Shabana Azmi: ज़ी 5 पर आगामी शुक्रवार को रिलीज हो रही फिल्म ‘मी रक़्सम’ (Mee Raqsam) को अभिनेत्री शबाना आज़मी (Shabana Azmi) प्रस्तुत कर रही हैं. पिता और बेटी के खूबसूरत रिश्ते के इर्द गिर्द बुनी इस फ़िल्म को शबाना आज़मी अपने मशहूर शायर पिता कैफी आज़मी के प्रति श्रद्धांजलि करार देती हैं. उर्मिला कोरी से हुई बातचीत…
फ़िल्म मी रक्सम आप अपने वालिद साहब कैफ़ी आज़मी को ट्रिब्यूट कर रही हैं इसके पीछे सोच क्या थी?
ये अब्बा के बर्थ सेंचुरी का साल था. इस फ़िल्म में बाप और बेटी का जो इन्तेहाई खूबसूरत रिश्ता जो है. कैफ़ी साहब और मेरे बीच में भी था.उन्होंने हमेशा मुझे सपोर्ट किया था.जब मैंने उन्हें कहा था कि अब्बा मैं ऐक्ट्रेस बनना चाहती हूं क्या आप मुझे सपोर्ट करेंगे तो उन्होंने कहा कि बेटा आप जो भी करना चाहोगे. मैं उसमें आपको सपोर्ट करूँगा. आप मोची बनना चाहेंगी तो उसमें भी मैं आपको सपोर्ट करूँगा बशर्ते आप खुद से कहें कि मैं सबसे बेहतरीन मोची बनने की कोशिश करूंगी. ये जो उनके शब्द थे. उसकी वजह से मेरा आत्मविश्वास बहुत बढ़ा था. बहुत साहस मिला था. इस फ़िल्म से अच्छा और क्या ट्रिब्यूट होगा. इसमें भी पिता अपनी बेटी के सपनों के लिए सबके खिलाफ होता है. मेरे भाई बाबा आज़मी फ़िल्म के निर्देशक भी हैं.
यह फ़िल्म आपके अब्बा कैफी आज़मी के गाँव मिजवां में शूट भी हुई है?
अब्बा की चाहत थी कि मिजवां में किसी फिल्म की शूटिंग हो. उन्होंने बाबा (आज़मी) को ये ख्वाइश सालों पहले जाहिर की थी. इस फ़िल्म की जो अभिनेत्री हैं अदिति. वो मिजवां से ही हैं. वहीं पली बढ़ी है. बाबा जब ऑडिशन कर रहे थे मुम्बई में मरियम के किरदार के लिए तो कई लड़कियां अच्छी डांसर थी कई अच्छी एक्ट्रेस लेकिन उनमें मिट्टी की खुशबू नहीं थी तो फिर बाबा ने मिजवां में ही लड़की को तलाशा. वे ये सोच भी वहां की लड़कियों में जगाना चाहते थे कि वे खुद अपने लोगों के लिए रोल मॉडल बनें. फ़िल्म में हमारे पैतृक घर की झलक है.
फ़िल्म में एक पिता अपने बेटी के सपनों के लिए पूरी बिरादरी से बहिष्कार होता है आपके वालिद साहब ने क्या कभी लोगों के खिलाफ जाकर आपको सपोर्ट किया. कोई वाकया जो बताना चाहेंगी?
