Ekadashi Vrat Rules: भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को परिवर्तिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. एकादशी व्रत करने से जाने अनजाने किए गए सारे पाप नष्ट हो जाते हैं. भौतिक सम्पन्नता और परलोक में मुक्ति की प्राप्ति होती है.
हर मास में दो एकादशी तिथि पड़ती है. पहला कृष्ण पक्ष तो दूसरा शुक्ल पक्ष में. प्रत्येक पक्ष की एकादशी का अपना अलग-अलग महत्व होता है. एकादशी का व्रत करने से हवन, यज्ञ और वैदिक कर्म-कांड से भी अधिक फल मिलता है. एकादशी व्रत में कुछ नियमों का पालन करना जरूरी है.
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 25 सितंबर को सुबह 07 बजकर 55 मिनट पर प्रारंभ होगी और इसकी समापन 26 सितंबर को सुबह 05 बजकर 12 मिनट पर होगा. उदया तिथि के चलते परिवर्तिनी एकादशी का व्रत 25 सितंबर को ही है. इस दिन श्री हरि की पूजा अर्चना की जाएगी.
एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित है. इस दिन भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा की जाती है. एकादशी व्रत करने वाले को एकादशी तिथि के पहले सूर्यास्त से लेकर एकादशी के अगले सूर्योदय तक उपवास रखना पड़ता है.
एकादशी व्रत करने वाले लोगों को दशमी यानी एकादशी से एक दिन पहले मांस-मछली, प्याज, मसूर की दाल और शहद जैसे खाद्य-पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए. इस दिन चावल का सेवन भी वर्जित होता है.
एकादशी का व्रत करने वालों को दशमी और एकादशी दोनों दिन भोग-विलास से दूर पूरी तरह से ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए. इस दिन भूलकर भी वृक्ष से पत्ते नहीं तोड़ने चाहिए.
एकादशी के दिन घर में बहुत ध्यान से झाड़ू लगाना चाहिए. घर में झाड़ू लगाते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि चीटियों या छोटे-छोटे जीवों को कोई नुकसान ना पहुंचे.
एकादशी का व्रत करने वाले व्यक्ति को रात्रि का जागरण करना चाहिए. इस दिन ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ इस द्वादश मंत्र का जाप करें. भगवान विष्णु का स्मरण कर उनकी प्रार्थना करें.