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नये साल में चुनाव, मुद्दे और दल

अजेय और भरोसेमंद होने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि हालिया चुनावों में और पक्की हुई है. भाजपा का ठोस विकल्प बनाने का विचार पिछले साल आया, पर अंततः विपक्षी खेमे में विचारधारा और नेतृत्व को लेकर दरारें पड़ गयीं. हाल में कांग्रेस की हार विपक्ष को किसी तरह एकजुट होने को मजबूर करेगी.

हम कह सकते हैं कि 2023 प्रतिध्रुवों का वर्ष रहा. राजनीतिक एवं धार्मिक टकराव, केंद्र-राज्य तनाव, खेल स्कैंडल, जांच एजेंसियों का अतिक्रमण और प्रतिस्पर्धात्मक कल्याण योजनाओं की घोषणा आदि ने जहां आख्यान को आक्रांत किया, वहीं शेयर बाजार में तेजी, मनोरंजन उद्योग का विस्तार, खेलों में जीत और अंतरिक्ष अभियानों ने देश का मान बढ़ाया. नया साल अतीत को दुहराने के लिए तैयार दिख रहा है. पहली छमाही में पहले से भी अधिक अभद्रता और टकराव देखने को मिल सकता है, क्योंकि पार्टियां चुनावी मैदान में उतरेंगी. सोशल मीडिया पर झूठ और मूर्खता का वर्चस्व होगा. भरोसेमंद टिप्पणी और समाचार की जगह आरोप-प्रत्यारोप के शोर से भरे टीवी चैनल अखाड़ों की तरह दिखेंगे. पार्टियां और कॉर्पोरेट माहौल बनाने के लिए सोशल मीडिया पर लाखों खाते बनायेंगे. डीप फेक के जरिये विरोधियों को बदनाम करने की कोशिशें होंगी. मुख्य रूप से निम्न मुद्दों की गूंज पूरे साल सुनाई देगी.

मोदी का विकल्प नहीं : अजेय और भरोसेमंद होने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि हालिया चुनावों में और पक्की हुई है. उनके शब्द उनके समर्थकों के लिए अकाट्य सत्य होते हैं. ‘मोदी की गारंटी’ भविष्य के लिए भाजपा का नया पासवर्ड है. पूरे साल ऐसे प्रधानमंत्री के रूप में मोदी की चर्चा होगी, जो वादों से अधिक कार्य करते हैं. देश भर में उनके पोस्टर और बोर्ड होंगे. उनकी उपस्थिति शारीरिक, भावनात्मक और इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से वोटरों तक पहुंचती रहेगी. किसी भी अन्य प्रधानमंत्री की तुलना में अधिक समय उन्होंने दिल्ली से बाहर बिताया है और देश भर में पार्टी का हौसला बढ़ाया है. उन्हें भारत की फिर से खोज करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि वे देश की विविधताओं से अच्छी तरह परिचित हैं. उन्होंने अपने हिंदुत्व एजेंडा को पूरा किया है, पर 2024 में उन्होंने अधिक विकास मुहैया कराना होगा. कल्याण योजनाओं का मोदी का अर्थशास्त्र उन्हें वोट दिला सकता है, पर दीर्घ काल में आर्थिक मजबूती इससे कमजोर हो सकती है. उन्हें जल्दी से आय विषमता को ठीक करना चाहिए और धन वितरण पर ध्यान देना होगा ताकि पूंजीवाद बढ़ाने का कोई संकेत न निकले. मोदी के एकमात्र प्रतिद्वंद्वी मोदी ही हैं. इस वर्ष उनकी गारंटी है कि वे अपने बेहतरीन स्वरूप से भी बेहतर साबित होंगे.

मेल-मिलाप वाला वैश्विक भारत : क्या भारत को सुरक्षा परिषद में अस्थायी सदस्यता मिलेगी? क्या यह ग्लोबल साउथ का नेता हो सकता है? क्या पड़ोसियों से संबंध बेहतर होंगे? अमेरिका का सहयोगी होने की अपनी छवि से क्या भारत मुक्त हो सकता है? चुनावी रणनीति के निर्देशन में मोदी के व्यस्त होने के कारण विदेश मंत्री जयशंकर को पुतिन से मुलाकात कर कूटनीतिक रूप से सभी से बराबर दूरी रखने का संकेत देना पड़ा. जी-20 में मिले मोदी के लाभ पूरे साल बहाल रहने चाहिए. गाजा संघर्ष में भारत की भूमिका नहीं दिख रही है. विश्व नेताओं के साथ प्रधानमंत्री के व्यक्तिगत संबंधों के लाभ के लिए उन्हें आक्रामक चीन और पाकिस्तान से निपटना होगा. अपने दूसरे कार्यकाल में मोदी ने 120 देशों की यात्रा में 240 दिन बिताये हैं. जयशंकर का आंकड़ा 290 दिनों का है. उनका पसंदीदा गंतव्य अमेरिका है. भारत ने अमेरिकी खेमे के विरुद्ध एक अन्य कूटनीतिक दबाव समूह बनाने में ठोस प्रगति की है. पिछले साल अमेरिका-रूस तनातनी के कारण भारत रणनीतिक कूटनीति में प्रभावी भूमिका नहीं निभा सका, पर इस वर्ष भारत हर वैश्विक मामले को प्रभावित करने की स्थिति में होगा.

