झारखंड के झरिया में धधकती आग पर आखिर क्यों रह रही बड़ी आबादी, पढ़िए ये रिपोर्ट

धनबाद (संजीव/ मनोहर ) : रोज फट रही धरती. लगातार निकल रही आग. कई जगह जहरीली गैस भी. पता नहीं, कब कौन असमय काल के गाल में समा जाये ? कब कौन जमींदोज हो जाये? इन सबके बीच झरिया में हजारों लोग जी रहे हैं. फटती धरती, आग और गैस रिसाव के बीच रात-दिन कोयला काट रहे हैं. उसे जला कर बेच रहे हैं. ऐसे अत्यंत खतरनाक क्षेत्र में बहुत सारे लोग पेट की मजबूरी में रहना चाहते हैं. पर बहुत से परिवार ऐसे भी हैं, जो पुनर्वास के इंतजार में हैं. वे बेलगढ़िया या किसी अन्य स्थान पर कम से कम दो कमरे का घर चाहते हैं. साथ ही रोजगार की कोई स्थायी व्यवस्था. दरअसल झरिया में सौ वर्ष से भी अधिक समय से धरती के नीचे आग लगी है. कई योजनाएं बनीं, पर आग पर काबू नहीं पाया जा सका.

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 26, 2020 3:41 PM
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धनबाद (संजीव/ मनोहर ) : रोज फट रही धरती. लगातार निकल रही आग. कई जगह जहरीली गैस भी. पता नहीं, कब कौन असमय काल के गाल में समा जाये ? कब कौन जमींदोज हो जाये? इन सबके बीच झरिया में हजारों लोग जी रहे हैं. फटती धरती, आग और गैस रिसाव के बीच रात-दिन कोयला काट रहे हैं. उसे जला कर बेच रहे हैं. ऐसे अत्यंत खतरनाक क्षेत्र में बहुत सारे लोग पेट की मजबूरी में रहना चाहते हैं. पर बहुत से परिवार ऐसे भी हैं, जो पुनर्वास के इंतजार में हैं. वे बेलगढ़िया या किसी अन्य स्थान पर कम से कम दो कमरे का घर चाहते हैं. साथ ही रोजगार की कोई स्थायी व्यवस्था. दरअसल झरिया में सौ वर्ष से भी अधिक समय से धरती के नीचे आग लगी है. कई योजनाएं बनीं, पर आग पर काबू नहीं पाया जा सका.

झरिया रेलवे स्टेशन उजड़ गया. रेल लाइन भी उजड़ा. बागडिगी, भगतडीह, लालटेनगंज, बोका पहाड़ी जैसे कई इलाके आज नक्शे से गायब हो चुके हैं. आरएसपी कॉलेज व झरिया उच्च विद्यालय बंद हो गये. स्थिति चिंताजनक है. वैसे झरिया के लोग यह भी कहते हैं कि यह झरिया को पूरी तरह उजाड़ने की कोयला कंपनी की साजिश है? क्योंकि यहां धरती के नीचे महंगा कोयला है. लोग कहते हैं कि धसान की आशंका से आरएसपी कॉलेज बंद हो गया, पर उसी के किनारे ओबी डंप का पहाड़ है. वह तो नहीं धंसा. लोग कुछ भी कहें, पर हकीकत यह भी है कि झरिया कोयलांचल की लिलौरीपथरा, घनुडीह महल्ला बस्ती, कुजामा बस्ती, बस्ताकोला सात नवंबर पासवान पट्टी व इंडस्ट्रीज कोलियरी, राजापुर कोलियरी आदि क्षेत्र खतरे में है. यह अग्नि प्रभावित इलाका है. भू-धंसान के दृष्टिकोण से भी अति संवेदनशील है.

