धनबाद. समझदार, भरोसेमंद और इंसानों के मददगार जानवरों में हाथी भी शुमार हैं. प्राचीन काल से ही मानव के विकास में हाथियों का भी योगदान रहा है. चाहे युद्ध हो या कोई भारी काम, इंसानों ने उनसे काफी मदद ली है. इंसानों और हाथियों के संबंधों पर काफी पहले एक फिल्म भी आयी थी ”हाथी मेरे साथी”. बदलते वक्त के साथ इंसानों की फितरत भी बदली. अब इंसान अपने ऐसे अहम बेजुबान साथी का घर जंगल उजाड़ने में तुले हैं.
ऐसे में हाथी भी आखिर अब तक साथी रह पायेंगे. विवश होकर उन्हें भी भोजन-पानी की तलाश में इंसानी बस्तियों का रुख करना पड़ रहा है. धनबाद जिले की बात करें तो यहां ग्रामीणों व हाथियों की सुरक्षा को लेकर साल 2013-14 एलिफेंट कॉरिडोर योजना बनायी गयी थी. लेकिन आज तक यह योजना फाइलों में ही दबी है. स्थित यह है कि भोजन की तलाश में जिले के टुंडी, पूर्वी टुंडी सहित अन्य जगहों पर हर साल हाथियों का झुंड प्रवेश करता है.
हाथी गांवों में घुस जाते हैं और खेत-खलिहान के साथ जान माल का भी नुकसान करते हैं. वर्तमान में टुंडी में एक बार फिर हाथियों का झुंड आ धमका है और उत्पात मचा रहा है. हाथियों के आने से ग्रामीण असुरक्षित हैं. लेकिन सरकार व जिला प्रशासन कुछ नहीं कर रहा है.
गांवों में हाथियों का प्रवेश रोकने व हाथी को सुरक्षित रास्ता देने के लिए साल 2013-14 में तीन हजार हेक्टेयर में फैले टुंडी पहाड़ में हाथियों के लिए कॉरिडोर बनाने की योजना थी. धनबाद वन प्रमंडल द्वारा बनायी गयी, इस योजना के लिए नौ करोड़ 55 लाख रुपए का बजट भी आवंटित हुआ था. वन विभाग मुख्यालय ने रिपोर्ट सरकार को भेजी थी, लेकिन आज-तक इस पर फैसला नहीं हुआ. योजना फाइलों में ही दबकर रह गयी है.
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ की ओर से जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि धरती पर हाथियों का अस्तित्व बनाये रखने के लिए उनके प्राकृतिक आवास और कॉरिडोर को बचाना बेहद जरूरी है. एक जंगल से दूसरे जंगल तक हाथियों के सुरक्षित आने-जाने के लिए हाथी कॉरिडोर बनाया जाता है ताकि जान-माल की सुरक्षा हो सके. देशभर के 22 राज्यों में 27 हाथी कॉरिडोर हैं, लेकिन झारखंड में एक भी हाथी कॉरिडोर नहीं है. करीब 10 साल पहले पारसनाथ पहाड़ और इससे सटे वन क्षेत्र को हाथियों का कॉरिडोर चिह्नित कर राज्य मुख्यालय को प्रस्ताव भेजा गया था. उस पर आज तक अमल नहीं हुआ.