Loading election data...

Exclusive: कई बार रणबीर से गंगूबाई के अंदाज़ में बात करने लगती हूं… जो उसे बहुत पसंद आता है- आलिया भट्ट

अभिनेत्री आलिया भट्ट की फ़िल्म गंगूबाई काठियावाड़ी 25 मार्च को सिनेमाघरों में दस्तक देने वाली है. संजय लीला भंसाली निर्देशित अपनी इस फ़िल्म को आलिया अपने अब तक के करियर की सबसे चुनौतीपूर्ण फ़िल्म करार देती हैं.

By कोरी | February 13, 2022 12:09 PM

अभिनेत्री आलिया भट्ट की बहुप्रतीक्षित फ़िल्म गंगूबाई काठियावाड़ी 25 मार्च को सिनेमाघरों में दस्तक देने वाली है. संजय लीला भंसाली निर्देशित अपनी इस फ़िल्म को आलिया अपने अब तक के करियर की सबसे चुनौतीपूर्ण फ़िल्म करार देती हैं. उनकी इस फ़िल्म, उससे जुड़ी तैयारियों और चुनौतियों पर उर्मिला कोरी से हुई बातचीत

गंगूबाई काठियावाड़ी की रिलीज का यह लंबा इंतजार आपके लिए कितना मुश्किल था?

मुश्किल तो था क्यूंकि जब हम फिल्म बनाते हैं तो हमारी एनर्जी और अपेक्षाएं बहुत बड़ी होती है. आपको लगता है कि फ़िल्म बन गयी बस अब इसे दर्शकों को दिखा दो. आपके अंदर अपने उस प्रोजेक्ट को दिखाने का एक अलग ही उत्साह होता है. जब महामारी शुरू हुई थी तो लगा था कि बस फिल्म किसी तरह पूरी हो जाए. हमारी फ़िल्म का सेट सेट पूरे २ साल तक खड़ा था. मुझे लगता है कि पहला सेट होगा जो इतने लम्बे समय तक खड़ा था लेकिन आखिरकार हमने फ़िल्म की शूटिंग पूरी कर ली. फ़िल्म रिलीज कब होगी ये थिएटर पर निर्भर करता है. इसलिए हमारी रिलीज डेट्स कई बार शिफ्ट हुई. पहले २०२१ के जुलाई की डेट्स थी फिर जनवरी २०२२ फिर अब फ़रवरी. आखिरकार फ़रवरी में हमारी फिल्म रिलीज हो रही है. हम बर्लिन फिल्म फेस्टिवल्स जा रहे हैं. जैसे लोग हमेशा कहते हैं कि जो जब होना है तब होगा शायद गंगूबाई काठियावाड़ी का वक़्त अभी ही था.

आपने हुसैन जैदी की किताब पढ़ी है?

मैंने किताब नहीं पढ़ी सिर्फ गंगूबाई पर आधारित किताब के चैप्टर को पढ़ा था वो भी फ़िल्म की स्क्रिप्ट को पढ़ने के बाद. मैं हुसैन जैदी से मिली तो मैं गंगूबाई को औऱ करीब से जान पायी क्योंकि वो उनसे मिले थे. वो कैसे बात करती थीं. सभी में वो इतनी पॉपुलर क्यों थी ये सब हमें मालूम हुआ. मैं कमाठीपुरा नहीं गयी क्योंकि संजय सर ने कहा ज़रूरत नहीं है. संजय सर ने अपने बचपन में कमाठीपुरा देखा है क्योंकि उनका घर उससे थोड़ा पास में था. वो बताते थे वहां एक कैफे था.

फ़िल्म में कितनी सिनेमैटिक लिबर्टी ली गयी है और ,फ़िल्म को लेकर लगातार कई लोगों ने नारागजी भी जाहिर कर रहे हैं?

लोग आजकल किसी भी बात पर नारागजी और केस कर दे रहे हैं. जहां तक बात सिनेमेटिक लिबर्टी की है. गंगूबाई के बारे में हमें जानकारी है कि उसे मुम्बई लाया गया. कमाठीपुरा में वो घरवाली बन गयी उसके बाद और बड़ी घरवाली. वो करीम लाला से मिली. कमाठीपुरा की प्रेसिडेंट बन गयी. आज़ाद मैदान में भाषण दिया. नेहरू जी से मिली है. ये सब हमने भी फ़िल्म में दिखाया है लेकिन ये सब कैसे हुआ उसके लिए थोड़ी सिनेमैटिक लिबर्टी ली गयी है.

इस फ़िल्म में आपका लुक काफी अलग है आवाज़ भी भारी है क्या तैयारियां रही?

