना, उद्भाषित आशा। तापित तृषित धराय जागाबे, प्राणेर नतून भाषा।। मृन्मयी माँ आविर्भूता, असुरो विनाशिणी।

माँयेर आगमनी।।

मां के आगमन से सभी अमंगल, दुख, कष्ट, दरिद्रता को मिटाकर सुख-संपन्नता देने के लिए मां का आगमन हो रहा है. आजके दिन सभी लोग परिपूर्ण श्रद्धा-भक्ति के साथ मां से प्रार्थना करते हैं –

विश्वेश्वरि त्वं परिपासि विश्वं

विश्वात्मिका धारयसीति विश्वम्।

विश्वेशवन्द्या भवती भवन्ति

विश्वाश्रया ये त्वयि भक्ति नम्रा:॥

अर्थात् – विश्वेश्वरि! तुम विश्व का पालन करती हो, विश्वरूपा हो, इसलिए संपूर्ण विश्व को धारण करती हो. तुम भगवान विश्वनाथ की भी वंदनीया हो. जो लोग भक्तिपूर्वक तुम्हारे सामने मस्तक झुकाते हैं, वे संपूर्ण विश्व को आश्रय देनेवाले होते हैं.

महालया के दूसरे दिन आश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को नवरात्र व्रत अनुष्ठान प्रांरभ होता है. घर में जौ बोकर, घट स्थापित कर श्री दुर्गासप्तशती का पाठ करते हैं. मां दुर्गा की पूजा-उपासना के संबंध में शाक्ततंत्रों में कहा गया है कि मानव-जीवन समस्या एवं संकटों की सत्यकथा है. अतः सांसारिक कष्टों के दलदल में फंसे मनुष्यों को मां दुर्गा की उपासना करनी चाहिए.

वह आद्याशक्ति एकमेव एवं अद्वितीय होते हुए भी अपने भक्तों को काली, तारा, षोड़शी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, त्रिपुरभैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मांतगी एवं कमला- इन दश महाविद्याओं के रूप में वरदायिनी होती हैं और वही जगन्माता अपने भक्तों के दुख दूर करने के लिए- शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघण्टा, कूष्माण्डा, स्कन्द माता, कात्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी तथा सिद्धिदात्री- इन नवदुर्गाओं के रूप में अवतरित होती हैं. सत्व, रजस, तमस इन तीन गुणों के आधार पर वह महाकाली, महालक्ष्मी एवं महासरस्वती के नाम से लोक में प्रसिद्ध हैं.

एकैवाहं जगत्यत्र द्वितीया का ममापरा – श्रीचण्डी में उनके स्वयं के इस वचन के अनुसार, वे भक्तजनों के बीच दुर्गा नाम से जानी जाती हैं. रूद्रायलतंत्र में आद्याशक्ति के दुर्गा नाम का निर्वचन करते हुए निरूपित किया गया है – जो दुर्ग के समान सुविधा और सुरक्षा देती हैं अथवा जो दुर्गति का नाश करती हैं, वही जगत् जननी दुर्गा कहलाती हैं.

महालया पर बन रहा दुर्लभ संयोग 

इस वर्ष रविवार, 25 सितंबर को स्नान-दान सहित सर्वपैत्री अमावस्या का श्राद्ध एवं पितृविसर्जन महालया पर्व के रूप में संपन्न होगा.

इस बार महालया के दिन उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र अहोरात्र, सूर्य कन्या राशि में, चंद्रमा सिंह राशि में दिवा 12:16 बजे के उपरांत कन्या राशि में प्रवेश करेंगे.

शुभ योग, उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के होने के कारण इस दिन दुर्लभ संयोग बन रहा है, जो सर्वपैत्री अमावस्या के श्राद्ध तथा महालया पर्व के लिए सर्वोत्तम तिथि है.

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