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पढ़ें सुशांत सिंह राजपूत से खास बातचीत, जब उन्होंने असफलता पर दिया था यह बयान…

अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत ने मुंबई में अपने घर पर फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. इस खबर ने सभी को चौंका दिया है. अपनी पिछली फिल्म छिछोरे में उन्होंने एक ऐसे पिता का किरदार अदा किया था जिसमें उनका बेटा आत्महत्या की कोशिश करता है. सुशांत फिल्म में अपने बेटे को फि‍र से जिंदगी की ओर लौटने को प्रेरित करते हैं, लेकिन आज वे खुद ही जिंदगी की जंग क्यों हार गए.

अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत ने मुंबई में अपने घर पर फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. इस खबर ने सभी को चौंका दिया है. अपनी पिछली फिल्म छिछोरे में उन्होंने एक ऐसे पिता का किरदार अदा किया था जिसमें उनका बेटा आत्महत्या की कोशिश करता है. सुशांत फिल्म में अपने बेटे को फि‍र से जिंदगी की ओर लौटने को प्रेरित करते हैं, लेकिन आज वे खुद ही जिंदगी की जंग क्यों हार गए.

जेहन में यह सवाल उठने के साथ साथ सुशांत सिंह राजपूत के साथ एक साल पहले हुई खास मुलाकात भी याद आ जाती है. एक साल पहले अभिषेक चौबे की फिल्म सोनचिड़िया की रिलीज के वक्‍त अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत से जुहू के सन एंड सैंड होटल में मुलाकात हुई थी.

सुशांत उस वक़्त पर्सनल और प्रोफेशनल दोनों ही फ्रंट पर असफलता से जूझ रहे थे. सवाल जवाब के सिलसिले के बीच जब सुशांत से उनकी फिल्मों की असफलता और निजी जिंदगी की उथल पुथल के बारे में पूछा गया तो उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा था कि ज्‍यादा से ज्‍यादा क्या होगा, मैं 12 साल पीछे चला जाऊंगा. जब मैं दिन के ढाई सौ रुपये थिएटर से कमाता था. इस मुलाकात में सुशांत की जिंदगी के कई अलग पहलुओं से भी रूबरू होने का मौका मिला था. जो सुशांत को जिंदादिल और जिंदगी के प्रति बहुत खास नजरिए को दर्शाता है. पढ़ें उर्मिला कोरी से हुई बातचीत के प्रमुख अंश

जब आपने फिल्मों में शुरुआत की थी तो आपको अगला सुपरस्टार कहा जा रहा था, चीजें कहां गलत हो गयी ?

मैं कोई हार जीत का गेम खेलने नहीं आया हूं. मैं अपनी लाइफ में बहुत मस्त हूं. मैं आपको बता नहीं सकता हूं कि मैं कितना खुश हूं. 12 साल पहले थिएटर करता था ढाई सौ रुपये मिलते थे. आठ लोग के साथ वर्सोवा में रुम शेयर करता था. उस वक्त भी मस्त था. इतना काम को लेकर खुश रहता था कि दो घंटे सोता था. ज्यादा से ज्यादा क्या होगा मैं फिर से थिएटर करने लगूंगा. वही ढाई सौ रुपये मिलेंगे लेकिन मैं उसमे भी मस्त था. मैं किसी को कुछ साबित नहीं करना चाहता हूं. सभी अपनी लाइफ में परेशान है. उन्हें मैं क्या साबित करूं. वो अपना ही देख लें तो बहुत है.

प्रतिस्पर्धा में आप यकीन नहीं करते क्या ?

प्रतिस्पर्धा में तो आप तब यकीन करेंगे जब आपको रैंक बनाना है. अगर आपके मॉम डैड सिर्फ इस बात को लेकर खुश हैं कि मेरी बेटी परीक्षा देकर आयी. कौन फर्स्ट आया कौन सेकेंड इसके बाद वो सब बातें बेमानी हो जाती हैं. अगर आप फर्स्ट सेकेंड नहीं 80 प्रतिशत भी लेकर आ गए हैं तो ये बड़ी बात है तो मैं इसी बात से खुश हूं कि मैं एक्टिंग कर रहा हूं. मान लीजिए मैं नंबर वन एक्टर बन जाऊं तो क्या होगा मेरे पास और पैसे होंगे. जिनका मैं इस्तेमाल नहीं कर पाऊंगा. यहां निकलूं तो चार लोग पहचानते हैं. मेरे लिए ये बात से ज्यादा मायने ये रखती है कि वो क्या बोलते हैं वो महत्वपूर्ण है. मैं बड़ा एक्टर बन जाऊंगा या छोटा मैं ये सब नहीं सोचता हूं कि क्योंकि मुझे परिणाम का भय ही नहीं है. मेरी लाइफ साइड बाय साइड बहुत अच्छी चल रही है.

सफलता से कार और घर महंगे और बड़े होते जाते हैं क्या आपको शौक नहीं है इनका ?

अभी आप मुझे चाकलेट देंगी तो मैं खा लूंगा, लेकिन अगर चॉकलेट की बात न हो तो थोड़े न वो मुझे चाहिए. जब मुझे बड़ी कार चाहिए होती है तो किसी दोस्त से दो दिन के लिए मांग लेता हूं. शौक पूरा हो जाता है तो वापस दे देता हूं. बस इतने में खुश हो जाता हूं.