कैफ़ी साहब किसी दूसरी ही मिट्टी से बने इंसान थे. बहुत सारे किस्से हैं. कौन सा किस्सा बताऊं. अभी जो तुरंत याद आ रहा है. वो ये कि मैं एक बार भूख हड़ताल पर बैठी थी. मुम्बई में जो झुग्गी झोपड़ी में रहते हैं.उनके लिए रखा था।पांच दिन से हम भूख हड़ताल पर थे.जिस वजह से मेरी तबियत बिगड़ रही थी.मेरा ब्लड प्रेशर गिर रहा था. मम्मी बहुत परेशान हो रही थी.उन्होंने कैफी साहब को ट्रांकॉल किया उस वक़्त वो पटना में थे कि जल्दी वापस आ जाओ. तुम्हारी बेटी की तबियत खराब हो रही है. उसे बोलो भूख हड़ताल तुरंत खत्म करें.अब्बा ने मुझे तुरंत एक टेलीग्राम भेजा। जिसमें उन्होंने लिखा था बेस्ट ऑफ लक कॉमरेड.मम्मी के खिलाफ जाकर उन्होंने मुझे सपोर्ट किया.
आपके भाई बाबा आज़मी को बतौर निर्देशक आप कैसा पाती हैं?
बाबा कमाल के सिनेमाटोग्राफर हैं. एक कैमरामैन के तौर पर उनकी बात मुझे हमेशा अच्छी लगती है. उनकी फ्रेमिंग कमाल की है. वो हमेशा इस बात का ख्याल रखते कि उनके एक्टर्स अच्छे लगे।इमोशन सही तरह से प्रदर्शित हो. उनकी मां , बहन, बीवी, सास सभी एक्टर्स रहे हैं तो एक्टर के प्रति उनकी सेंसिटिविटी हमेशा रही है. बाबा को अच्छे की इन्तेहाई समझ है इसलिए मुझे हमेशा से लगता था कि वो अच्छे निर्देशक बनेंगे. आप देखिए उन्होंने एक्ट्रेस अदिति को जिस तरह से कॉन्फिडेंस दिया. छोटे से गांव की लड़की को इतना बड़ा मौका. जिसने कभी कैमरा फेश ही नहीं किया था पूरी लाइफ में. तीन महीने वो अपने घर से दूर मुम्बई में आयी क्योंकि उसकी भरतनाट्यम की ट्रेनिंग होनी थी. बाबा ने उसका एक पिता की तरह ख्याल रखा. बाबा ने जो एक गाँव की लड़की को अपनी फ़िल्म में मुख्य भूमिका दी।उसके लिए बहुत हिम्मत होनी चाहिए.
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नसीरुद्दीन शाह भी इस फ़िल्म का हिस्सा हैं उनको राज़ी करना कितना मुश्किल था?
नसीर और मैंने इतनी सारी फिल्मों में काम किया है कि एक वक्त ऐसा था जब मैं नसीर के साथ ज़्यादा वक़्त गुजारती थी जावेद के साथ कम. कभी हम गरीब मियां बीवी बने हैं कभी मिडिल क्लास तो कभी हाय क्लास। नसीर मेरे फेवरेट कोस्टार रहे हैं. असल में फ़िल्म बेजुबान के दौरान बाबा और नसीर का बहुत खास रिश्ता बन गया था. बाबा फ़िल्म के सिनेमेटोग्राफर थे, उस वक़्त ही तय कर लिया था कि नसीर के अलावा मी रकसम में यह किरदार कोई और नहीं कर सकता. खास बात ये है कि जिस तरह का किरदार उन्होंने निभाया है फिल्म में. उसके बिल्कुल वो अपोजिट है. वो बहुत ही लिबरल और प्रोग्रेसिव सोच वाले हैं लेकिन उन्होंने उस किरदार को भी बहुत कन्विंस से निभाया है. यही एक कलाकार की खासियत होती है. नसीर का मेरे अब्बा और माँ दोनों के साथ भी बहुत खास रिश्ता था. उनको फ़िल्म की कहानी बहुत अपील कर गयी.
अगर पिछले कुछ महीने पर गौर करें तो वो आपके लिए बहुत मुश्किल भरे थे आपकी अम्मी शौकत आज़मी का जाना आपका एक्सीडेंट और उसके बाद कोरोना का पीरियड किस तरह से उस पूरे समय को देखती हैं?
