अलिखित है लक्षद्वीप का आरंभिक इतिहास, जानें कैसे बसे लोग, क्या हैं मान्यताएं
लक्षद्वीप इन दिनों चर्चा में है. ऐसे में लोगों में लक्षद्वीप के बारे में जानने की उत्सुकता बढ़ गई है. ऐसे में आइए जानते हैं, लक्षद्वीप का इतिहास. यूं तो लक्षद्वीप का आरंभिक इतिहास कहीं लिखित नहीं है, लेकिन कई किवदंतियां और मान्यताएं हैं.
Lakshadweep News: लक्षद्वीप का आरंभिक इतिहास अलिखित है. ऐसे में यहां के इतिहास के बारे में जो कुछ भी कहा जाता है, वह किवदंतियों पर आधारित है. स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, केरल के अंतिम राजा चेरामन पेरुमल के शासनकाल में इन द्वीपों पर पहली बार लोग आकर बसे.
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इस्लाम का आगमन
सातवीं शताब्दी में यहां इस्लाम का आगमन हुआ. माना जाता है कि मक्का से संत उबैदुल्ला यहां आये और धीरे-धीरे उन्होंने यहां के सभी निवासियों को इस्लाम धर्म में परिवर्तित कर दिया.
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पुर्तगालियों का आक्रमण
पंद्रहवीं शताब्दी के अंत में यहां पुर्तगालियों का आगमन हुआ. इसके साथ ही यहां के द्वीपों पर लूट की शुरुआत हुई. वास्तव में तब जहाजों के लिए बारीक काती गयी नारियल की जटा (कॉयर) की बहुत मांग थी. सो जटा से भरे द्वीपीय जहाजों को पुर्तगालियों ने लूटना शुरू कर दिया. सोलहवीं शताब्दी की शुरुआत में वे जबरन इस जटा को प्राप्त करने के लिए अमिनी द्वीप उतरे. परंतु ऐसा कहा जाता है कि वहां के निवासियों ने विष देकर सभी आक्रमणकारियों को मार डाला. इससे यहां पुर्तगाली आक्रमण समाप्त हो गया.
ऐसे आये सभी द्वीप ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन
यहां के सभी द्वीपों के इस्लाम में परिवर्तित होने के बाद भी, कुछ वर्षों तक यहां का शासन चिरक्कल के हिंदू राजा के हाथों में ही रहा. सोलहवीं शताब्दी के मध्य के आसपास, द्वीप का प्रशासन चिरक्कल राजा के हाथों से निकलकर कन्नानोर के अरक्कल के मुस्लिम घराने के पास चला गया. अरक्कल शासन दमनकारी था. वर्ष 1783 में अमिनी द्वीप समूह का प्रशासन टीपू सुल्तान के हाथों में आ गया. इस प्रकार पांच द्वीप टीपू सुल्तान के शासन में आ गये और बाकी अरक्कल घराने के अधीन ही रहे. वर्ष 1799 में श्रीरंगपट्टम की लड़ाई के बाद टीपू के शासन के अधीन रहे द्वीपों को ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने कब्जे में ले लिया. वर्ष 1854 में सभी द्वीप ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन आ गये. बाद में ब्रिटिश शासन ने सभी द्वीपों को अपने कब्जे में ले लिया. वर्ष 1947 में भारत के स्वतंत्र होने के बाद सभी द्वीपों की संप्रभुता भारत को हस्तांतरित कर दी गयी. वर्ष 1956 में यह भारत का केंद्र शासित प्रदेश बना और 1973 में इसे लक्षद्वीप नाम दिया गया.
मत्स्य पालन और कृषि है अर्थव्यवस्था का आधार
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मछली पालन
मछली पकड़ना इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था का एक प्रमुख हिस्सा है. यहां की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा इस कार्य में संलग्न है और यह उनकी आजीविका का मुख्य साधन है. यहां मछली पकड़ने का कार्य मुख्य रूप से 11 द्वीपों और पेरुमुल पार, वालियापानी तथा चेरियापानी जैसे चट्टानी क्षेत्रों में ही केंद्रित है. आंकड़े बताते हैं कि यहां के मछली उत्पादन में लगातार वृद्धि हो रही है. वर्ष 1950 के दशक में जहां इस प्रदेश में मछली का उत्पादन 500 टन था, वह हाल के वर्षों में 12,000 टन को पार कर गया है, जो मछली पकड़ने की अनुमानित क्षमता का लगभग पांच प्रतिशत ही है. इस कारण लक्षद्वीप में मत्स्य उद्योग के लिए पर्याप्त संभावनाएं मौजूद हैं. यहां पकड़ी जाने वाली कुल मछलियों में 80 प्रतिशत हिस्सा स्किपजैक टूना मछली का होता है.
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कृषि
नारियल के पेड़ लक्षद्वीप की कृषि का मुख्य आधार हैं. यहां के द्वीपों में पर्याप्त रूप से केवल नारियल की खेती की जाती है. बड़े पैमान पर लोग द्वारा यहां खोपरा, यानी नारियल के उत्पादन से जुड़े हैं. यहां सब्जियों एवं फलों तथा अन्य फसलों की खेती बहुत कम मात्रा में होती है. वास्तव में यहां के द्वीप ऐसे नहीं हैं, जहां बड़े पैमाने पर खेती की जा सके.
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उत्पादन
खाद्य प्रसंस्करण- मुख्य रूप से मछलियों के उत्पाद- लक्षद्वीप के प्रमुख उद्योगों में से एक है. मिनिकॉय द्वीप पर एक टूना कैनरी है, जहां टूना मछली (बोनिटो) को पारंपरिक तरीके से सुखाया जाता है. क्षेत्र की अन्य विनिर्माण गतिविधियों में नारियल की जटा (नारियल फाइबर) का उत्पादन, होजरी उत्पादन, बुनाई और नाव निर्माण शामिल हैं.
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