लुक का क्रेडिट मैं नहीं लूंगी क्यूंकि वो टीम थी जो डिजाइन करती है. प्रीति नाम है उन्होंने भंसाली सर के साथ मिलकर विजन बनाया कि ये कर सकते हैं. मेकअप में ये इस्तेमाल कर सकते हैं. सर और प्रीति के साथ मेरी जो मेकअप टीम हैं राधिका और पुनीत भी शामिल थे. मेरे हर मेकअप के बाद सर आते थे और ज़रूर टिप्स देते थे ये ऐसा कर दो. वो वैसा कर दो. उसके बाद वो बोलते थे कि जमकर खाना खाओ. मैंने मस्त होकर सबकुछ खाया है. गुजराती भाषा का डायलेक्ट सीखा. वो लोग श को स बोलते हैं. सबसे मुश्किल थी कि मेरी आवाज़ को भारी रखना. पूरे दिन की शूटिंग के दौरान उस एनर्जी के साथ बोलना आसान नहीं था. वैसे असल में शूटिंग के दौरान किरदार बनते हैं. सीन करते हुए समझ आता है कि यहाँ पर गाली दे सकते हैं या कुछ और बोलना ठीक है. ये जो उलटा वाला नमस्ते है. वो सेट पर अचानक से हुआ. जब पीछे से शॉट हुआ. मैंने कहा कि सर ये रखते हैं. भंसाली सर को भी ये पसंद आया और वह गंगू का सिग्नेचर बन गया.

70 के दशक की यह कहानी है क्या किसी अभिनेत्री या फ़िल्म को फॉलो किया?

संजय सर चाहते थे कि मैं मीना कुमारीजी से प्रेरणा लूँ. उनकी आंखों में दर्द और चेहरे पर एक रौब था. जो मैं अपने किरदार में ला सकूं. शबाना आज़मी जी की मंडी देखी. वहीदा जी के भी कई गाने देखती हूं.

गंगूबाई की कहानी में आपके लिए सबसे ज़्यादा क्या अपीलिंग था?

गंगूबाई की कहानी जब मैंने पढ़ी. मुझे नहीं पता था कि ऐसी भी एक औरत थी. जो एक वेश्या थी. एक बुरी दुनिया से थी. बुरी दुनिया से आकर भी उन्होंने बहुत अच्छा काम किया है. उन्होंने कमाठीपुरा की औरतों के लिए जो किया. जो बच्चों के लिए उनकी लड़ाई थी. वो मैं बहुत ही खास मानती हूँ. ये तो एक कहानी है. ऐसी कई कहानियां हैं जिसके बारे में हमें पता नहीं है. जिसके बारे में लिखा भी नहीं गया है तो जब मैं ये सब सुनती हूँ तो मैं प्रभावित होती हूँ. मुझे गर्व का एहसास होता है.

गंगूबाई के किरदार की चुनौतियां क्या रही?

उनकी दुनिया से मेरा कभी एक्सपोज़र नहीं हुआ था. ये दुनिया पूरी तरह से मेरे लिए अलग थी. मैं ऐसे बात नहीं करती हूँ. मेरे अंदर तो गंगूबाई जैसा आत्मविश्वास है ही नहीं. ऐसा कभी नहीं हुआ कि एकदम नीचे गिरकर फिर मुझे उठना पड़ा. समाज के साथ लड़ना पड़ा. ये नौबत ही नहीं आयी मेरी ज़िन्दगी में. इतना सबकुछ सोचना पड़ा. मेरे लिए वो चुनौतीपूर्ण था.

हाइवे, उड़ता पंजाब और राजी के बाद एक एक्टर के तौर पर गंगूबाई से क्या उम्मीदें हैं।नेशनल अवार्ड का इंतज़ार है?

सब सशक्त किरदार थे. जिनको परफॉर्म करना मुश्किल था. सभी मास एंटरटेनर भी थे. मैं चाहूंगी ये फिल्म बॉक्स ऑफिस पर अच्छे नम्बर्स लाए. ये फ्रंट फुट फिल्म है. मैं गंगूबाई की बॉक्स आफिस पर कामयाबी चाहती हूं. दर्शकों का प्यार हर अवार्ड से बढ़कर है.मैं नेशनल अवार्ड सोचकर फ़िल्म नहीं करती हूं वरना.

भंसाली सर टास्क मास्टर माने जाते हैं कई बार उनकी फिल्मों के सेटों पर अभिनेत्रियों के रोने की बात भी सामने आयी है आपका अनुभव कैसा था?