मैं जानती थी कि मेरी मम्मी की तबियत ठीक नहीं है इसके बावजूद उनका जाना मेरे लिए बहुत बड़ा धक्का था. मुझे लगता है कि उसके बाद ही सब गड़बड़ होता चला गया. मेरा जो एक्सीडेंट था. वो बहुत भयानक था. मैं बाल बाल बची थी. आज मैं उस एक्सीडेंट पर हंस कर कहती हूं कि उस एक्सीडेंट से ये तो क्लियर हो गया कि मेरे सर में दिमाग है लेकिन वो बहुत मुश्किल हालात थे. कोरोना की वजह से सभी की ज़िंदगी में उतार चढ़ाव आया लेकिन सबसे ज़्यादा बुरा मुझे माइग्रेंट वर्कर्स को चलकर उनके घर जाता देख लगा. हमारे समाज का जो अमीर गरीब का फासला है वो नज़र आया. बहुत काला समय था. इस पूरे समय के दौरान मैंने पाया कि ये जो पल है. यही सच्चा है. ना आप अतीत का सोचें ना भविष्य का. आप पूरी तरह से इस पल को जिए. यह नेगेटिव नहीं आध्यामिक वाली फीलिंग है. कोरोना ने ये भी बताया कि इंसान एक दूसरे से कितना जुड़ा हुआ है. चाहे आप अमीर मुल्क से हो या गरीब. काले हो या गोरे. हम आखिर में एक हैं हमारी परेशानी भी एक है. हमने नेचर के साथ जो नाइंसाफी की है. जिस तरह से उसे निचोड़ा है. मुझे उम्मीद है कि अब आनेवाले दिन में हम नेचर से अपना रिश्ता बेहतर बनाएंगे. हम ये भी सोचेंगे कि हमारी चाह और ज़रूरत में बहुत फर्क है. लॉकडाउन के पीरियड ने यही समझाया.
डिजिटल पर फ़िल्म रिलीज हो रही है,डिजिटल को एंटरटेनमेंट का भविष्य कहा जा रहा है आपका क्या कहना है?
ये तो मैं नहीं बोल पाऊंगी क्योंकि आगे चलकर क्या होगा, लेकिन मैं इतना ज़रूर जानती हूं कि हमारा जो कठिन समय गुज़रा है. डिजिटल प्लेटफार्म ने हमको बहुत सुकून दिया है. हमें एंटरटेन किया है. डिजिटल में कॉन्टेंट ही किंग है. यह बहुत सशक्त तरीके से बात साबित होती है. मी रक्सम अगर थिएटर में रिलीज होती तो बहुत लिमिटेड तौर पर होती. अब ज़ी 5 पर आ रही है तो 190 कन्ट्रीज में पहुंचेगी. फ़िल्म की पहुंच बहुत लोगों तक पहुँच गयी है.
पंडित जसराज नहीं रहे, उनसे और उनके संगीत से जुड़ी क्या यादें रही हैं?
मेरी मम्मी हर सुबह पंडित जसराज और किशोरी अमोनकर को सुनती थी.जिस वजह से बचपन से मुझे भी आदत है.इनदोनों की आवाज़ का.मेरा जब एक्सीडेंट हुआ था.उसके बाद मेरी हर सुबह बेस्ट ऑफ पंडित जसराज की आवाज़ से ही होती थी.उनकी आवाज़ से मुझे उस दर्द में एक ताकत मिलती थी उठने की.एक सुकून भी था उनकी आवाज़ जो दर्द को कम कर देती थी. जब मुझे मिलते थे जय हो बोलते थे.बहुत ही चार्मिंग इंसान थे.मुझे सबसे ज़्यादा अफसोस उनकी बेटी दुर्गा के लिए लगता है.दुर्गा का रिश्ता भी पंडित जी के साथ वैसा था.जैसा मेरे अब्बा के साथ मेरा था.वो ज़रूर इस खबर से बुरी तरह से बिखर गयी होगी.
Posted By: Budhmani Minj