लोहे की जंजीर को इस तरह बदला गया, देशभक्ति से लबरेज 40 साल पुरानी गोल्डन जुबली फिल्म क्रांति के अनसुने किस्से
हिंदी सिनेमा में देशभक्ति की फिल्मों में 1981 में रिलीज हुई मनोज कुमार की फ़िल्म क्रांति की अलग और खास पहचान रही है. सिनेमा के कई दिग्गज नाम इस फ़िल्म से जुड़े थे. इस फ़िल्म से जुड़ी खास बातों और यादों को फ़िल्म के निर्देशक मनोज कुमार और अभिनेता धीरज कुमार ने शेयर किया.
हिंदी सिनेमा में देशभक्ति की फिल्मों में 1981 में रिलीज हुई मनोज कुमार की फ़िल्म क्रांति की अलग और खास पहचान रही है. सिनेमा के कई दिग्गज नाम इस फ़िल्म से जुड़े थे. इस फ़िल्म से जुड़ी खास बातों और यादों को फ़िल्म के निर्देशक मनोज कुमार और अभिनेता धीरज कुमार ने शेयर किया. उर्मिला कोरी से हुई बातचीत
फ़िल्म की कहानी सुने बिना दिलीप कुमार ने हां कह दिया था?
इस फ़िल्म से दिलीप कुमार की जुड़ने के वाकये पर फ़िल्म के निर्माता निर्देशक मनोज कुमार बताते हैं कि मैं खुद को खुशकिस्मत कहूंगा जो मुझे मेरे आदर्श दिलीप साहब को मुझे निर्देशित करने का मौका मिला. उस फिल्म से उन्होंने लगभग छह साल के ब्रेक के बाद एक्टिंग वापसी की थी. मैंने फ़ोन पर उन्हें फ़िल्म ऑफर की थी. वे मुझे बहुत प्यार करते थे इसलिए उन्होंने बिना कहानी सुने कह दिया कि हां यार..करते हैं. कुछ दिनों बाद मैं उन्हें कहानी सुनाने उनके घर पहुंचा. वहां जाकर मालूम हुआ कि उनके भाई की तबीयत ठीक नहीं है. वे अस्पताल जा रहे हैं उनसे मिलने. उन्होंने मुझे कहा कि कहानी सुनाने में तुम्हे तीन घंटे जाएंगे. मैंने कहा कि वो कहानी क्या जिसको सुनाने में तीन घंटे जाए. मैंने कुछ मिनटों में फ़िल्म की कहानी उन्हें बतायी सुनकर उन्होंने जवाब दिया कि जमीन तो उपजाऊ है मैंने बोला फसल भी अच्छी होगी.
क्रांति के लिए ही दिलीप कुमार ने पहली बार की थी राज कपूर स्टूडियो में शूटिंग?
क्रांति फ़िल्म की शूटिंग जयपुर के पैलेस के साथ साथ मुम्बई के आरके स्टूडियो में भी हुई थी. दिलीप कुमार ने अपने उस वक़्त के 35 साल के फिल्मी करियर में क्रांति से पहले कभी भी राज कपूर स्टूडियो में शूटिंग नहीं की थी. क्रांति फ़िल्म की शूटिंग के वक़्त ही उन्होंने पहली बार इस स्टूडियो में शूट किया था. इस वाकये पर निर्देशक मनोज कुमार कहते हैं कि राज कपूर से उनकी कोई लड़ाई नहीं थी बस उनके जेहन में था कि वे आर के स्टूडियो में शूटिंग नहीं करेंगे लेकिन जब मैंने उनसे इस बारे में बात की तो वो मान गए. राज कपूर भी हमारी शूटिंग के वक़्त हम सभी से मिलने आए थे.
