निर्देशक राजकुमार संतोषी की फिल्म गांधी गोडसे एक युद्ध इन-दिनों सिनेमाघरों में प्रदर्शन कर रही है. फिल्म में गोडसे की विवादित भूमिका में अभिनेता चिन्मय मंडलेकर नजर आ रहे हैं. वह गोडसे को नायक या खलनायक ना करार देकर इंसान मानते हैं. जिसमे खामियां थी, तो खूबियां भी थी. उर्मिला कोरी से हुई बातचीत के प्रमुख अंश….
गांधी गोडसे एक युद्ध में आपके लिए सबसे ज्यादा क्या अपीलिंग था?
इस फिल्म में सबसे ज्यादा राजकुमार संतोषी का नाम मुझे प्रभावित कर गया था. घायल और घातक फ़िल्में थिएटर में देखकर बड़े हुए हैं, जब बड़े हुए एक्टिंग करने लगे, जिन निर्देशकों के साथ काम करने की ख्वाहिश थी, उसमें एक नाम राजकुमार संतोषी का था. ऐसा डायरेक्टर जब आपको फ़ोन करके बोलता है कि फिल्म करनी है. उसके बाद कौन कुछ और सोचता है. मैं उनसे मिलने पहुंच गया और उन्होंने मुझे इस फिल्म का विषय बताया, जो मुझे बहुत पसंद आया.
क्या कश्मीर फाइल्स में आपके किरदार को देखने के बाद राजकुमार संतोषी ने आपको फिल्म ऑफर की थी?
मैं बताना चाहूंगा कि मैंने यह फिल्म कश्मीर फाइल्स से पहले साइन की थी और इसकी शूटिंग भी पहले शुरू हुई थी. इस फिल्म के एक शेड्यूल की शूटिंग कश्मीर फाइल्स से पहले हुई थी और एक कश्मीर फाइल्स के बाद में हुई थी. मैं कह सकता हूं कि दोनों लगभग एक ही समय पर शूट हुए थे.
गोडसे की छवि हमेशा खलनायक की रही है, ये फिल्म एक अलग नज़रिया देती है लेकिन आपकी क्या सोच गोडसे को लेकर रही है ?
अगर आप महाराष्ट्र से हैं, तो पिछले कुछ समय से मराठी नाटक मी गोडसे बोलतो ने एक अलग नज़रिया लोगों को गोडसे को लेकर दिया है . गोडसे ने कोर्ट के सामने कुछ बातें रखी थी. जिसे कभी भी पब्लिक डोमेन में बाहर नहीं लाया गया था. उन्होंने वैसा क्यों किया था. उन्होंने कोर्ट में इस पर पूरा बयान दिया था, जिसमे उन्होने साफ तौर पर कहा था कि एक समय था. जब मैं गांधीजी का फॉलोवर था उनको बहुत मानता था, लेकिन विभाजन ने पूरी सोच को बदल दिया. मुझे लगता है कि गोडसे एक भ्रमित युवा था. उन्होंने जो भी किया. उसका समर्थन मैं कभी नहीं करूंगा. वो कभी नहीं होना चाहिए, लेकिन उनका गुस्सा क्या जायज नहीं था. देश के टुकड़े तो हुए थे.. देश का बंटवारा उस वक़्त के लोगों के लिए आसान नहीं था. कल को मुझे कोई बोल दे कि अंधेरी मुंबई का हिस्सा नहीं है तो मेरे लिए यह समझना बहुत मुश्किल होगा.भ्रमित युवा हर दौर में होता है. नाथूराम गोडसे एक कदम आगे जाकर उस कदम को उठाया जो उन्हें कभी नहीं उठाना था.उस कदम ने हमारे देश के इतिहास का रुख बदल दिया, लेकिन वो इतना ही है. जो हम उसे शैतान बताते हैं. वो हमें नहीं करना चाहिए. किसी इंसान को विलेन और एकदम हीरो बना देने से मुझे परेशानी है.ये गांधीजी के साथ भी होता है कुछ लोग के लिए गांधी हीरो हैं. कुछ लोग के लिए विलेन. मतलब आप या तो भगवान बना रहे हो या शैतान. आप उसे इंसान के तौर पर नहीं दिखा रहे हो. आप ये मानने को तैयार नहीं हैं कि गांधीजी कुछ कुछ मामलों में गलत हो सकते हैं और नाथूराम गोडसे कुछ मामलों में सही.जो हर इंसान होता है. हमारा इतिहास काफी उतार -चढ़ाव भरा रहा है. ऐसे इतिहास में हम नायक खलनायक नहीं ढूंढ सकते हैं. अगर आप शेरशाह फिल्म बना रहे हैं, तो आपको पता होता है कि वो नायक है. उसमें कोई ग्रे एरिया नहीं है ये फिल्म विचारधारा पर है तो इसमें बहुत सारा ग्रे एरिया है.
अपने किरदार के लिए आपका क्या होमवर्क रहा?
