झारखंड के रामगढ़ में जारी है गजराज का आतंक, 4 दशक में 60 लोगों की ले ली जान, सुरक्षा के क्या हैं इंतजाम
Jharkhand News: रामगढ़ जिले के गोला, दुलमी व रजरप्पा क्षेत्र के जंगलों में पनाह लिए हाथियों का झुंड शाम में गांव की ओर रुख कर जाता है और घरों में रखे चावल, धान व अन्य खाद्य सामग्री को चट कर जाता है. किसानों की फसलों को भी रौंद कर नष्ट कर देता है. जिससे अब तक करोड़ों रुपये की क्षति हो चुकी है.
Jharkhand News: पिछले चार दशक से झारखंड के रामगढ़ जिले के गोला, दुलमी व रजरप्पा वन क्षेत्र में हाथियों का उत्पात जारी है. अबतक लगभग 60 से अधिक लोगों को गजराज मौत के घाट उतार चुके हैं. हाथियों ने सैकड़ों लोगों को घायल भी किया है, जबकि हजारों किसानों की फसलों को भारी नुकसान पहुंचाया है. सैकड़ों लोगों के मकानों व चहारदीवारी को तोड़ दिया है. अब भी क्षेत्र में हाथियों का कहर जारी है. प्रतिदिन हाथी किसी न किसी गांव में बड़ी घटना को अंजाम दे रहे हैं.
जानकारी के अनुसार हाथियों का झुंड रामगढ़ जिले के गोला, दुलमी व रजरप्पा क्षेत्र के जंगलों में पनाह लिए हुए है. शाम होते ही हाथियों का झुंड गांव की ओर रुख कर जाता है और घरों में रखे चावल, धान व अन्य खाद्य सामग्री को चट कर जाता है. वहीं किसानों की फसलों को भी रौंद कर नष्ट कर देता है. जिससे ग्रामीणों को अबतक करोड़ों रुपये की क्षति हो चुकी है. लोगों में हाथियों का दहशत इस कदर है कि जंगल के आस-पास में रहने वाले लोग सूर्यास्त के बाद ही अपने-अपने घरों में दुबक जाते हैं और सूर्योदय के बाद अपने घरों से बाहर निकलते हैं. इस बीच जो घर से निकलते है, वे हाथियों के शिकार हो रहे हैं. पिछले चार दशक के दौरान हाथी 60 से अधिक लोगों को मौत की घाट उतार चुके हैं. वहीं सैकड़ों लोग घायल भी हुए हैं. हालांकि इस बीच एक दर्जन से अधिक हाथी भी मारे जा चुके हैं.
जानकारी के अनुसार जनवरी माह 2003 में गोला के बड़की हेसल के महावीर बेदिया, छह अक्टूबर को उड़ु साड़म के प्रसादी मांझी, 22 दिसंबर 2003 को हुल्लू के अमित महतो व गंगाधर महतो, 28 जून 2004 को चोकड़बेड़ा के कानू बेदिया, तीन अगस्त 2004 को कोरांबे के सुभाष मलहार, तीन जनवरी 2005 को अजय कुमार, छह जनवरी 2005 को पूरबडीह के बुधू करमाली व संग्रामपुर के जैगुन निशा, 14 सितंबर 2005 को दिलीप भगत, 14 अक्टूबर 2006 को डुंडीगाच्छी के आलो देवी, 26 दिसंबर 2006 को कोरांबे के श्याम सिंह मुंडा, 21 अक्टूबर 2007 को उलादका के नंदलाल महतो, 2009 में दिलीप महतो, सितंबर 2010 को उपरबरगा के रोहिन महतो की मौत हाथी के हमले में हो चुकी है.
अप्रैल 2010 को तोपासारा के जगन देवी, 19 मार्च 2012 को साड़म के मुटरी देवी, 26 मार्च 2021 को माचाटांड़ के अघनु बेदिया, 16 नवंबर 2012 को संग्रामडीह के एम महतो, 31 जुलाई 2013 को गोविंदपुर निवासी माधव महतो, 15 नवंबर 2013 को बालेश्वर महतो, 25 मई 2018 को चोपादारू के जितनी देवी, 28 जुलाई 2018 को बड़की हेसल के सावन बेदिया, आठ अगस्त 2018 को कुम्हरदगा के पुलेश्वरी देवी, 10 सितंबर 2018 को चितरपुर के बोरोबिंग अंतर्गत रेचगढ़ा में चितरपुर निवासी चितरंजन चौधरी, 27 दिसंबर 2019 को कोरांबे के उर्मिला देवी, 16 अगस्त 2020 को औंराडीह के रमेश मुर्मू, पुनः दो दिन बाद 18 अगस्त 2020 को जयंतीबेड़ा के सुलेमान अंसारी, चार दिन बाद 22 अगस्त 2020 को बड़की हेसल के सनातन बेदिया, 2020 में ही रजरप्पा के भुचुंगडीह गांव के मंगरा करमाली, तीन अगस्त 2021 को मसरीडीह निवासी ताराचंद महतो, 15 दिसंबर 2021 को मुरपा निवासी गोलक महतो, 29 दिसंबर 2021 को कुसूमडीह निवासी रोशन कुमार, 11 जनवरी 2022 को चटाक निवासी संतोष कुमार को मौत हाथियों के हमले से हो चुकी है.
