गढ़वा : लॉकडाउन से लोग भले परेशान हुए हों, सरकारों को लोगों की भीड़ संभालने में लाख मुश्किलें आयी हों, लेकिन पर्यावरण के लिए यह किसी वरदान से कम नहीं था. पलामू प्रमंडल के गढ़वा जिला में नदी, जंगल और वन्य प्राणियों को इसका सबसे ज्यादा लाभ मिला. नदियां जीवंत हुई हैं. पिछले साल तक जो नदियां गर्मी की शुरुआत में ही सूख जाती थीं, उन नदियों में इस वर्ष अब भरपूर पानी है. वह भी स्वच्छ पानी.
गढ़वा जिले की पहचान नदी, जंगल और वन्य प्राणियों से रही है. कालांतर में बढ़े हुए प्रदूषण और इंसान की बढ़ती आबादी ने प्रकृति को काफी नुकसान पहुंचाया. प्रकृति के विरुद्ध मानव की गतिविधयों ने जिले की पहचान ही बदल दी. दुनिया के लिए सबसे घातक विषाणु कोरोना के विष जब दुनिया के अलग-अलग देशों में फैले, तो लोगों ने अपने दरवाजे बंद कर लिये.
कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए और इंसान को इस विषाणु से सुरक्षित बचाने के लिए सरकारों ने अपने-अपने देश में लॉकडाउन की घोषणा कर दी. भारत ने इस खतरे को भांपते हुए सबसे पहले देश में लॉकडाउन की घोषणा कर दी. इस दौरान लोग बेहद परेशान रहे, लेकिन प्रकृति में आश्चर्यजनक बदलाव देखने को मिले. इसके बाद लोगों को विश्वास हो गया है कि इंसान अपने आचरण में बदलाव कर ले, तो प्रकृति को नष्ट होने से बचाया जा सकता है.
लॉकडाउन के दौरान देखा गया कि प्राय: गर्मी में सूख जाने वाली नदियों का अस्तित्व भी बरकरार रहा. सोन, कोयल जैसी बड़ी नदी ही नहीं बल्कि दानरो, सरस्वतिया, बांकी, युरिया, खजुरिया, पंडा, बंबा जैसी छोटी-छोटी नदियों में अब भी पानी देखने को मिलती है. इन नदियों का जल आज स्वच्छ भी है और नदी की जलधारा में बहाव भी है.
इंसानी गतिविधयां कम हुईं, तो पेड़ की अंधाधुंध कटाई भी थम-सी गयी. नतीजा यह हुआ कि जंगलों में हरियाली दिख रही है. इतना ही नहीं, जंगलों में तेंदुआ, लकड़बग्घा, हुड़ार, जंगली सुअर, हिरण, खरगोश जैसे जानवर अक्सर घूमते पाये जा रहे हैं. कुछ दिन पहले तक लोगों ने यह मान लिया था कि अब ये जानवर जंगलों से समाप्त हो गये हैं. लेकिन, लॉकडाउन के दौरान जब इन्हें देखा गया, तो पशु प्रेमी बेहद प्रसन्न हुए.
इसी तरह, कई दुर्लभ पक्षियों को भी गांवों के घर, आंगन व तालाबों में इस साल देखा गया है. प्रकृति और जीव-जंतुओं की बात छोड़ भी दें, तो इस बार बेतहाशा पड़ने वाली गर्मी से लोगों को बड़ी राहत मिली है. लोगों को इस साल पिछले कई वर्षों के बाद झुलसा देने वाली गर्मी और लू का अहसास नहीं हुआ.
इससे लोगों को विश्वास हो रहा है कि यदि हम अपने आचरण को प्रकृति के अनुकूल बना लेते हैं, तो हम कई प्राकृतिक आपदाओं से छुटकारा पाने के साथ-साथ नदी, झरने के कलकल एवं वन, वन्य प्राणी, सुंदर पक्षियों के कलरव का आनंद फिर से ले सकते हैं.