इस फिल्म में मैंने एक पैसे का भी मेकअप नहीं किया था. इस फिल्म में हमारे मेकअप आर्टिस्ट विक्रम गायकवाड़ हैं. यह उनका कमाल है. उन्होंने मुझे देखा और कहा कि सिर्फ इसके बाल काटो और कुछ मत करो,तो मैं तो सेट पर जाता था और बस कपड़े पहनने के साथ ही शूट के लिए रेडी हो जाता था और वही गांधीजी मेकअप करवाते रहते थे क्योंकि उनका स्किन धोती पहनने की वजह से ज्यादा दिखता था इसलिए उन्हें पूरे शरीर पर मेकअप करवाने की जरूरत थी. मैं पूरी तरह से स्क्रिप्ट पर निर्भर था. मैंने कुछ किताबें और गोडसे का कोर्ट में दिए गए बयान को भी पढ़ा.
इस फिल्म में आपके लिए सबसे मुश्किल दृश्य कौन सा था?
बहुत हैं, क्योंकि फिल्म में बहुत वाद -विवाद हैं. एक सीन में गांधीजी और मेरे बीच में बहुत लम्बा चौड़ा विवाद होता है. फिल्म में पोस्टर भी उसी दृश्य के हैं. उस दृश्य के बाद नाथूराम गोडसे को लगता है कि क्या ये आदमी सही बोल रहा हैयह हिस्ट्रॉकल फैंटिज्म पर यह आधारित फिल्म है. वो एक ही बार मिले थे, जब उन्होंने गोली मार दी थी, लेकिन फिल्म में वह कई बार मिलते हैं,लेकिन फिल्म के संवाद उन्ही के हैं, ये लेखक के लिखे हुए नहीं हैं. जो उन्होंने कभी ना कभी अपनी ज़िन्दगी में कहे हैं तो हमें पूरी तरह से उसे आत्मसात करके बोलना था.
फिल्म को लेकर विवाद पर आपका क्या कहना है?
विवाद हो गया तो हो गया. वो हमारे हाथ में नहीं है. आजकल तो हर चीज में विवाद शामिल हो जाता है.
आपने हिंदी फिल्मों से अपनी शुरूआत की थी फिर क्यों आपने हिंदी फिल्मो से बीच में दूरी बना ली थी ?
मैंने अपनी पहली हिंदी फिल्म 2010 में तेरे बिन लादेन की थी. यह एक कॉमिक फिल्म थी. उसके बाद संघाई और भावेश जोशी जैसी फिल्में की, लेकिन मुझे एहसास हुआ कि लोग मुझे पुलिस वाले के रोल ही ऑफर कर रहे हैं. उसके बाद मुझे रुकना पड़ा क्योंकि मुझे टाइपकास्ट नहीं होना था. मेरे लिए अच्छी बात ये थी कि मराठी में मुझे अच्छे और अलग-अलग ऑफर मिल रहे थे. अभी का समय अच्छा है. अभी जो अपना काम जानता है. उसे अलग-अलग काम मिलेगा.
आप शिवाजी की भूमिका के लिए काफी सराहे जाते हैं. अक्षय कुमार जल्द ही शिवाजी की भूमिका में नजर आनेवाले हैं.
मैं उन्हें शुभकामनाएं देना चाहूंगा. वैसे हम शिवाजी के ऊपर आठ फिल्मों की सीरीज बना रहे हैं. 4 बन चुके हैं. पांचवी की शूटिंग कर रहे हैं.
ऐतिहासिक किरदारों को निभाते हुए लुक को कितना महत्वपूर्ण आप मानते हैं?
बहुत ज्यादा खासकर अगर वो चरित्र बहुत पॉपुलर हो. हमारे दिमाग में छपी होती है. जैसे गांधीजी, मुझे नहीं लगता कि देश में ऐसा कोई है, जो कहेगा कि मैंने गांधी को नहीं देखा है, क्योंकि हमारे नोट में गांधीजी है. ऐसे में आपकी पर्सनालिटी ऐसी होनी चाहिए कि आप गांधीजी में फिट दिखें. ऐसे ही महाराष्ट्र में शिवाजी की हैं. आप हर दूसरे चौराहे पर उनकी फोटो या मूर्ति मिल जाएगी. उनके लुक का पूरा वर्णन है. ऐसे में एक्टर को उसे पूरी तरह आत्मसात करना ही होगा, जो उसमें फिट नहीं बैठता है. लोग उसे स्वीकार नहीं करेंगे.
आपके आने वाले प्रोजेक्ट्स कौन से हैं?
नेटफ्लिक्स पर काला पानी आ रही है. जो एक साइंस फिक्शन सीरीज है. इसमें अभिनय में मोना सिंह और आशुतोष गोवारिकर मेरे साथ हैं. इसके अलावा एक फिल्म हैप्पी टीचर्स डे है. राधिका मदान उस फिल्म में हैं.