ग्रामीण भारत में 14 से 18 साल के 25 प्रतिशत किशोर दूसरी कक्षा की किताब नहीं पढ़ सकते और लगभग 60 प्रतिशत पैमाने से ठीक से नाप नहीं ले सकते. ऐसे आंकड़े यह इंगित करते हैं कि ग्रामीण क्षेत्र में हमारी स्कूली व्यवस्था की गुणवत्ता निम्न स्तर पर है. स्वैच्छिक संस्था प्रथम फाउंडेशन की वार्षिक स्कूली सर्वेक्षण में बताया गया है कि 14 से 18 साल के लगभग 87 प्रतिशत किशोरों का स्कूलों में नामांकन है, लेकिन उम्र बढ़ने के साथ-साथ पढ़ाई छोड़ने का प्रतिशत बढ़ता जाता है. यह रिपोर्ट 26 राज्यों के 28 जिलों में करीब 35 हजार किशोरों के सर्वेक्षण पर आधारित है. पिछली बार 2017 में संस्था की वार्षिक रिपोर्ट में इस आयु वर्ग का सर्वेक्षण किया गया था. कोरोना महामारी के दौर में यह चिंता जतायी गयी थी कि जीवनयापन के लिए अधिक आयु के किशोर पढ़ाई छोड़ सकते हैं, लेकिन रिपोर्ट में पाया गया है कि ऐसा नहीं हुआ. यह संतोषजनक है, पर केवल स्कूल में दाखिले से बात नहीं बनेगी. हमें पढ़ाई के स्तर को बेहतर करना होगा. साल 2017 और 2023 के बीच छह साल का अंतराल है, किंतु किशोरों के स्तर में कोई विशेष गुणात्मक सुधार नहीं हुआ है. क्षेत्रीय भाषाओं के पाठ पढ़ने में लड़कों की तुलना में लड़कियों का प्रदर्शन बेहतर है, पर अंग्रेजी पाठ पढ़ने और गणित में लड़के अच्छा कर रहे हैं. पहली बार इस रिपोर्ट में 11वीं और 12वीं में विषयों के चयन पर सर्वेक्षण किया गया है.
इन कक्षाओं में 54 प्रतिशत छात्र कला एवं मानविकी विषय पढ़ रहे हैं, जबकि 9.3 प्रतिशत वाणिज्य और 33.7 विज्ञान पढ़ रहे हैं. विज्ञान पढ़ने के मामले में लड़कों से लड़कियां पीछे हैं. यदि किशोर स्कूली स्तर पर बुनियादी चीजें नहीं जानेंगे, तो वे या तो आगे की पढ़ाई ठीक से नहीं कर पायेंगे या स्कूली शिक्षा के बाद पढ़ना छोड़ देंगे. ग्रामीण भारत में देश की 65 प्रतिशत से अधिक आबादी रहती है तथा देश के लगभग 47 प्रतिशत लोग जीवनयापन के लिए कृषि पर निर्भर हैं. इस कारण ग्रामीण भारत का विकास सरकार की प्राथमिकताओं में ऊपर है. गांवों और कस्बों में कृषि और अन्य स्थानीय गतिविधियों से जुड़े रोजगार को बढ़ाने के लिए प्रयास हो रहे हैं. इसलिए यह आवश्यक है कि किशोर और युवा शिक्षित हों तथा कौशल सीखें. ऐसा ठीक से नहीं हो पाने से वे स्थानीय स्तर पर हो रहे विकास कार्यों से नहीं जुड़ पायेंगे और न ही शहरों में उन्हें अच्छे मौके हासिल होंगे. केंद्र और राज्य सरकारों ने शिक्षा पर बजट आवंटन बढ़ाया है तथा नामांकन, शिक्षकों की नियुक्ति, संसाधनों की उपलब्धता पर ध्यान दिया है. पर यह नाकाफी है. सरकार, समाज और अभिभावक सभी को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बच्चों को अच्छी स्कूली शिक्षा मिले.