दिलीप साहब से सभी एक्टर्स ने बहुत कुछ सीखा
इस फ़िल्म की शूटिंग के दौरान हेमा मालिनी,शशि कपूर से लेकर धीरज कुमार तक सभी एक्टर्स के लिए दिलीप कुमार का साथ काफी कुछ सीखाने वाला था. अभिनेता धीरज कुमार बताते हैं कि दिलीप साहब सीन को समझने के बाद उसमें अपनी सहजता या कहें नेचुरल एक्टिंग वो किस तरह से लाते थे. ये इस फ़िल्म की शूटिंग के दौरान जाना. एक सीक्वेंस हैं जहां प्रेम चोपड़ा जी और मैं चिल्ला रहे हैं. चना है मेरी मर्जी गाने के सीक्वेंस से पहले. हम कह ये कर देंगे वो कर देंगे. दिलीप साहब बहुत आहिस्ता से कहते हैं कि अच्छा ये हो जाएगा. जैसे वो शॉट हुआ. मैं दिलीप साहब के पास गया. उनसे कहा कि सर आपने इतना आहिस्ता से क्यों डायलॉग बोला जबकि हम चीख चिल्ला रहे हैं. उन्होंने कहा कि तुम्हारा किरदार नेगेटिव है तो तुम अपने जोशो खरोश में चिल्ला रहे हो. मेरा जोशो खरोश संवाद की इस ढंग से अदायगी से ये है कि तुम कुछ नहीं कर पाओगे और मुझे ये बात पता है इसलिए मैं इसे हल्के अंदाज़ में कहूंगा. एक्टिंग में संवाद अदायगी को वो जिस बारीकी से पकड़ते थे. वो कोई नहीं कर सकता था. सेट पर मौजूद सारे एक्टर्स ने उनसे बहुत कुछ सीखा था.
लोहे की जंजीर को रबर की जंजीर से बदला गया?
फ़िल्म के एक दृश्य में दिलीप कुमार भारी भरकम जंजीरों और लकड़ी से बंधे हैं. जहां उन्हें राज दरबार में लाया जाता है. इस सीन को याद करते हुए धीरज कुमार बताते हैं कि दिलीप साहब के साथ मनोज जी ने तीन से चार बार टेक लिया लेकिन हो नहीं पा रहा था. जंजीर का वजन तो था ही कई बार वो उलझ भी जा रही थी. सीन हो ही नहीं पा रहा है. मनोज जी को भी समझ नहीं आ रहा था तब दिलीप साहब ने कहा कि जो तुमने ये जंजीरों के जो जवाहरात पहना दिए हो. उसको हल्का करो. एक्टिंग में उन जंजीरों का बोझ आ जा रहा है. वो जमाने गए जब हम 15 किलो के भारी भरकम कवच पहनकर एक्टिंग कर लेते थे. जिसके तुरंत बाद शूटिंग रोक दी गयी. मनोज जी वो जंजीरें रबर की बनवा दी और उनको इस तरह से पेंट करवाया कि वो असल लोहे की जंजीर लगे. उसके बाद उस सीन को शूट किया गया.
जापान से मंगवाए गए थे फ़िल्म के प्रिंट
क्रांति बहुत ही भव्य फ़िल्म थी. उसके लिए स्पेशल प्रिंट बनवाए गए थे जापान से. कलर ग्रीडिंग इतनी अच्छी क्वालिटी थी कि आपको पर्दे पर रंग निखरकर सामने आता था. क्रांति अपने समय की बहुत ही महंगी फ़िल्म थी. फ़िल्म के साथ न्याय करने के लिए छोटी सी छोटी बारीकी का ध्यान रखा गया था. एक्टर धीरज कुमार बताते हैं कि फ़िल्म के एक सीन में मैं एक लकड़ी की सायकिल पर हूं. उस कुछ सेकेंड के सीन के लिए भी उन्होंने उस सायकल को विशेष तौर पर आर्डर पर बनवाया था. जिसका आगे का चक्का बहुत बड़ा और पीछे का बहुत छोटा था. वो सायकिल मुझसे चल नहीं पा रही तो तुरंत मनोज जी ने ऑन द स्पॉट उसके लिए रास्ता ढूंढ लिया. उन्होंने कहा कि चूंकि तुम्हें लाड़ प्यार से पाला गया है और तुम बिगड़ैल हो इसलिए एक आदमी तुम्हारे लिए छाता लेकर चलेगा और दो सायकिल को पकड़ेंगे ताकि तुम आराम से सायकिल चला भी लो और दर्शक को ये बात मालूम भी नहीं पड़ेगी.
क्लाइमेक्स की शूटिंग को दो महीने लग गए थे
फ़िल्म इतनी भव्य थी और स्टारकास्ट इतनी बड़ी थी कि फ़िल्म को बनाने में लगभग दो साल लग गए थे. फ़िल्म के सिर्फ क्लाइमेक्स सीन को फिल्माने में दो महीने चले गए थे. अभिनेता धीरज कुमार इस बात की पुष्टि करते हुए कहते हैं कि हां क्लाइमेक्स की शूटिंग सबसे चुनौतीपूर्ण और थका देने वाला अनुभव था. उस जमाने में 135 से 150 शिफ्ट्स चलते थे आज तो 55 दिनों में फ़िल्म खत्म हो जाते थे.