मैं नौ साल की उम्र से उनके साथ काम करना चाहती थी. इस फ़िल्म से सालों की ख्वाइश की पूरी हो गयी. एक एक्टर के तौर पर इस फिल्म ने मुझे बहुत कुछ सिखाया है. जो मैं ठीक तरह से बयान भी ना कर सकूंगी. मेरे दिमाग में सबकुछ चल रहा है. भंसाली सर आपके अंदर एक मैजिकल एनर्जी लाते हैं. वोआपको फ़ोर्स करते हैं कि आप उस एनर्जी तक पहुंचकर डिलीवर करो. वो करते पिक्चर के लिए हैं लेकिन अंत में जो बदलाव एक्टर में आता है वो लाइफटाइम वाला बदलाव होता है. मुझे लगता है कि हर एक्टर इस बात को कहेगा कि उनके साथ काम करना मतलब ये इस तरह से है कि अब आप कुछ भी कर सकते हो. आपको एक एक्टर के तौर पर एक अलग ही सशक्तिकरण का एहसास होता है.

यह फ़िल्म महिलाओं के सम्मान और हक की बात करती हैं,महिलाओं से जुड़े और कौन से मुद्दे हैं जिनपर आपको लगता है कि बात होनी चाहिए?

इस फिल्म ने महिला सशक्तिकरण के इतने मुद्दों को छुआ है कि आप फिल्म देखोगे तो आपको समझ आ जायेगा. दुख की बात है कि हम १९६० में वही बात कर रहे थे और आज भी हम वही बात कर रहे हैं हालाँकि अभी बहुत बदलाव हो गए हैं लेकिन बातचीत ज़ारी रखनी होगी ताकि एक दिन ऐसा आये कि महिला सशक्तिकरण पर हमें बात ही ना करनी पड़ी.

गंगूबाई तेलगु में भी रिलीज हो रही है साउथ इंडस्ट्री का बॉलीवुड पर जो दबदबा बढ़ता जा रहा है उस पर आपकी क्या सोच है?

हम इंडियन फिल्म इंडस्ट्री है. हर भाषा में हमको सफल होना चाहिए. जितने भी एक्टर्स एक साथ मिलकर काम करेंगे हमारी इंडस्ट्री उतनी ही आगे बढ़ेगी. हम दुनिया कि सबसे बड़ी इंडस्ट्री बन सकते हैं. हमारी इतनी भाषा है. हमारी इतनी स्टोरी टेलर्स हैं. हमें एकजुट होना होगा. मैं खतरा शब्द को सही नहीं मानती हूँ. हमारी आबादी 100 करोड़ से ऊपर है. पूरी दुनिया में भारतीय रहते हैं. हमको उस मुकाम पर आना चाहिए कि हॉलीवुड की फिल्में हमसे डरे. हॉलीवुड वाले डरने चाहिए कि अरे इनकी पिक्चर रिलीज हो रही है. हमें रुकना चाहिए.

क्या हिंदी फिल्में फिर से दर्शकों को पहली पसंद बन पाएंगी?

हां क्यों नहीं हिंदी फिल्मों को आने तो दीजिए. दो साल में हमारी ज़्यादा फिल्में आयी नहीं है. अभी फिल्मों की रिलीज शुरू हुई है.

आपने बहुत कम उम्र में ही नाम,पैसा और शोहरत सब पा लिया है अब ज़िन्दगी से क्या चाहत है?

मुझे मेहनत करना है और ज़िन्दगी को बैलेंस में भी बिताना है. मुझे खुश रहना है ऐसी फिल्मे करूँ जहाँ अपनी क्रिएटिविटी को संतुष्ट कर सकूँ. उनलोगों के साथ काम करना है जो मुझे प्रेरित करते हैं. अपने परिवार के साथ समय बिताना चाहती हूँ. मुझे छुट्टियां भी माननी है.

आप प्रतिस्पर्धा में कितना यकीन करती हैं?

मुझे लगता है मैं उन सबसे निकल गयी हूं. मुझे नहीं लगता कि क्रिएटिविटी में कुछ कंपीटिशन होता है. आपको अच्छी फिल्म बनानी है और दूसरी फिल्म को सपोर्ट करना है. हम जितनी सफल फिल्में बनाएंगे हमारी इंडस्ट्री और पावरफुल होती जाएगी. हर अच्छी फिल्म चलनी चाहिए. मेरी यही ख्वाइश है.

रणबीर कपूर आपकी शादी हो गयी है ऐसी खबरें आ रही हैं?

आपको लगता है कि मेरी शादी हो जाती और लोगों को पता नहीं चलता. मैं तो दांत के डॉक्टर के पास भी गयी तो पूरी मीडिया को मालूम पड़ जाता है. रणबीर और मेरी शादी जब भी होगी सभी हो मालूम पड़ जाएगा. वैसे रणबीर और मैं एक दूसरे के साथ बहुत खुश हैं. कभी कभी गंगूबाई वाले अवतार में रणबीर के सामने भी आ जाती हूं. जो उसे बहुत पसंद आता है.

Next Article

Exit mobile version