Dussehra 2022: दशहरा में दिखती है देश की सांस्कृतिक विविधता की झलक, देखें आकर्षक तस्वीरें

Dussehra 2022: बुराई पर अच्छाई की जीत का त्योहार दशहरा पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. इस दौरान देशभर में अलग-अलग प्रकार की साज-सज्जा का दर्शन किया जाता है. खास बात है कि अपने देश की विविधता की झलक इस त्योहार में भी देखने को मिलती है. आइये जानतें हैं ऐसे ही कुछ दशहरा उत्सव के बारे में.

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 2, 2022 11:45 AM
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छत्तीसगढ़ में विश्व प्रसिद्ध 75 दिनों तक चलने वाले बस्तर दशहरा का शुभारंभ पाटजात्रा पूजा विधान के साथ होता है. पाटजात्रा बस्तर दशहरा की प्रथम महत्वपूर्ण रस्म है, जिसमें दंतेश्वरी मंदिर के समक्ष माचकोट के जंगल से लायी गयी साल वृक्ष की लकड़ी की पारंपरिक रूप से पूजा की जाती है. परंपरा के अनुसार, यहां यह उत्सव माता दंतेश्वरी को समर्पित है. दंतेश्वरी बस्तर के निवासियों की आराध्य देवी हैं. दंतेश्वरी माता दुर्गा का ही एक रूप हैं. बस्तर के दशहरा का मुख्य आकर्षण लकड़ी से निर्मित विशालकाय दोमंजिला रथ होता है, जिसे सैकड़ों ग्रामीण उत्साहपूर्वक खींचते हैं.

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उत्तर प्रदेश के वाराणसी दुनिया के सबसे पुराने रामलीला प्रदर्शन के लिए मशहूर है. अन्य राज्यों की तुलना में वाराणसी में दशहरे का आयोजन कुछ विशेष प्रकार से किया जाता है. यहां तुम एक तरफ दिल्ली शैली वाले रामलीला उत्सव का आनंद ले सकते हो और दूसरी तरफ कोलकाता की देवी माता दुर्गा की पूजा के उत्सव में भाग ले सकते हैं. यहां विजयादशमी के दिन विशेष रूप से रावण दहन का आयोजन किया जाता है.

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कर्नाटक स्थित मैसूर का दशहरा विश्व प्रसिद्ध है. दशहरे के मौके पर निकलने वाली झांकी को देखने के लिए दुनियाभर से पर्यटक यहां आते हैं. मैसूर का दशहरा सेलिब्रेशन नौ दिनों तक चलता है और विजयादशमी का त्योहार काफी धूमधाम से मनाया जाता है. विजयादशमी के दिन पूजी गयी देवी की मूर्तियां भव्य जुलूस के साथ सजे हुए हाथी पर ले जायी जाती हैं. यह हाथी जुलूस, मैसूर पैलेस से शुरू होता है और दशहरा मैदान तक जाता है. इस दौरान पूरे शहर को सजाया जाता है. इसके साथ शहर में लोग टॉर्च लाइट के संग नृत्य और संगीत की शोभायात्रा का आनंद लेते हैं.

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हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में मनाया जानेवाला दशहरा देश के सबसे मशहूर दशहरा उत्सवों में से एक है. यहां दशहरा सात दिन के उत्सव की तरह मनाया जाता है. कमाल की बात यह है कि जब देश में लोग दशहरा मना चुके होते हैं, तब कुल्लू का दशहरा शुरू होता है. इस त्योहार को यहां दशमी कहते हैं. इस दौरान श्रद्धालुओं द्वारा 100 से ज्यादा देवी-देवताओं को रंग-बिरंगी पालकियों में बैठाकर एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जाता है. उत्सव के पहले दिन देवी हिडिंबा को मनाली से कुल्लू लाया जाता है. ऐसी मान्यता है कि कुल्लू का दशहरा सेलिब्रेशन 17वीं शताब्दी में शुरू हुआ था, जब कुल्लू राजा-महाराजाओं का गढ़ माना जाता था.

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