सुरेंद्र/शंकर, रजरप्पा :
रजरप्पा के दामोदर-भैरवी संगम स्थल पर ‘मां छिन्नमस्तिका’ साक्षात विराजमान हैं. माता का यह मंदिर देश के प्रसिद्ध सिद्धपीठों में से एक है. मान्यता है कि श्रद्धापूर्वक मां छिन्नमस्तिका की पूजा-अर्चना करने से भक्तों को मनोवांछित फल प्राप्त होते हैं. वैसे तो वर्ष भर देश-विदेश से श्रद्धालु और साधक यहां आते रहते हैं, लेकिन नवरात्र में यहां पूजा-अनुष्ठान का विशेष महत्व है. नवरात्र के नौ दिनों तक मंदिर परिसर में स्थिति 13 हवन कुंडों में पूजा-पाठ, हवन और यज्ञ चलता रहता है. इस दौरान पूरा मंदिर प्रक्षेत्र मंत्रोच्चारण से गुंजायमान रहता है.
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इस बार नवरात्र को लेकर रजरप्पा मंदिर को कोलकाता के दक्षिणेश्वर काली मंदिर का भव्य रूप दिया जा रहा है. यहां 40 कारीगर इसके निर्माण कार्य में दिन-रात जुटे हुए हैं. उधर, रजरप्पा मंदिर न्यास समिति द्वारा भी यहां पहुंचने वाले श्रद्धालुओं के लिए विशेष व्यवस्था की गयी है. सचिव शुभाशीष पंडा ने बताया कि नवरात्र में यहां नौ दिनों तक मां नौ स्वरूपों की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है. खास कर नवमी के दिन यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं और मां भगवती के दर्शन कर पूजा-अर्चना करते हैं. उधर, जिला प्रशासन द्वारा भी रजरप्पा में सुरक्षा व्यवस्था के व्यापक इंतजाम किये जा रहे हैं.
लक्ष्य बलि तलवार से दी जाती है बलि
रजरप्पा मंदिर में सदियों से नवरात्र में विशेष पूजा-अर्चना होती आ रही है. पुजारियों ने बताया कि मंदिर से लगभग तीन किमी दूर हेसापोड़ा गांव स्थित मुख्य पुजारी के भंडार घर से लक्ष्य बलि तलवार को बाजे-गाजे के साथ मंदिर लाया जाता है. यहां इस तलवार से पंचमी से दशमी तक बकरे की बलि दी जाती है. इस तलवार को सिर्फ नवरात्र में ही निकाला जाता है. पुजारियों के घर से पुआ-पकवान भी मां को चढ़ाया जाता है.