बजट में उत्कृष्ट वित्तीय संयम
वित्त मंत्री सीतारमण ने संसद को यह याद दिलाया कि वित्तीय घाटे के सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) के छह प्रतिशत रखने के लक्ष्य को चालू वित्त वर्ष में हासिल कर लिया गया है. उल्लेखनीय है कि इस लक्ष्य से बेहतर उपलब्धि रही है और वित्तीय घाटा 5.8 प्रतिशत के स्तर पर है. वित्तीय सादगी के लिए यह एक अच्छी खबर है.
बौराष्ट्रीय आम चुनाव जल्दी ही होने वाले हैं, इसलिए इस बार का बजट लेखानुदान के रूप में पारित होना है. इसका अर्थ यह है कि इस अंतरिम बजट से किसी विशेष पहल की अपेक्षा नहीं थी और ऐसा किया भी नहीं जा सकता था. फिर भी ऐसे अवसर पर सत्तारूढ़ दल की ऐसी इच्छा का होना स्वाभाविक है कि वह कुछ वित्तीय ईंधन उपलब्ध कराए, जिससे चुनाव के समय अर्थव्यवस्था में गति आए. भारत के अपने चुनावी इतिहास में पहले ऐसे कुछ अंतरिम बजट प्रस्तुत किये जा चुके हैं. अमेरिका के एक राष्ट्रपति की प्रसिद्ध उक्ति है- ”इट्स द इकोनॉमी, स्टूपिड!’ (यह अर्थव्यवस्था है, मूढ़!). इस उक्ति का तात्पर्य यह है कि मतदाता हमेशा आर्थिक हित को दिमाग में रख कर मतदान करता है. यह बात भारतीय मतदाता पर भले ही पूरी तरह से लागू नहीं होती है, फिर भी चुनाव के समय सरकार की मंशा हमेशा ही वित्तीय विस्तार के लिए आवंटन की होती है. एक फरवरी को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा लोकसभा में प्रस्तुत बजट प्रस्ताव के बारे में सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि इसमें वित्तीय संयम प्रदर्शित किया गया है. इस बजट में जो खर्च प्रस्तावित किया गया है, वह वर्तमान वित्त वर्ष 2023-24 से लगभग छह प्रतिशत ही अधिक है. इस प्रस्तावित खर्च में राजस्व खर्च जैसा गैर पूंजी व्यय चालू वित्त वर्ष की तुलना में मुश्किल से 3.2 प्रतिशत अधिक है. यह तथाकथित ‘गैर उत्पादक’ या सामान्य खर्च है और इसकी बढ़ोतरी में बड़ी कटौती की गयी है. दो साल पहले राजस्व खर्च की वृद्धि दर आठ प्रतिशत रही थी. यहां तक कि बजट प्रस्ताव में पूंजी व्यय में आगामी वित्त वर्ष (2024-25) के लिए वृद्धि 17 प्रतिशत निर्धारित की गयी है, जो बीते तीन साल से 31 प्रतिशत की दर से हो रही बढ़ोतरी से बहुत कम है. वित्त मंत्री सीतारमण ने संसद को यह याद दिलाया कि वित्तीय घाटे के सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) के छह प्रतिशत रखने के लक्ष्य को चालू वित्त वर्ष में हासिल कर लिया गया है. उल्लेखनीय है कि इस लक्ष्य से बेहतर उपलब्धि रही है और वित्तीय घाटा 5.8 प्रतिशत के स्तर पर है. वित्तीय सादगी के लिए यह एक अच्छी खबर है, हालांकि वित्तीय घाटा अनुपात के कम रहने की सफलता में विभाजक यानी नॉमिनल जीडीपी की वृद्धि दर का केवल 8.6 प्रतिशत रहना भी एक कारक है, जो अपेक्षा से कम रहा है. बजट में आगामी वित्त वर्ष के लिए वित्तीय घाटे का लक्ष्य 5.1 प्रतिशत रखा गया, हालांकि विभाजक यानी नॉमिनल जीडीपी की वृद्धि दर 10.5 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है. वित्त मंत्री ने यह भी संकेत दिया है कि साल 2026 के वित्त वर्ष में वित्तीय घाटे का लक्ष्य 4.5 प्रतिशत से कम रहेगा. यह बहुत शानदार है. इससे पता चलता है कि इस अंतरिम बजट की मुख्य विशेषता वित्तीय संयम है.