विपक्ष की स्थिति : भाजपा का ठोस विकल्प बनाने का विचार पिछले साल आया, पर अंततः विपक्षी खेमे में विचारधारा और नेतृत्व को लेकर दरारें पड़ गयीं. हाल में कांग्रेस की हार विपक्ष को किसी तरह एकजुट होने को मजबूर करेगी. कांग्रेस अब सभी पार्टियों को बराबर मान देने और सीटों के बंटवारे पर बातचीत की इच्छुक है. कांग्रेस अपने पद के बिना नेता राहुल गांधी को आगे करेगी. उनकी दूसरी यात्रा- न्याय यात्रा- इस माह शुरू होगी और आम चुनाव की घोषणा तक चलेगी. विपक्ष को 2004 दुहराने की आशा है, जब बेहद लोकप्रिय वाजपेयी सरकार चुनाव हार गयी थी. तब सोनिया गांधी ने विभिन्न दलों का गठबंधन बनाया था और एक दशक तक देश चलाने के लिए बिना राजनीतिक महत्व वाले टेक्नोक्रेट मनमोहन सिंह को नियुक्त किया था. कॉर्पोरेट भारत का प्रभाव : भारत दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है. इस साल 7% वृद्धि दर की संभावना है, पर अंतरराष्ट्रीय और घरेलू आपूर्ति शृंखला में गड़बड़ी तथा मुद्रास्फीति के दबाव बढ़त को धीमा कर सकते हैं. बड़े सार्वजनिक निवेश के साथ ग्रामीण मांग में वृद्धि से कुछ क्षेत्र अच्छा कर सकते हैं, जैसे उड्डयन, स्वास्थ्य, मनोरंजन, पर्यटन और वाहन. यदि मोदी बहुमत के साथ सत्ता में बने रहते हैं, तो निश्चित ही कॉर्पोरेट बढ़त होगी. शेयर बाजार भले भारत के वास्तविक वित्तीय स्वास्थ्य का प्रतिबिंब नहीं हो, पर यह निवेशकों के भरोसे को दर्शाता है. भारतीय बाजार एक प्रभावपूर्ण पूंजीवादी समूह द्वारा नियंत्रित होने के कारण भारतीय बाजार संकुचित है. साल भर में सेंसेक्स 61 हजार से बढ़ कर 72 हजार हुआ है. सूचीबद्ध कंपनियों की बाजार पूंजी लगभग 30% बढ़ कर लगभग चार ट्रिलियन के स्तर पर है, जो भारत की जीडीपी से अधिक है.

भारत का रामकरण : बीते एक दशक में राजनीति का मोदीकरण हो चुका है. अब इस वर्ष भारतीय संस्कृति के रामकरण का समय है. अयोध्या में राम लल्ला की स्थापना के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पूरे देश को भगवान राम और मोदी की तस्वीर से पाट देगा. भाजपा और संघ के कार्यकर्ता घर-घर जाकर दीपावली मनाने का आग्रह करेंगे. पार्टी विश्व का अधिकाधिक ध्यान इस आयोजन की ओर खींचना चाहती है तथा देश में इसे सांस्कृतिक पुनर्जागरण के एक राग के रूप में पेश करना चाहती है. विपक्ष के समक्ष विचारधारा और आस्था में से एक चुनने की चुनौती है.

भारत गणराज्य : क्या इस वर्ष देश का नाम भारत हो जायेगा? इसकी प्रक्रिया पिछले साल राष्ट्रपति के आमंत्रण से प्रारंभ हो चुकी है. उसके बाद मोदी ने जी-20 नेताओं को भारत के पीएम के रूप में आमंत्रित किया. ऐसा लगता है कि भारत इंडिया का स्थान ले लेगा. एक दशक के मोदी राज ने भारतीय सदी पर अमिट छाप छोड़ी है. भारत की पहचान संघर्षग्रस्त अतीत के छोरों से निकलकर सार्वभौमिक प्रतिष्ठा के क्षितिज की ओर अग्रसर हो रही है.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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