सोनचिड़िया में आप बागी बने हैं रियल लाइफ में आप कितने बागी हैं ?

अगर मेरी कहानी पीछे देखेंगे तो मैं बागी लगूंगा इंजीनियरिंग की पढ़ाई छोड़कर फिल्मों में, लेकिन आगे में मैं ये नहीं सोचता हूं कि मुझे बागी बनना है. मैं ऐसा इंसान हूं जिसे लड़ाई झगड़े नहीं पसंद हैं. पचास बहुत अच्छी अच्छी चीजें हैं करने को. मुझे लोग पसंद हैं तो मैं क्यों झगडा करुं, लेकिन मैं देखता हूं कि बहुत बारी आपका नाम झगड़े में आ जाता है तो वो मुझे अच्छा नहीं लगता हैं, लेकिन हां जो मुझे अच्छा लगता है करना. उस पर मैं किसी से नहीं पूछता कि मुझे क्या करना चाहिए. फिर चाहे वो सही हो या गलत. सारी जिम्मेदारी मेरी होती है. सब गलत हो जाते हैं. मैं हो गया तो क्या हो जाता है. दिन में दो बार मैंने खुद को गलती करने की छूट दी है . मेरी लाइफ पूरी तरह से फिल्मों पर निर्भर नहीं है. फिल्में बस वो हिस्सा है. जो मुझे करना पसंद है क्योंकि मैं परफॉर्म करने में विश्वास करता हूं. जो मैं थिएटर में , फिल्म और टीवी में भी कर सकता हूं . अगर आप मुझे ऑप्शन देंगी तो मैं फिल्मों को चुनूंगा. फिल्म में ऑप्शन मिलेगा तो मैं ऐसी ऐसी फिल्मों को चुनूंगा जो मैं कर रहा हूं.

फिल्मों के अलावा आप और क्या करते हैं ?

फिल्म के अलावा तेरह चौदह चीजें ऐसी हैं. जो मैं करता हूं. जो मुझे पसंद है. मैं जो कुछ हूं. वो फिल्म की वजह से ही हूं. मैं इस बात को मानता हूं लेकिन वो बारह चीजें जो मैं करता हूं. उसमे में भी मैं उतना ही फोकस करता हूं. मैं उन चीजों को भी समय देता हूं और फिल्म के लिए मैं फिक्स टाइमदेता हूं. मैं अलग अलग तरह के सोशल वर्क से जुड़ा हूं. बच्चों को नासा भेजता हूं. सात परिवार को एडॉप्ट किया है. कुछ दिनों पहले ही हमने एक जान बचायी थी. एक महिला का किड़नी ट्रांसप्लाट हुआ था, लेकिन वह काम नहीं कर रहा था. उनको आठ लाख रुपये चाहिए थे और उनके पास सिर्फ छह सौ रुपये थे. हमने क्राउड फडिंग के जरिए कुछ समय में वो पैसा इकट्ठा कर दिया. आप बोलेंगे कि मैंने ही क्यों नहीं दे दिया तो मैं और भी बहुत कुछ करता हूं. मेरे पास न तो कोई चैरिटी है न ही एनजीओ. मैं खुद के पैसे देता हूं. केरल की बाढ में मैंने एक करोड़ रुपये दिए थे. केरल के एक हफ्ते बाद नागालैंड में एक करोड़ पच्चीस दिया था. उसके बारे में किसी ने बात भी नहीं की थी. मेरा कहने का मतलब है कि मैं इंस्टाग्राम पर अपनी तस्वीरें तो डालता रहता हूं, लेकिन अगर मैंने क्राउड फंडिंग कर ली तो क्या कहने. मुझे लगता है कि हर इंसान ऐसा कर सकता है. सभी लोग अच्छे हैं लेकिन लोग सोचते नहीं हैं.

आपकी जिंदगी में गिविंग नेचर किससे मिला है ?

मेरे अंदर जो भी ढंग की चीजें है. वो मेरे माता पिता से आयी हैं और मेरी चार बहनों से भी. बहुत सारी चीजें जिंदगी में मैंने एड की थी लेकिन फिर वो सही नहीं थी तो मैंने हटा दी.

आपने छोटे परदे से बड़े पर्दे पर एक मकाम बनाया है जिससे कई लोग आपको अपना आदर्श मानते हैं ?

ये सोचना भी गलती है कि वो छोटा परदा है. उससे पहले मैंने थिएटर भी किया है. लोग मोटिवेशनल स्टोरीज के लिए संघर्ष आगे कर देते हैं. मोटिवेट होना है तो कुछ भी बना लीजिए. मैं तो हीरो हीरोईन के पीछे भी डांस कर चुका हूं. थिएटर भी कर चुका हूं. बीस से तीस नाटक किए हैं. टीवी तो बीच में आया. उसमे एक या दो किरदार ही किए तो टीवी और थिएटर छोटा या बड़ा नहीं है. सबकी अपनी अपनी पहचान है इसलिए वो टिके हुए हैं वरना कबका हटा दिए गए होते थे. फिल्म की सबसे अच्छी बात ये है कि आप पहले से पता होती है कि ये कहानी है ये किरदार है. आप प्लान करके काम करते हैं. टीवी में ऐसा नहीं होता है. तीस तीस पेज के डायलॉग याद करके बोलना होता था लेकिन वही आपको ज्यादा बेहतरीन अभिनेता बनाता है.

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