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का किसी वित्तीय जोखिम के चक्कर में नहीं पड़ने के इस तथ्य के दो अर्थ हो सकते हैं और दोनों अर्थ सही हो सकते हैं. पहली बात यह है कि सत्तारूढ़ दल को अपनी चुनावी संभावनाओं को बेहतर करने के लिए वित्तीय आकर्षण देने, विशेष रूप से बजट के माध्यम से, की आवश्यकता नहीं है. याद करें, डॉ मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली पहली यूपीए सरकार के समय लोकसभा चुनाव से लगभग डेढ़ साल पहले बड़े पैमाने पर कर्ज माफी की घोषणा की गयी थी. दूसरी बात यह है कि सरकार का अब मानना है कि आर्थिक वृद्धि वित्तीय रूप से हमेशा के लिए सरकारी खजाने से की जाने वाली पूंजी व्यय पर निर्भर नहीं रह सकती है. ऐसा होता रहा, तो राष्ट्रीय कर्ज पर इसके नकारात्मक प्रभाव हो सकते हैं. हाल ही में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने चेतावनी दी है कि भारत का कर्ज जीडीपी के अनुपात में सौ प्रतिशत के स्तर पर जा सकता है. स्वाभाविक रूप से सरकार ने इस गंभीर भविष्यवाणी को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि कोरोना महामारी के दौर के बाद कर्ज का अनुपात असल में घट कर 88 से 82 प्रतिशत के स्तर पर आ गया है. सरकार ने यह भी कहा कि इस कर्ज का बड़ा हिस्सा घरेलू मुद्रा में है, न कि डॉलर में, लेकिन यह समझा जाना चाहिए कि कर्ज अनुपात का 82 प्रतिशत रहना भी बहुत उच्च स्तर है और इससे निजी निवेश हतोत्साहित हो रहा है तथा ब्याज दरें बहुत अधिक बनी हुई हैं. इस कर्ज का ब्याज भरने में ही कर राजस्व का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा खर्च हो जाता है. इसलिए पूंजी का समेकन आवश्यक है. वित्तीय संयम की जरूरत है क्योंकि अधिक घाटा से ब्याज का बोझ बढ़ता है तथा मुद्रास्फीति बढ़ती है.
अगले साल के लिए कर्ज लेने की आवश्यकता पिछले साल से थोड़ा कम है. इसकी एक वजह यह है कि कुछ बॉन्ड को भुनाना अभी के लिए स्थगित कर दिया गया है, लेकिन इससे बॉन्ड बाजार में कुछ खुशी हुई है. आयकर के स्तरों में बदलाव नहीं करना सराहनीय है क्योंकि भारत की आयकर संरचना बाकी देशों से अलग है. हम सालाना आमदनी के 7.5 लाख रुपये से अधिक होने पर कर लगाना शुरू करते हैं, जो देश की प्रति व्यक्ति आय से लगभग तीन गुना अधिक है. छूट की सीमा बहुत अधिक है और जल्दी ही उच्च स्तर की दर भी लागू होने लगती है. वित्त मंत्री ने बजट भाषण में अपनी सरकार की दस वर्षों की मुख्य उपलब्धियों, इंफ्रास्ट्रक्चर में बढ़ोतरी, औपचारिक क्षेत्र का विस्तार, उच्च शिक्षा में नामांकन बढ़ना, नये संस्थान बनाना आदि, को रेखांकित किया. ये उपलब्धियां महत्वपूर्ण हैं. बजट से पहले प्रकाशित एक संक्षिप्त रिपोर्ट में विशेष रूप से बताया गया है कि अर्थव्यवस्था कैसे लगातार मजबूत हो रही है. अगर भू-राजनीतिक अनिश्चितताओं और मंदी की आशंकाओं से भरे अगले साल भी वृद्धि दर सात प्रतिशत बनी रहती है, तो यह बहुत शानदार उपलब्धि होगी. दीर्घकालिक निरंतर वृद्धि के लिए उपभोग, निजी निवेश और निर्यात में बेहतरी जरूरी है. इसके लिए रोजगार की स्थिति ठोस होना, निवेश के माहौल का सकारात्मक रहना तथा भारत की प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता का बढ़ना आवश्यक है ताकि हम निर्यात बाजार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ा सकें. मुख्य रूप से निजी उद्यमिता से ही उच्च वृद्धि को गति मिल सकती है, जो इसके बदले में अच्छा कर राजस्व पैदा कर सकती है, जिसे कल्याण, स्वास्थ्य, शिक्षा, पेंशन और बुजुर्गों पर खर्च किया जा सकता है. आर्थिक नीति से सभी को बढ़ावा मिलना चाहिए, यह बजट में वित्तीय रवैये और नीतियों की निरंतरता से पूरी तरह दिखा है. उम्मीद करें कि जुलाई के बजट में बड़े सुधारों की घोषणा होगी. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)