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‘झरिया की आग’ की गंभीरता 1997 में समझी गयी. वह भी आसनसोल तत्कालीन सांसद हराधन राय की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पीआइएल दायर करने के बाद. उसी पीआइएल की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने झरिया की आग को ‘राष्ट्रीय त्रासदी’ घोषित किया था. आदेश दिया गया कि लोगों को बसाने की योजना बने और कोर्ट को प्रगति रिपोर्ट दी जाये. आनन-फानन में कोरम पूरा करने के लिए बेलगढ़िया बनाया गया और कुछ लोगों को बसाया गया. बीसीसीएल को 15,852 और झरिया पुनर्वास एवं विकास प्राधिकरण (जेआरडीए) को 18,352 घर बनाने हैं. बीसीसीएल ने 7714 घर बना कर तैयार कर लिये हैं, जबकि 8,138 घरों का निर्माण कार्य अभी भी जारी है. वहीं जेआरडीए ने अब-तक 6,352 घर ही बनाये है, जबकि 12,000 घरों का निर्माण कराना शेष हैं.

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झरिया पुनर्वास व विकास प्राधिकार (जेआरडीए) के कार्यों की गति ऐसी है कि 20 साल में भी सभी अग्नि प्रभावितों का पुनर्वास संभव नहीं हो पाया है. झरिया मास्टर प्लान की स्वीकृति वर्ष 2009 में सरकार ने दी. पुनर्वास के लिए 7112 करोड़ के बजट को मंजूरी दी. इस मद में अब तक करीब नौ फीसदी राशि ही खर्च हो पायी है. इतना ही नहीं, अग्नि प्रभावित बीसीसीएल कर्मियों व गैर कोलकर्मियों को बसाने की डेडलाइन 2021 तय हैं. मात्र एक वर्ष बचे हैं और अभी तक महज 10 फीसदी लोगों का भी पुनर्वास नहीं हो सका है. इस मद से करीब 2157 गैर बीसीसीएल कर्मी (नन टाइटल होल्डरों) व 4094 बीसीसीएल कर्मियों का ही पुनर्वास हुआ है, नये सर्वे के मुताबिक कुल 1,04,946 परिवारों को पुनर्वासित करना है. इनमें 32064 लीगल टाइटल होल्डर (रैयत) व 72,882 नन टाइटल होल्डर (अतिक्रमणकारी) शामिल है. अभी बहुत ऐसे लोग हैं, जिनका सर्वे तो हो गया है, पर उन्हें पुनर्वासित नहीं किया गया है. जिसके कारण मजबूरन धधकती आग पर लोग रहने को बेबस हैं.

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अगर बंद खदान से कोयला नहीं निकालेंगे और उसे तैयार कर बाजार में नहीं बेंचेंगे, तो करेंगे क्या? रोज एक से दो बोरा कोयला तैयार कर बेचते हैं, तो अपना और बच्चों का पेट भर पाते हैं. सरकार से लाल कार्ड, रसोई गैस और चूल्हा तो मिला है, लेकिन सिर्फ चावल खा कर कब तक जी पायेंगे. मां काली की कृपा है. यहां आज तक किसी की जान नहीं गयी है. आगे भी ऊपर वाले के ही भरोसे रहेंगे. यह कहना है झरिया स्टेशन से सटे लिलौरी पथरा (बालू गद्दा) की एक दंपती का. यहीं पर वर्ष 2019 में मॉनसून के दौरान पांच मकान व एक दुकान धरती में समा गये थे.

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इंडस्ट्री कोलियरी, जहां एक सप्ताह पहले एक महिला जमींदोज हो गयी थी, वहां आज भी 32 परिवार रह रहा है. क्षेत्र के जितेंद्र कुमार कहते हैं कि पिछले 20 वर्षों से यहां रह रहे हैं. कई बार सर्वे हुआ. फोटो खिंचवाया गया. पर कुछ नहीं हुआ. हम लोग इसे अपनी नियति मान चुके हैं. जब तक कोई सुरक्षित घर नहीं मिलेगा, तब तक कहीं नहीं जायेंगे. जो होगा, देखा जायेगा.

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Posted By : Guru Swarup Mishra

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