लोग जंगलों की कटाई एवं पहाड़ों का अवैध उत्खनन कर रहे हैं. जिस कारण हाथियों का झुंड जंगल छोड़ कर गांवों की ओर आ रहा है. जंगल में हाथियों को पर्याप्त भोजन व पानी नहीं मिलने के कारण हाथी उग्र हो चुके हैं. बताया जाता है कि पश्चिम बंगाल के बाघमुंडी स्थित पहाड़ों की तराई में हाथियों का बसेरा हुआ करता था. यहां पश्चिम बंगाल सरकार डैम बना कर जल विद्युत परियोजना संचालित कर रही है. इसके कारण हाथी इधर-उधर भटक रहे हैं. हाथियों को रहने, खाने व पीने के लिए सही जगह नहीं मिल पा रही है. अगर वन विभाग द्वारा उन्हें सही स्थल व खान-पान उपलब्ध करा दिया जाये, तो इस क्षेत्र में हाथियों का आतंक थम सकता है.
जानकारों का कहना है कि गांव में धान की खेती शुरू होने और धनकटनी के बाद हाथी पहुंचने लगते हैं. धान की सुगंध से ही हाथी लोगों के खलिहान और घरों तक पहुंच कर इसे चट कर जाते हैं. इसके अलावे हाथी शकरकंद, केला, कटहल, आलू आदि फसलों को भी काफी चाव से खाते हैं. क्षेत्र में हाथियों के उत्पात को रोकने में वन विभाग के अधिकारी विफल साबित हो रहे हैं. इससे ग्रामीणों में वन विभाग के प्रति रोष है. हालांकि वन विभाग द्वारा हाथियों से सुरक्षा के लिए सर्च लाइट, पटाखा आदि सामान का वितरण किया जाता रहा है, लेकिन यह नाकाफी है. हालांकि वन विभाग के अधिकारी हाथी भगाओ दल द्वारा हाथियों को खदेड़ने का प्रयास करते हैं, लेकिन हाथी एक जगह के बाद दूसरे स्थान में चले जाते है और पुनः हाथियों का झुंड गांव की ओर आ जाता है.
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पूरबडीह के जंगल में 1996-97 में दो हाथियों की मौत विद्युत करंट से हो गयी थी. वहीं हारुबेड़ा में भी एक हाथी की मौत करंट से हुई थी. इसके अलावा इस क्षेत्र में कई हाथियों की मौत हो चुकी है. इन घटनाओं के बाद से भी गजराज उग्र हो गये थे और लोगों पर हमला शुरु कर दिया था. इसके बाद लगातार हाथी कई लोगों की जान ले चुकी है.
हाथियों द्वारा मारे जाने के बाद वन विभाग द्वारा मृतक के परिजन को चार लाख रुपया मुआवजा दिया जाता है, जबकि घायलों को एक से दो लाख रुपया दिया जाता है. इसके अलावा फसल और मकान के क्षति होने पर भी मुआवजा देने का प्रावधान है. इस तरह वन विभाग करोड़ों रुपये का भुगतान मुआवजा के तौर पर कर चुका है. रामगढ़ डीएफओ वेदप्रकाश कंबोज ने पूछे जाने पर बताया कि जिस क्षेत्र में हाथियों का झुंड रहता है. उसके आस-पास के गांवों में सुरक्षा के दृष्टिकोण से एनाउंसमेंट कराया जाता है कि लोग शाम होने के बाद अकेले अपने घर से ना निकलें. साथ ही हमेशा क्यूआरटी (क्विक रेस्पॉन्स टीम) को तैयार रखा जाता है, ताकि कहीं से भी सूचना मिलने पर तुरंत टीम को घटनास्थल भेज कर हाथियों को सुरक्षित स्थान भेजा जा सकें.
रिपोर्ट: सुरेंद्र कुमार/शंकर पोद्दार